प्रजासत्ता नेशनल डेस्क|
भारत द्वारा पिछले दिनों गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना विश्व के कई देशों के लिए बड़ा झटका माना गया। बता दें कि भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। ऐसे में भारत के इस कदम से वैश्विक मुद्रास्फीति और कई देशों में चावल की कमी की आशंका पैदा हो गई है। हालांकि भारत की ओर से गैर-बासमती उसना चावल और बासमती चावल की निर्यात नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
खाद्य मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि सरकार ने आगामी त्योहारों के दौरान घरेलू आपूर्ति बढ़ाने और खुदरा कीमतों को काबू में रखने के लिए यह कदम उठाया है। घरेलू बाजार में गैर-बासमती सफेद चावल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने और स्थानीय कीमतों में वृद्धि को कम करने के लिए भी यह कदम उठाया गया है।
बताया जा रहा है कि चावल की खुदरा क़ीमतों में पिछले एक साल में 11.5 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। वहीं पिछले सिर्फ़ एक महीने के आंकड़े पर नजर डाले तो इसमें तीन प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। क़ीमतों में वृद्धि को रोकने के लिए ही सरकार ने पिछले गैर-बासमती सफ़ेद चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया था। सरकार को लगा था कि इस कदम से इसके निर्यात में कमी आएगी। हालांकि ऐसा हुआ नहीं।
बता दें कि भारत दुनिया में 40 प्रतिशत चावल की निर्यात करता है। भारत के चावल 140 देशों में जाते हैं। भारत के गैर-बासमती सफेद चावल निर्यात के प्रमुख गंतव्यों में थाईलैंड, इटली, स्पेन, श्रीलंका और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। भारत से दूसरे देशों में चावल निर्यात पर प्रतिबंध के पीछे एक प्रमुख कारण यह भी है कि देश के कुछ हिस्सों में असमान वर्षा, जिसके कारण उत्पादन में कमी की चिंता पैदा हो गई है।
उल्लेखनीय है कि निर्यात पर इस प्रतिबंध से देश में चावल की असमान और अपर्याप्त आपूर्ति पर अंकुश लगने की उम्मीद है। रूस-यूक्रेन युद्ध और खाद्य निर्यात श्रृंखलाओं के विघटन के साथ-साथ दुनिया भर में अप्रत्याशित मौसम और कई बाढ़ों के कारण खाद्य और अनाज की कीमतें पहले से ही लगातार बढ़ रही हैं। भारत के इस कदम से प्रमुख देशों में चावल की कीमतें गंभीर रूप से बढ़ सकती हैं।