कभी-कभी अरमान लटके रह जाते हैं फंदे पे और ज़िन्दगी का स्टूल खिसक जाता है। वर्षों का गुमान एक झटके में जब टूटता है तो सब बिखर जाता है। दर्द में कौन नहीं जी रहा, ज़िन्दगी किसी के लिए आसान नहीं है बस सबकी दर्द झेलने की क्षमता अलग-अलग है। संघर्ष की भट्टी में तपने के बाद अपनी कई इच्छाएं मारने के बाद,इंसान कहीं किसी मुकाम तक पहुंच पाता है। जाने कितने सपने बुने जाते हैं कई बार गिरना उठना फिर दौड़ना और कई बार सबको भाग्य समझकर हार जीत या तो स्वीकार कर लेता है या गुमनामी के अंधेरे में खो जाता है। कुछ दर्द शायद बांटने लायक नहीं होते हैं , कुछ का गवाह सिर्फ सनाटा होता है। कई बार विपरीत परिस्थितियों में खुद को संभाल लेते हैं और सारी बातें दिल से लगाते भी नहीं। शरीर इतना ताकतवर है कि हथोड़े-छेनी की मार सह जाये और मन इतना कोमल है कि जीवा के बाणों से छलनी हो जाये। कई बार संघर्ष को अपने हाथों की रेखा बना लिया जाता है। मन तो कई बार अपनी ही पीठ थपथपाकर उठ खड़ा होता है और कई बार “बस यार” मैं ही क्यों” बोलकर इतना टूट जाता है कि जैसे मृत्युशय्या पर हो। जिनके पास एक वक्त का खाना होता है वो भी दूसरे वक़्त की उमीद नहीं छोड़ता। परीक्षा, प्रेम और जीवन में असफलता से कोई निखर जाते हैं तो कोई बिखर। कभी-कभी ज़िन्दगी शहद लगती है, प्रकृति की हर एक आहट संगीत लगती है, कभी सिर्फ कानों को चीरता हुआ शोर। ऐसा नहीं है कि डिप्रेसड इन्सान एक दम अपने आप को खत्म कर लेता, वो जीने की हर सम्भव बजह की तलाश करता है, बस लोग समझ नहीं पाते।अंत में पैरों तले से उमीदों का स्टूल खिसक जाता है और अरमान फंदे पर लटक जाते हैं। चलिये कोशिश करते हैं अपने आस-पास के लोगों की मनोवृति समझने की! क्या पता हम कामयाब हो जायें किसी एक बहुमूल्य जीवन को बचाने में जो घण्टों निहारता हो अपने कमरे के पंखे को और सनाटे में सुनता हो अपनी ही धड़कने जिनका मतलब समझने में दिमाग एक जंग लड़ रहा हो। आईये उसे उस सनाटे से उस मधुर धुन तक ले जायें और मकसद समझाएं जीवन का। वो उस स्टूल पर अपना सर रखे और शांत गहरी नींद लेकर फिर जगे अंदर से। उदासियाँ मेरी भी ज़िन्दगी में कम नहीं रहीं हैं मैंने भी कभी पंखे को तो कभी रस्सी को घण्टों देखा है।🙏
यूँ ही नहीं मरता कोई जीने की हर सम्भव बजह की तलाश करता है
Edited By :- Tripta Bhatia
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