HP Panchayat elections: हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल जनवरी में समाप्त होने वाला है। हालाँकि, पंचायत चुनाव और पंचायत पुनर्गठन के मुद्दे पर राज्य निर्वाचन आयोग, सरकार और पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह आमने-सामने हैं। यह टकराव इसलिए सामने आ रहा है क्योंकि एक ओर जहाँ राज्य निर्वाचन आयोग ने सभी जिलों के उपायुक्तों को चुनाव की तैयारियाँ शुरू करने के निर्देश दिए हैं, वहीं सरकार ने भी सभी जिलाधिकारियों से पंचायत पुनर्गठन के प्रस्ताव 15 दिनों के भीतर देने को कहा है। इसके विपरीत, पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने कहा है कि नए पंचायतों का गठन नहीं होगा, बल्कि केवल मौजूदा पंचायतों में वार्डों का पुनर्सीमांकन किया जाएगा।
गौरतलब है कि राज्य में पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल आगामी जनवरी में पूरा हो रहा है। इसको देखते हुए राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनावी तैयारियाँ शुरू कर दी हैं और सभी उपायुक्तों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। वहीं, सरकार ने भी उपायुक्तों से पंचायत पुनर्गठन के लिए 15 दिनों के भीतर प्रस्ताव माँगे हैं और इस संबंध में अधिसूचना भी जारी की है। इसके बाद, इन प्रस्तावों पर विचार-विमर्श, आपत्तियाँ दर्ज करने और सुझाव लेने की प्रक्रिया शुरू होगी। सूत्रों के अनुसार, इस पूरी प्रक्रिया में डेढ़ से दो महीने का समय लग सकता है।
इस बीच, यह सवाल उठ रहा है कि क्या पंचायत चुनाव तय समय, यानी जनवरी में ही, कराए जा सकेंगे। पुनर्गठन प्रक्रिया की अनिश्चित समयसीमा को देखते हुए, इस पर अभी संशय की स्थिति बनी हुई है। हालाँकि, राज्य निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि चुनाव प्रक्रिया पंचायतों की मौजूदा (पुरानी) सीमाओं के आधार पर आगे बढ़ाई जा रही है और आयोग तय अवधि में चुनाव कराने के लिए पूरी तरह तैयार है। आयोग का कहना है कि समय पर चुनाव कराना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है।
वहीं, मीडिया रिपोर्ट के मुतबिक पंचायतीराज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने सरकार के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा कि प्रदेश में नई पंचायतें नहीं बनाई जाएंगी। इसके बजाय, केवल मौजूदा पंचायतों के भीतर वार्डों का पुनर्सीमांकन किया जाएगा, ताकि प्रशासनिक सुगमता और क्षेत्रीय संतुलन सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा कि यह कदम जमीनी स्तर पर शासन की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए उठाया जा रहा है।
राज्य में पंचायतों की कुल संख्या 3,577 ही बनी रहेगी, लेकिन कई पंचायतों का भौगोलिक दायरा और आकार बदल सकता है। पुनर्सीमांकन के बाद, कुछ वार्डों को उनके नजदीक की पंचायतों में शामिल किया जा सकता है, जिससे नागरिकों को प्रशासनिक सेवाओं के लिए कम दूरी तय करनी पड़ेगी। सरकार का मानना है कि इससे स्थानीय विकास योजनाओं का क्रियान्वयन अधिक प्रभावी और पारदर्शी होगा।
उल्लेखनीय है कि जनवरी 2025 में पंचायती राज विभाग ने नई पंचायतों के गठन के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। पूरे प्रदेश से 600 से अधिक प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। हालाँकि, जुलाई 2025 तक सुक्खू सरकार की कैबिनेट ने इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया। सरकार का तर्क था कि नए पंचायतों के गठन से जुड़े दावों और आपत्तियों के निपटारे में काफी समय लगेगा, जो चुनाव कार्यक्रम को प्रभावित कर सकता है। इसीलिए यह फैसला लिया गया कि चुनाव मौजूदा पंचायतों के ढाँचे के आधार पर ही कराए जाएँगे।
इसके अलावा, एक और महत्वपूर्ण मुद्दा आरक्षण रोस्टर का है, जो अभी तक जारी नहीं हुआ है। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, इसे चुनाव से 90 दिन पहले जारी करना आवश्यक है। वहीं, यदि पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू होती है, तो उसके बाद ही लोगों द्वारा दायर दावों का निपटारा किया जा सकेगा। इन सभी कारणों से, यह स्पष्ट होता है कि पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव, जो दिसंबर 2025 या जनवरी 2026 में होने की उम्मीद थे, में देरी हो सकती है।










