Monday, December 11, 2023

योग से ही होगा समाज में सदाचार

रामेश्वर दत्त
अध्यापक

भारत ऋषि- मुनियों की धरा है l यहाँ की संस्कृति संपूर्ण मानवता के लिए मार्गदर्शक बनी रही है l इसीलिए भारत को विश्व गुरु भी कहा जाता है l इस देश में ऐसी महान विभूतियों ने जन्म लिया जिन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि भारत वास्तव में विश्व गुरु कहलाने के योग्य है l जहाँ भारत भूमि महर्षि पतंजलि, महर्षि कणाद ,वेदव्यास और महर्षि वाल्मीकि जैसे ऋषियों की शिक्षाओं से अलंकृत है, वहीं गणित, ज्योतिष, रसायन और अन्य क्षेत्रों में पारंगत विद्वान आर्यभट्ट, वराहमिहिर, कालिदास, रामानुजन, विवेकानंद और कौटिल्य आदि विद्वानों ने अपनी विद्वता से भारत का महिमामंडन किया है l इन महान विभूतियों ने संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया है l

भारत का योग, अध्यात्म, ज्योतिष और आयुर्वेद संपूर्ण विश्व में विशेष स्थान और सम्मान प्राप्त करते हुए मानवता की अखंड सेवा कर रहे हैं l हमारे इन ऋषि-मुनियों ने शरीर को धर्म का साधन माना है l और शरीर को निरोग रखने के लिए योग और आयुर्वेद के महत्व को समझाया है l एक स्वस्थ मनुष्य ही अपना, अपने परिवार और समाज का कल्याण कर सकता है l स्वस्थ जीवन जीने के लिए महर्षि पतंजलि ने हमें योग के सूत्र दिए हैं l अपने योग दर्शन में पतंजलि ने सर्वप्रथम अष्टांग योग का वर्णन किया है l महर्षि पतंजलि द्वारा दिए गए योग सूत्र आज भी उतने ही प्रभावशाली हैं जैसे प्राचीन समय में थे l अष्टांग योग का अर्थ है योग के आठ अंग अर्थात योग के आठ अंग हैं l जिनमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम ,प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि कहे हैं l पहला अंग यम है l यम से अभिप्राय है सामाजिक नियम एवं अनुशासन से है l

मन की शुद्धि के लिए सर्वप्रथम पांच यम है- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी ना करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (संग्रह न करना) l दूसरा अंग नियम है l नियम भी पांच है- शौच (बाह्य एवं आंतरिक शुद्धि), संतोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्रणिधान ( ईश्वर के आगे समर्पण ) l तीसरा अंग आसन है l शरीर की ऐसी स्थिति जिसमें स्थिरता और सुख का आभास हो वही आसन है l चौथा प्राणायाम हैl यह श्वास –प्रश्वास की गति की तकनीक है अर्थात प्राणायाम श्वास लेने की योग कला है l सांसो को लयबद्ध तरीके से रोकने को छोड़ने से शरीर में प्रेरणा, उत्साह और ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है l पांचवा अंग प्रत्याहार है l इसका अर्थ है समस्त इंद्रियों को सुखों की ओर भागने से रोकना l क्योंकि इंद्रियों की सुख प्राप्ति की लालसा मन को विचलित कर देती है l छठा अंग है धारणा अर्थात किसी विषय पर एकाग्र होकर चिंतन मन करना l सातवां अंग है ध्यान अर्थात चित्त की निरंतर सजगतापूर्वक एकाग्र रहने की क्रिया ध्यान है l आठवां अंग है समाधि यह ध्यान की अखंड स्थिति है इस स्थिति में आत्मा अपने स्वरूप को खोकर परम सत्ता के साथ तल्लीन हो जाती है l

महर्षि पतंजलि द्वारा दिए गए इस अष्टांग योग को यदि जीवन में धारण किया जाए तो आज समाज में व्याप्त हिंसा, बैर-भाव, भ्रष्टाचार, दुराचार, रिश्वतखोरी, स्वार्थपरता तथा और मानसिक व शारीरिक रोगों आदि से मुक्ति मिल सकती है l और एक सदाचारी समाज की स्थापना हो सकती है l भाव यह है कि आज मनुष्य यदि योग को अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से प्रयोग करे तो संपूर्ण मानवता का कल्याण हो सकता है l आज आए दिन हर तरफ हिंसक घटनाएं घटित हो रही हैं l आदमी, आदमी का शत्रु बन गया है l बहुत से देश आपस में लड़ रहे हैं l आपसी वैमनस्य दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है l परमाणु युद्ध जैसे महाविनाश का भय सताने लगा है l योग युक्त व्यक्ति कभी भी हिंसा में विश्वास नहीं रखता l उसका ध्येय तो ‘अहिंसा परमो धर्म:’ ही होगा यही अष्टांग योग का पहला अंग है l

