प्रजासत्ता नेशनल डेस्क |
मैरिटल रेप यानि पत्नी की मर्जी के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार का अपराध घोषित करने की माँग वाली याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत विचार करने को तैयार हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर सरकार का पक्ष जानना चाहा है। अगले साल फरवरी में कोर्ट इसपर सुनवाई करेगा।
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वोमेन्स एसोसिएशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बलात्कार से जुड़ी आईपीसी की धारा 375 में पत्नी के मामले में अपवाद को असंवैधानिक बताते हुए इस अपवाद को हटाने की माँग की थी। धारा 375 के अपवाद के प्रावधान के मुताबिक विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो। लेकिन हाईकोर्ट में सुनवाई करने वाली बेंच के दोनों जजों की राय में मतभेद हो गया।
जस्टिस राजीव शकधर ने इस अपवाद को असंवैधानिक मानते हुए इसे रद्द करने का फैसला सुनाया। उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि ‘आईपीसी के लागू होने के 162 साल बाद भी अगर किसी विवाहित महिला को न्याय नहीं मिलता तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।’
लेकिन दूसरे जज जस्टिस सी हरि शंकर ने इस अपवाद को तर्कसंगत मानते हुए इसकी जरूरत बताई थी। लेकिन दोनों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि यह एक महत्वपूर्ण क़ानूनी मसला है, सुप्रीम कोर्ट को इसपर सुनवाई करनी चाहिए। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। अब इस मामले में अगले साल फरवरी में सुनवाई होगी। कोर्ट को तय करना है कि पति का पत्नी से जबरन संबंध बलात्कार है या नहीं। 11 मई को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने इस मामले में अलग-अलग फैसला दिया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। अब कोर्ट को तय करना है कि पति का पत्नी से जबरन संबंध दुष्कर्म है या नहीं।
उल्लेखनीय है कि कि भारतीय कानून में मैरिटल रेप अपराध नहीं है। हालांकि, एक लंबे समय से इसे अपराध घोषित करने की मांग कई संगठन कर रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने याचिका दायर कर इसे आईपीसी की धारा-375 (दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म के तौर पर लिए जाने की मांग की थी। हाईकोर्ट में दोनों जजों की इस मामले पर सहमति नहीं थी जिसके बाद कोर्ट ने 3 जजों की बेंच में भेजने का निर्णय लिया।