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Atal Tunnel ने जनजातीय क्षेत्र लाहौल में पर्यटन की तस्वीर बदल दी,

Atal Tunnel ने जनजातीय क्षेत्र लाहौल में पर्यटन की तस्वीर बदल दी,

Atal Tunnel: मनाली को लाहौल से जोड़ने वाली दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग “अटल सुरंग” ने शीत मरुस्थल के रूप में प्रसिद्ध बर्फीली लाहौल घाटी में पर्यटन की तस्वीर बदल दी है। यह जानकारी राज्यसभा सांसद प्रोफेसर (डॉक्टर) सिकंदर कुमार द्वारा लिखी गई पुस्तक “मोदी युग में आर्थिक सशक्तिकरण” में दी गई है, जिसका विमोचन पिछले हफ्ते उपराष्ट्रपति श्री सी. पी. राधाकृष्णन द्वारा किया गया।

इस पुस्तक में “अटल सुरंग” के बारे में लिखा है कि इस सुरंग से लाहौल में साल भर पर्यटन सीजन शुरू हो गया है, जिससे लाहौल की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आया है। इस सुरंग को औसतन एक लाख पर्यटक प्रति माह पार करते हैं। उन्होंने लिखा है कि यह सुरंग लाहौल क्षेत्र के लिए आर्थिक उत्प्रेरक के रूप में काम कर रही है, वहीं दूसरी ओर यह शस्त्र बलों को लद्दाख के लिए वैकल्पिक संपर्क मार्ग भी प्रदान कर रही है।

सीमा सड़क संगठन द्वारा 3200 करोड़ की लागत से वर्ष 2020 में तैयार की गई इस सुरंग से मनाली और केलांग के बीच कुल दूरी 116 किलोमीटर से घटकर 71 किलोमीटर रह गई है और मनाली-लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो गई है। लाहौल के साथ-साथ यह लद्दाख और सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य रसद और पर्यटकों की कनेक्टिविटी को सुगम बनाती है, जिससे लाहौल के साथ-साथ लेह की अर्थव्यवस्था की भी गति मिली है।

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वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में 10,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित सबसे लंबी सुरंग के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाली इस सुरंग में वेंटिलेशन, आपातकालीन निकासी सुरंग, अग्नि नियंत्रण प्रणाली और निरंतर वायु गुणवत्ता निगरानी सहित विश्व की बेहतरीन उन्नत सुरक्षा प्रणालियाँ हैं।

राज्यसभा सांसद प्रोफेसर (डॉक्टर) सिकंदर कुमार ने “मोदी युग में आर्थिक सशक्तिकरण” में लिखा है कि दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में आम जनमानस को आगमन की सुगम सुविधा प्रदान करने के लिए पर्वतमाला रोपवे कार्यक्रम में 1.25 करोड़ रुपये की लागत से आगामी पांच वर्षों में 1200 किलोमीटर लंबी 250 से अधिक रोपवे परियोजनाओं का विकास किया जाएगा।

पर्वतमाला रोपवे कार्यक्रम के अंतर्गत हिमाचल के पर्यावरण के अनुकूल, मनोरम और सुगम यात्रा के लिए विश्व स्तरीय प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए कुल 57.1 किलोमीटर लंबाई की 7 रोपवे परियोजनाओं का निर्माण 3,232 करोड़ रुपये की लागत से किया जाएगा। पर्वतमाला रोपवे कार्यक्रम के अंतर्गत 13.5 किमी लंबी पालमपुर-थातरी.छुंजा ग्लेशियर रोपवे पर 605 करोड़ रुपये की लागत आएगी।

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जिला सिरमौर में 8 किमी लंबी शिरगुल महादेव मंदिर से चुधर सड़क पर 250 करोड़, बिलासपुर जिले में लुन्हू-बंदला की 3 किमी लंबी सड़क, जिसकी लागत 150 करोड़ रुपये है। हिमानी से चामुंडा (जिला कांगड़ा) तक 6.5 किमी लंबी सड़क, जिसकी लागत 289 करोड़ रुपये है। बिजली महादेव मंदिर (जिला कुल्लू), जिसकी लंबाई 3.2 किमी है और जिसकी लागत 200 करोड़ रुपये है। भरमौर से भरमानी माता मंदिर तक 2.5 किलोमीटर लंबी सड़क, जिसकी लागत 120 करोड़ रुपये है। किल्लर से सच्च दर्रा (जिला चंबा) तक 20.4 किमी की सड़क, जिसकी लागत 1618 करोड़ रुपये है। का निर्माण किया जाएगा।

किताब में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल कनेक्टिविटी में गांवों को शहरों के बराबर खड़ा कर दिया है, जिसका हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों को विशेष लाभ मिला है। वर्ष 2015 और 2021 के बीच ग्रामीण इंटरनेट में 200 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2024 में 95.15% गांवों में इंटरनेट की पहुंच हो गई है और अब लगभग 40 करोड़ ग्रामीण इंटरनेट सुविधा का उपयोग कर रहे हैं।

देश के 954.40 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ताओं में से 398.35 मिलियन इंटरनेट उपभोक्ता ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। भारत नेट परियोजना ने 2.13 लाख ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी के साथ जोड़ा है। पिछले तीन वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल लेन-देन में 200% से अधिक की वृद्धि हुई है।

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पुस्तक में लिखा है कि 17 सितम्बर 2023 को 13,000 करोड़ रुपये की लागत से शुरू की गई पंचवर्षीय प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल को तराशने में गेम चेंजर साबित होगी। हिमाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के तहत तीन स्तरीय जांच के बाद अभी तक 1,83,245 अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। चयनित अभ्यर्थियों को वित्तीय सहायता के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम मंत्रालय के तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

शून्य बैंक बैलेंस से शुरू की गई प्रधानमंत्री जन धन योजना के अंतर्गत 53.13 करोड़ से ज्यादा बैंक खाते खोले जा चुके हैं, जिसमें से 55.6% महिलाओं के पास और 66.6% ग्रामीण एवं अर्ध-शहरी क्षेत्रों में हैं। ग्रामीण परिवारों की वित्तीय जरूरतों के लिए ओवरड्राफ्ट के रूप में 23,000 करोड़ से ज्यादा की राशि वितरित की जा चुकी है।
हिमाचल प्रदेश में लगभग 20 लाख जन धन खाते हैं।

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