इसी प्रकार सत्य को जीवन में धारण करने से व्यक्ति कभी भ्रष्टाचार नहीं करेगा, रिश्वतखोरी नहीं करेगा l यदि समाज से भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी समाप्त हो जाए तो सभी को अपना अधिकार बिना किसी भेदभाव से प्राप्त होगा l सभी को अपनी योग्यतानुसार अपनी प्रतिभा को निखारने और प्रयोग करने का अवसर मिलेगा l अष्टांग योग में साधक को ब्रह्मचर्य पालन करने की बात कही है l समाज में आज महिलाएं और बहन- बेटियां सुरक्षित नहीं हैं l इनके साथ बलात्कार और यौन शोषण जैसे अपराध बढ़ते जा रहे हैं l यहां तक कि बलात्कार के बाद उनकी निर्मम हत्या कर दी जाती है l आए दिन ऐसी घटनाएं मानवता को शर्मसार कर रही हैं l भारतीय शास्त्रों में तो सीख दी है ‘मातृवत परदारेषु’ अर्थात दूसरों की स्त्रियों में माता का रूप देखना चाहिए l उन्हें माता समान समझना चाहिए l यदि मनुष्य योगयुक्त होगा, ब्रह्मचर्य का पालन करेगा तो वह स्वभाव से ही मातृशक्ति का सम्मान करने वाला होगा और उनके प्रति कभी बुरा भाव नहीं रखेगा l वह सदाचारी होगा l इससे हमारी मां, बहन- बेटियों को समाज में निर्भयता से जीने का स्वस्थ वातावरण मिलेगा l योग में अपरिग्रह कहा गया है जिसका भाव है योगी को जीवनयापन के लिए जो आवश्यक हो मात्र उतना ही संग्रह करना चाहिए उससे अधिक संग्रह नहीं करना चाहिए l

यदि इस नियम को धारण किया जाए तो सब को जीने के लिए आवश्यक वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हो जाएंगी l सभी का जीवन सुखी हो जाएगा l मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तो ईश्वर ने पर्याप्त साधन और सामग्री दी है परंतु लालचवश उसकी इच्छाएं जो बढ़ती ही जाती हैं उनकी पूर्ति करना संभव नहीं है l इसी प्रकार योग के नियमों में संतोष की महत्ता बताई गई है l यहां तो कहा गया है ‘संतोष ही मनुष्य का सबसे बड़ा खजाना है’ l संतोष अकेला ही ऐसा गुण है कि इसे धारण करने से व्यक्ति शांत हो जाता है l परंतु इसका भाव कदापि भी कर्म विमुख होना नहीं है l
तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणीधान भी मनुष्य को सदाचारी ही बनाता है l ऐसा व्यक्ति सदैव मानवता की भलाई का ही कार्य करेगा l वह सभी प्राणियों को अपनी तरह ही समझेगा l वह जीवन में सदैव ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहेगा l आसन और प्राणायाम नियमित रूप से करने पर योग युक्त व्यक्ति स्वस्थ रहेगा l कहा गया है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ आत्मा वास करती है l व्यक्ति का शरीर यदि स्वस्थ होगा तो वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ कर सकेगा l इंद्रियों को सुखों की ओर भागने से रोकना ही प्रत्याहार है l आज अधिकांश अपराध और भ्रष्टाचार इंद्रियों के सुखों और भोगों के लिए होते हैं l प्रत्याहार इन अपराधों और भ्रष्टाचारों का निदान हैl
उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट हो जाता है कि मानवता को सुखी, निरोगी, और सदाचारी बनाने की एकमात्र कुंजी योग है l योग से मनुष्य का आचरण अच्छा हो जाता है l जिस जिस देश के नागरिक सदाचारी होंगे वह देश उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर गतिमान होगा l आज पूरा विश्व योग के महत्व को समझ चुका है l अब आवश्यकता है कि भारत विश्व गुरु की भूमिका का निर्वहन करता हुआ योगविद्या को संपूर्ण मानवता तक पहुंचाने के तीव्र प्रयास करे l इस क्षेत्र में बाबा रामदेव जी की सेवाएं अत्यंत प्रशंसनीय हैं l उन्होंने कई वर्षों से योगविद्या को भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी जन -जन तक पहुंचाने का प्रयास किया है l आज भारत में अधिकतर लोगों को योगासन और प्राणायाम की जानकारी है l अब जरूरत है अष्टांग योग जो योगविद्या का मूल है की शिक्षा जनमानस तक पहुंचाकर योग से एक सदाचारी और सुविचारी समाज की स्थापना की जाए l इसके लिए बाल्यकाल से बच्चों को अष्टांग योग की व्यावहारिक शिक्षा दी जानी चाहिए l विद्यालय स्तर की शिक्षा में इसे समाहित करना चाहिए l भारत को यह गर्व का विषय है कि महर्षि पतंजलि द्वारा दी गई योगविद्या आज अखिल विश्व में फैल गई है l इसी प्रचार-प्रसार के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व में योग साधक आज योग का प्रयोग करते हुए अपना जीवन निरोग और सुखी बना रहे हैं । वह दिन दूर नहीं जब योग द्वारा एक सुसंस्कृत और सदाचारी समाज की स्थापना होगी और भारत का रामराज्य का सपना साकार हो जायेगा ।

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