प्रजासत्ता नेशनल डेस्क |
चुनाव में राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त सेवाओं की घोषणाओं को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने सरकार से सर्वदलीय बैठक के जरिए इस मुद्दे पर एक राय बनाने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इस मालमे में एक विशेषज्ञ कमेटी बनाए जाने की बात कही है।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस कमेटी में वित्त आयोग, नीति आयोग, रिजर्व बैंक, लॉ कमीशन, राजनीतिक पार्टियों समेत दूसरे पक्षों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए। कोर्ट आज इस पर फैसला सुना सकता है। इससे पहले सुनवाई के दौरान इस मामले को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने जरूरी बताया है। वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि मुफ्त में कुछ भी बांटने से इसका बोझ आम जमता और टैक्स पेयर पर आता है। कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर चर्चा की जरूरत है क्योंकि देश के कल्याण का मसला है।
अदालत ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों का जनता से मुफ्त की रेवड़ियों का वादा और वेलफेयर स्कीम के बीच अंतर करने की जरूरत है। सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के दौरान साफ-साफ कहा कि मुफ्त की रेवड़ियों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) समेत कई दल एक ही तरफ दिख रहे हैं। वहीँ आम आदमी पार्टी (आप), डीएमके और वाईएसआर कांग्रेस मुफ्त की रेवड़ियों पर रोक की मांग वाली याचिका का विरोध कर रहे हैं. बता दें कि अदालत वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में सुविधाएं प्रदान करने के वादों का विरोध किया गया है।
बता दें कि निर्वाचन आयोग ने भी कहा कि इस बाबत नियम कायदे और कानून बनाने का काम उसका नहीं बल्कि सरकार का है। वहीं सरकार का कहना है कि कानून बनाने का मामला इतना आसान नहीं है। कुछ विपक्षी पार्टियां इस मुफ्त की घोषणाएं करने को संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकार का अंग मानती हैं। आज सबकी निगाहें कोर्ट के फैसले पर टिकी होंगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चीफ जस्टिस की अगुआई वाली पीठ इस समस्या से निपटने का क्या नायाब और सटीक रास्ता सुझाती है।
वहीं हाल ही में चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का वायदा करने वाली राजनीतिक पार्टियो की मान्यता रदद् करने की मांग वाली अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। सीजेआई ने कहा था कि सवाल ये है कि अदालत के पास शक्ति है, आदेश जारी करने की, लेकिन कल को किसी योजना के कल्याणकारी होने पर अदालत में कोई आता है कि यह सही है।
सीजेआई ने कहा कि ऐसे में यह बहस खड़ी होगी कि आखिर न्यायपालिका को क्यों हस्तक्षेप करना चाहिए। सीजेआई ने कहा था कि फ्रीबीज पर रोक के लिए हम चुनाव आयोग को कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं देने जा रहे हैं, लेकिन इस मामले में चर्चा की जरूरत है। यह निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। मान लीजिए केंद्र एक ऐसा कानून बनाता है, जो राज्य मुफ्त नहीं दे सकते, क्या तब हम यह भी कह सकते हैं कि इस तरह का कानून न्यायिक जांच के लिए खुला नहीं है।