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बेरोजगारी की समस्या

बेरोजगारी की समस्या

नरेंद्र कुमार शर्मा| शिमला
यूँ तो वर्तमान समय संपूर्ण मानव जाति के सबसे कठिन और चुनौती पूर्ण है। लेकिन उसके बाबजूद आज भारतवर्ष अनेक समस्याओं से जूझ रहा है जिसमें पर्यावरण प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण,छुआ-छूत,जाति,धर्म ,घूसखोरी और दहेज़ प्रथा जैसी समस्याएँ हैं।लेकिन अगर इन सभी समस्याओं के निराकरण बात की जाए तो इसका एक ही विकल्प है “हर हाथ के लिए काम “अर्थात उपरोक्त सभी समस्याओं का कारण है बेरोजगारी।

आज बेरोजगारी विकराल रूप धारण कर चुकी है। बेरोजगारी एक ऐसा दानव बन चुका है जो मुँह खोले देश के स्वर्णिम भविष्य को अपने काल का ग्रास बना रहा है। बढ़ती बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है जो केवल अकेली समस्या है लेकिन अपने साथ समस्याओं का अम्बार समेटे आती है।

हर हाथ को काम न मिल पाना बेरोजगारी कहलाती है।जब तक हर हाथ के लिए काम नहीं मिलेगा वो हाथ गलत कार्य के लिए बढ़ेंगे इस बात को हम किसी भी सूरत नकार नहीं सकते।चूंकि अपने और अपने परिवार के भरण -पोषण के लिए मानव तो मानव बल्कि पशु भी हिंसक बन जाता है।यही कारण है कि आज जाती,धर्म और मजहब के चंद ठेकेदार इन बेरोजगार युवाओं को झांसा देकर अपने निजी स्वार्थ के लिए प्रेरित करते हैं।इतना ही नहीं आज दुरव्यसनों के कारोबारी देश औरतें इस स्वर्णिम भविष्य को अपने आगोश में ले रहा है।और हमारा भविष्य रोजगार ओर उदर ज्वाला को शांत करने के लिए इन गलत राह की ओर आकर्षित हो रहा है।

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वैसे तो हमारे संविधान में हर हाथ के लिए काम के लिए सरकार को बाध्य किया गया है।संविधान के अनुरुप देश व प्रदेश सरकारों का उत्तरदायित्व तय किया गया है कि शिक्षा,स्वस्थ्य और रोजगार का सृजन करवाए।लेकिन आज अगर हमारे देश की राजनीति इतनी दूषित हो चुकी है कि राजनीति मात्र प्रलोभन का मीठा लॉलीपॉप बनकर रह गया है।

कोई भी राजनीतिक दल बेरोजगारी को मात्र चुनावों को जितने के लिए हमारे देश के पढ़े-लिखे बेरोजगरों को आकर्षित करने के लिए मुद्दा बनाकर सत्ता को हथियाने का मार्ग समझ चुके हैं।चुनावों के समय हर दल का प्रत्याशी या यूँ कहें कि हर दल बेरोजगारों को कभी पचास हजार ,कभी एक लाख तो कभी दो लाख नौकरियां प्रतिवर्ष देने का लॉलीपॉप थमाकर सत्ता काबिज करने का हथकण्डा समझता है।और इन हथकण्डे से वो सत्ता भी प्राप्त कर लेते हैं।

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लेकिन उस लॉलीपॉप को चुस्ते हुए देश के उस स्वर्णिम भविष्य के पांच वर्ष अन्धकूप में चले जाते हैं।आखिर परिणाम शुन्य।चूंकि देश के नेता शायद इस बात को भलीभांति जानते हैं कि अगर हर हाथ के लिए काम मिल गया तो हमारी राजनीतिक सभाओं में कौन शिरकत करेगा? मेरा व्यक्तिगत मत है कि आज अगर इस विकराल रूप धारण करने वाली समस्या बेरोजगारी पर देश के नेताओं के साथ -साथ नीति निर्धारकों ने कोई ठोस उपाए अमल में नहीं लाए तो कुण्ठित होकर देश का स्वर्णिम भविष्य इन सभी का घरों से बाहर निकलना मुश्किल कर देगा।

अत: आज बेरोजगारी से निपटने के लिए त्वरित महत्वपूर्ण और प्रभावी कदम उठाने की अवश्यक्ता है।कहीं ऐसा न हो कि नीति निर्माता और देश के नेता जिस युवा पीढ़ी को देश के भविष की दुहाई देते हैं वो युवा पीढ़ी बेरोजगारी के आक्रोश गलत राह को चुनने के लिए बाध्य हो जाए जिसके परिणाम न देश के हित में हो न देश की राजनीति के हित में।

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