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RBI New Rules: RBI के नए नियम: अधिग्रहण के लिए बैंक लोन, डिपॉजिट इंश्योरेंस में बदलाव और कॉर्पोरेट लोन की सीमा खत्म

RBI New Rules: RBI के नए नियम: अधिग्रहण के लिए बैंक लोन, डिपॉजिट इंश्योरेंस में बदलाव और कॉर्पोरेट लोन की सीमा खत्म

RBI New Rules: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अक्टूबर 2025 के पहले सप्ताह में बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र से जुड़े कई अहम नियमों में बदलाव की घोषणा की। इन बदलावों में अधिग्रहण के लिए बैंक लोन की अनुमति, डिपॉजिट इंश्योरेंस के नियमों में संशोधन, बिजनेस ग्रुप के लिए लोन सीमा हटाने और डेट इंस्ट्रूमेंट्स पर लोन की सीमा खत्म करने जैसे कदम शामिल हैं। ये फैसले 1 अक्टूबर को पेश मॉनेटरी पॉलिसी के दौरान और उसके बाद 7 अक्टूबर को जारी ड्राफ्ट नियमों के तहत सामने आए।

अधिग्रहण के लिए बैंक अब दे सकेंगे कर्ज
RBI ने मॉनेटरी पॉलिसी में अधिग्रहण (एक्विजिशन) के लिए फाइनेंसिंग के नए नियमों का ऐलान किया। पहले बैंकों को कंपनियों के अधिग्रहण के लिए कर्ज देने की अनुमति नहीं थी। इसका उदाहरण 2008 में टाटा मोटर्स का है, जब उसे जगुआर लैंड रोवर (JLR) के अधिग्रहण के लिए मॉरीशस से फंड जुटाना पड़ा था। तब तर्क था कि बैंकों की लोन देने की क्षमता का उपयोग भारत में कंपनियों की क्षमता विस्तार के लिए होना चाहिए। अब इस नए नियम से बैंक देश में अधिग्रहण के लिए कर्ज दे सकेंगे। यह कदम कॉर्पोरेट सेक्टर में निवेश और विस्तार को बढ़ावा दे सकता है।

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रिस्क-आधारित डिपॉजिट इंश्योरेंस: छोटे बैंकों पर बढ़ेगा बोझ
RBI ने डिपॉजिट इंश्योरेंस के नियमों में बदलाव किया है, जिसके तहत रिस्क-आधारित इंश्योरेंस प्रणाली लागू होगी। इससे बड़े बैंकों के लिए डिपॉजिट इंश्योरेंस की लागत कम होगी, लेकिन छोटे निजी बैंकों पर खर्च का बोझ बढ़ सकता है। पिछले पांच वर्षों में लक्ष्मी विलास बैंक (LVB), यस बैंक, RBL बैंक और इंडसइंड बैंक जैसे मामलों में RBI को हस्तक्षेप करना पड़ा। इन बैंकों को डूबने से बचाने के लिए RBI ने अहम भूमिका निभाई। हालांकि, बढ़े हुए इंश्योरेंस प्रीमियम के कारण छोटे बैंकों पर दबाव बढ़ सकता है, और उन्हें RBI से अतिरिक्त समर्थन की जरूरत पड़ सकती है।

बिजनेस ग्रुप के लिए लोन सीमा हटाई गई
RBI ने किसी बिजनेस ग्रुप को कुल बैंकिंग लोन की सीमा हटाने का फैसला किया है। पहले किसी बिजनेस ग्रुप को 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा लोन देने पर बैंकों को ज्यादा रिस्क वेट देना पड़ता था। यह सीमा कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट को बढ़ावा देने और बैंकों के जोखिम को कम करने के लिए लगाई गई थी। इस सीमा को हटाने से कॉर्पोरेट्स को बड़े पैमाने पर फंडिंग मिल सकेगी। हालांकि, RBI के कुछ पूर्व अधिकारियों का मानना है कि इस सीमा को 10,000 करोड़ से बढ़ाकर 20,000 करोड़ रुपये किया जा सकता था, ताकि जोखिम और विकास के बीच संतुलन बना रहे। फिर भी, यह कदम कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए स्वागतयोग्य है।

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डेट इंस्ट्रूमेंट्स पर लोन की सीमा खत्म
केंद्रीय बैंक ने डेट इंस्ट्रूमेंट्स पर लोन की सीमा को हटा दिया है, जिसे विशेषज्ञ एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं। इससे कंपनियों को फंड जुटाने में आसानी होगी। हालांकि, RBI ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर लोन पर रिस्क-वेट कम कर दिया है, जिसे कुछ विशेषज्ञ जोखिम भरा मान रहे हैं। भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर एक जोखिम वाला क्षेत्र है, और इसकी फंडिंग ज्यादातर सरकारी वित्तीय संस्थानों से होती है। निजी क्षेत्र की भागीदारी कम होने के कारण रिस्क-वेट कम करना आश्चर्यजनक है।

विदेशी कर्ज के नियमों में बदलाव
RBI ने कंपनियों के लिए विदेश से कर्ज जुटाने के नियमों में संशोधन का प्रस्ताव रखा है। यह कदम वैश्विक बाजारों से फंडिंग को आसान बनाने और भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए उठाया गया है। 7 अक्टूबर को RBI ने अलग-अलग श्रेणी के लोन के लिए पूंजी (कैपिटल) रिजर्व रखने के नियमों का ड्राफ्ट भी पेश किया, जिसका उद्देश्य बैंकों की वित्तीय स्थिरता को मजबूत करना है।

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क्या होगा असर?
इन बदलावों से भारतीय बैंकिंग और कॉर्पोरेट सेक्टर में बड़े पैमाने पर बदलाव की उम्मीद है। अधिग्रहण के लिए लोन की अनुमति से कंपनियां विस्तार में तेजी ला सकेंगी, वहीं डिपॉजिट इंश्योरेंस के नए नियम छोटे बैंकों के लिए चुनौती बन सकते हैं। बिजनेस ग्रुप की लोन सीमा हटने से बड़े कॉर्पोरेट्स को फायदा होगा, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर लोन पर रिस्क-वेट कम करने का फैसला जोखिम को बढ़ा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि RBI को इन नीतियों के कार्यान्वयन पर बारीकी से नजर रखनी होगी, ताकि वित्तीय स्थिरता और विकास का संतुलन बना रहे।

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