प्रजासत्ता|
कोरोना संकट के बीच संसद का मॉनसून सत्र आज बुधवार को तीसरे दिन चला। लोकसभा में गुरुवार को बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक पारित किया, जो प्रमुख बैंकों के ऋण डिफॉल्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक को अन्य बैंकों को निर्देश देने में सक्षम बनाता है। अब यह विधेयक, बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश, 2017 का स्थान लेगा।
इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ?
गौरतलब है कि भारतीय रिज़र्व बैंक सिर्फ एक नियामक संस्था भर नहीं है बल्कि यह सार्वजनिक ऋण प्रबंधन जैसे अन्य कार्य भी करता है। भारत के कुछ बैंक बड़े डिफॉल्टरों एवं गैर-निष्पादित संपत्तियों की समस्या से जूझ रहे हैं। अतः सरकार बैंकों को उनके प्रमुख डिफॉल्टरों के खिलाफ ऋण वसूली के लिये उचित कार्रवाई करने की क्षमता प्रदान करना चाहती है। ऋण वसूली के लिये पहले से मौजूद नियमों में समय अधिक लगता था। नई समानांतर व्यवस्था अब अधिक प्रभावी होगी।
बात दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंककारी विनियमन संशोधन विधेयक 2020 को लेकर विपक्ष की आशंकाओं को निर्मूल बताते हुए मंगलवार को कहा कि इस विधेयक का मकसद यह बिल्कुल नहीं है कि केंद्र सरकार सहकारी बैंकों पर निगरानी रखना चाहती है। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि इसके दायरे में केवल ऐसी ही सहकारी सोसाइटी आयेंगी जो बैंकिंग क्षेत्र में काम रही हैं।
लोकसभा में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए सीतारमण ने कहा, ‘‘ यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि केंद्र सरकार सहकारी बैंकों पर निगरानी रखना चाहती है।’’ उन्होंने कहा कि कोविड-19 के समय में कई स्थितियां सामने आ रही हैं । जमाकर्ताओं की सुरक्षा बेहद जरूरी थी । कई सहकारी बैंकों में जमाकर्ता परेशानी का का सामना कर रहे थे । हम नहीं चाहते थे कि पंजाब महाराष्ट्र कोओपरेटिव बैंक (पीएमसी) जैसी स्थिति का सामना करना पड़े।
गौरतलब है कि सहकारी बैंकों की सकल गैर निस्पादित आस्तियां (एनपीए) मार्च 2019 के 7.27 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2020 में 10 प्रतिशत हो गयी तथा वित्त वर्ष 2018-19 में 277 शहरी सहकारी बैंकों को घाटा होने की खबरें आई । सीतारमण ने कहा कि 100 शहरी सहकारी बैंक अपने न्यूनतम पूंजीगत जरूरतों को पूरा करने में असफल रहे जबकि मार्च 2019 में 47 सहकारी बैंकों का निवल मूल्य नकारात्मक रहा। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिये अध्यादेश लाया गया था । वित्त मंत्री ने के जवाब के बाद लोकसभा ने बैंककारी विनियमन संशोधन विधेयक 2020 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी । इसमें जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिये बेहतर प्रबंधन और समुचित नियमन के जरिये सहकारी बैंकों को बैकिंग क्षेत्र में हो रहे बदलावों के अनुरूप बनाने का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक इससे संबंधित अध्यादेश के स्थान पर लाया गया है।
विपक्षी दलों के सदस्यों द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या राज्यों से विचार विमर्श किया गया, वित्त मंत्री ने कहा कि जो विषय समवर्ती सूची में होते हैं, उन्हीं पर राज्यों से विमर्श करने की जरूरत होती है लेकिन यह मुद्दा संघ सूची है और इसके लिये राज्यों से चर्चा की जरूरी नहीं है। सीतारमण ने कहा कि बैंक का नाम रखकर जो सहकारी सोसाइटी काम कर रही हैं, उन पर भी वही नियम लागू होने चाहिए जो वाणिज्यिक बैंकों पर लगते हैं। इससे बेहतर प्रशासन सुनिश्चित हो सकेगा। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के दायरे में केवल ऐसी सहकारी सोसाइटी आयेंगी जो बैंकिंग क्षेत्र में काम रही हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि राज्यों के सहकारिता कानूनों को नहीं छुआ गया है और प्रस्तावित कानून इन बैंकों में वैसा ही नियमन लाना चाहता है, जैसे दूसरे बैंकों पर लागू होते हैं। उन्होंने कहा कि यह उन सहकारी बैंकों पर लागू होगा जो बैंक, बैंकर और बैंकिंग से संबंधित होंगे।
गौरतलब है कि यह विधेयक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को अवश्यकता पड़ने पर सहकारी बैंकों के प्रबंधन में बदलाव करने का अधिकार देता है। इससे सहकारी बैंकों में अपना पैसा जमा करने वाले आम लोगों के हितों की रक्षा होगी । विधेयक में कहा गया है कि आरबीआई को सहकारी बैंकों के नियमित कामकाज पर रोक लगाये बिना उसके प्रबंधन में बदलाव के लिये योजना तैयार करने का अधिकार मिल जायेगा। कृषि सहकारी समितियां या मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में काम करने वाली सहकारी समितियां इस विधेयक के दायरे में नहीं आयेंगी। विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि अध्यादेश जारी करने के लिए कुछ आधार होते हैं, लेकिन इस अध्यादेश को जारी करने का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि बैंकिंग प्रणाली केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन यहां जिला सहकारी बैंकों से कृषि क्रेडिट सोसायटी को अलग करने का प्रयास किया जा रहा है जिसका कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा।
तिवारी ने आग्रह किया कि कि सरकार इस विधेयक को वापस ले क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश में सहकरी बैंकिंग व्यवस्था पर दूरगामी नकारात्मक असर होगा। वहीं, भाजपा के शिवकुमार उदासी ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि सहकारी बैंकों के बेहतर प्रबंधन और जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए यह विधेयक जरूरी है। उन्होंने कहा कि अतीत में सहकारी बैंकों से जुड़े कई घोटाले हुए हैं और कई अनियमितताएं हुईं। यह संशोधन इन पर भी प्रभावी ढंग से अंकुश लगा सकेगा। उदासी ने कहा कि विधेयक के कानून बनने के बाद सहकारी बैंकिंग व्यवस्था पर रिजर्व बैंक की प्रभावी निगरानी रह सकेगी।
विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने सरकार से सवाल पूछा कि इस विधेयक को इतनी जल्दबाजी में क्यों लाया गया है। उन्होंने कहा कि आरबीआई बैंकों का सफल नियामक साबित नहीं हुआ है और उस पर काम का अत्यधिक बोझ है। रॉय ने कहा कि यस बैंक के मामले में भी ऐसा देखने में आया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से राज्यों के अधिकारों का भी हनन होगा। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के श्रीकृष्णा देवरयालू ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि हर समस्या के समाधान के लिए आरबीआई पर केंद्रित नहीं रहना चाहिए।