प्रजासत्ता ब्यूरो|
हिमाचल में राजनीति की चर्चा स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के बिना अधूरी है। उन्हें आधुनिक हिमाचल का निर्माता भी कहा जाता है। छ: दशकों तक हिमाचल प्रदेश के साथ देश की राजनीति करने वाले वीरभद्र सिंह जिन्हें उनके समर्थक प्यार से राजा साहब कहते हैं। उन्होंने प्रदेश में विकास का मजबूत ढांचा खड़ा करने के साथ प्रदेश के हर कोने से अपना जुडाव रखा। यही कारण रहा कि वीरभद्र सिंह छ: बार मुख्यमंत्री बने और छ: दशक तक सक्रिय राजनीति में रहे। राजनीति के हर मोर्चे पर उन्होंने खुद को सही साबित किया। आम लोगों से उनका जुड़ाव ही था कि जननायक के रूप में उनकी पहचान बनी। आज भी लोगों के दिल में उनके लिए अलग स्थान है। यही वजह है कि लोकतांत्रिक देश में अगर किसी नेता को ‘राजा साहब’ कहकर पुकारा जाता है।
वीरभद्र सिंह अपने नाम की तरह ही वीर भी थे और भद्र भी। वीरता ऐसी कि कोई सियासी प्रतिद्वंदी कभी सामने टिक ही नहीं सका और भद्रता ऐसी कि कभी कोई उनके पास से खाली हाथ वापस नहीं लौटा। जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री से प्रेरणा लेकर कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रहीं इंदिरा गांधी के कहने पर राजनीति में आए वीरभद्र सिंह ने की आधुनिक हिमाचल के निर्माता के तौर पर पहचान बनी।
वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून 1934 को शिमला जिले के सराहन में हुआ। उनके पिता का नाम राजा पदम सिंह था। उनकी शुरुआती पढ़ाई शिमला के बिशप कॉटन स्कूल (बीसीएस) शिमला से ही हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की। वीरभद्र सिंह का संबंध राजघराने से है, वह बुशहर रियासत के राजा भी रहे।
छ:बार हिमाचल का प्रतिनिधित्व कर चुके पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 1962 से महासू (शिमला) लोकसभा क्षेत्र से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। पहली बार महासू से चुनकर तीसरी लोकसभा के सदस्य बने। 1967 में इसी संसदीय क्षेत्र से दूसरी बार सांसद चुने गए। इसके बाद शिमला लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने पर वीरभद्र सिंह ने 1971 में मंडी लोकसभा क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि चुना। उनके गृह जिला शिमला का रामपुर विधानसभा क्षेत्र इस संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। यहां से सांसद चुने जाने के बाद वह केंद्र में 1976 में उप नागरिक उड्डयन मंत्री बने। 1977 में जनता पार्टी के गंगा सिंह ठाकुर के हाथों हार का सामना करना करना पड़ा। 1980 में हार का बदला लेकर लोकसभा में पहुंचे।
केंद्र में उद्योग राजमंत्री बने। यहीं से वीरभद्र सिंह की किस्मत का सितारा चमका। कांग्रेस हाईकमान ने रामलाल ठाकुर को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया और वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाकर दिल्ली में हिमाचल वापस भेजा। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह 1983 से 1990, 1993 से 1998,2003 से 2007 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 2007 में प्रदेश की सत्ता से बाहर होने के बाद वीरभद्र सिंह ने दोबारा मंडी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा। भारी मतों से जीतकर हासिल कर पांचवीं बार सांसद चुने गए। मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में इस्पात मंत्री बने। इसके बाद लघु एवं मझौले उद्यम मंत्रालय का जिम्मा मिला। 2012 में केंद्रीय मंत्री पद से त्यागपत्र दिया। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा गया। कांग्रेस पार्टी ने दोबारा सत्ता में वापसी की और वह छठी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वीरभद्र सिंह अपने राजनीतिक करियर में केवल एक ही बार चुनाव हारे हैं। देश में आपातकाल के बाद 1977 में जब कांग्रेस का देश से सफाया हो गया था, इसी दौरान वीरभद्र सिंह भी चुनाव हारे थे। इसके अलावा वह 1983,1985, 1990,1993, 1998,2003,2009, 2012 व 2017 में विधायक रहे। साल 2017 में अर्की विधानसभा क्षेत्र से वीरभद्र सिंह ने आखिरी चुनाव लड़ा. 8 जुलाई 2021 को लंबी बीमारी के बाद वीरभद्र सिंह का निधन हो गया
वीरभद्र सिंह कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी का हिस्सा थे, जिन्होंने ना केवल हिमाचल में बल्कि पूरे देश में अपनी राजनीति का डंका बजाया। वीरभद्र सिंह ने 27 साल की उम्र में राजनीति में एंट्री की थी। कहा जाता है कि वीरभद्र सिंह जैसा लोकप्रिय नेता प्रतिद्वंद्वी भाजपा हिमाचल में कभी लेकर नहीं आ पाई। हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र की लोकप्रियता का मुकाबला करने वाला कोई दूसरा नेता नहीं था। वह अपने भाषणों में कहते थे,”मेरी जनता मेरी सबसे बड़ी ताकत है।” वीरभद्र सिंह को लोग इतना प्यार करते थे, उनकी सार्वजनिक अपील ऐसी थी कि वे नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद कभी भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए नहीं जाते थे। फिर भी वह आराम से हर बार चुनाव जीत जाते थे। अपने निर्वाचन क्षेत्र में जाने के बजाय वह कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व करते हुए राज्य का दौरा करते थे।
स्वर्गीय वीरभद्र सिंह का सियासी जीवन दिलचस्प किस्सों से भरपूर रहा। वीरभद्र सिंह पर मां भीमाकाली के साक्षात आशीर्वाद से हर कोई वाकिफ है, लेकिन वीरभद्र सिंह के पास एक ऐसा भी गॉड गिफ्ट था जिससे वह अपने विरोधियों को पस्त कर दिया करते थे। यही कारण रहा कि जब तक वह रहे हिमाचल की राजनीति में उनके प्रतिद्वंदी और उनके अपने दल के दिग्गज नेता भी कभी उनसे जीत नहीं सके। अपने जीवन के बड़े बड़े विवादों के बाद भी राजा हमेशा…राजा की तरह ही रहे, और जनता से भरपूर प्यार और सहयोग मिला। हिमाचल की राजनीति में अब राजा जैसा हो पाना मुश्किल ही है।