Digital Gold vs Physical Gold: त्योहारों की धूम में सोने की चमक इस बार कीमतों की तेज रफ्तार से फीकी पड़ रही है। दिवाली जैसे शुभ अवसर पर सोना खरीदने की परंपरा को 50% से अधिक की मूल्य वृद्धि ने प्रभावित किया है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में सोने की कीमतें अब तक 52% तक उछल चुकी हैं।
मंगलवार को वैश्विक बाजार में सोना 4,164.05 डॉलर प्रति औंस के अभूतपूर्व स्तर पर पहुंचा। भारत में तनिष्क की वेबसाइट पर शुक्रवार को 24 कैरेट सोने की दर 1,30,345 रुपये प्रति 10 ग्राम रही, और इस हफ्ते 1.60% की बढ़ोतरी दर्ज हुई। वैश्विक अनिश्चितताएं, भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक मंदी की आशंकाएं सोने को सुरक्षित पनाह बना रही हैं।
बता दें कि अमेरिका में ब्याज दरों में कमी की संभावना और व्यापारिक टैरिफ की चिंताएं निवेशकों को सोने में निवेश की ओर खींच रही हैं। ऐसे में उपभोक्ताओं को अपनी जरूरत, बजट और लक्ष्य के हिसाब से डिजिटल या भौतिक सोना चुनना चाहिए।
डिजिटल सोना:
डिजिटल सोना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए सोना खरीदने-बेचने और स्टोर करने का आधुनिक तरीका है। आप महज 1 रुपये से शुरुआत कर सकते हैं, और प्रदाता कंपनी इसे पूरी तरह सुरक्षित रखती है। ज्वेलरी ब्रांड्स और निवेश ऐप्स इसकी सुविधा देते हैं। इसकी खासियत है तत्काल बिक्री की क्षमता, यानी लिक्विडिटी, बिना भंडारण या चोरी की फिक्र के। 24 कैरेट शुद्ध सोना रीयल-टाइम कीमत पर मिलता है, जो छोटे-बड़े दोनों निवेशों के लिए आदर्श है।
टैक्स के लिहाज से यह फिजिकल सोने जैसा ही है, 12 महीने से कम होल्डिंग पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स आपकी इनकम स्लैब के अनुसार लगेगा, जबकि 12 महीने बाद 12.5% लॉन्ग टर्म टैक्स। खरीद पर 3% जीएसटी लागू होता है। मोबाइल वॉलेट, बैंक ऐप्स या ज्वेलरी साइट्स से आसानी से उपलब्ध, और गोल्ड ईटीएफ के माध्यम से भी निवेश संभव है। यह विकल्प व्यस्त जीवनशैली वालों के लिए मन की शांति देता है।
फिजिकल सोना:
दूसरी ओर, भौतिक सोना सिक्के, बार या आभूषणों के रूप में पारंपरिक निवेश है, जो शादियों और धार्मिक रीति-रिवाजों में खासा लोकप्रिय है। इसे घर या बैंक लॉकर में रखा जा सकता है, और इसमें सांस्कृतिक भावनाएं जुड़ी होती हैं।
फिजिकल सोने की खरीद पर 3% जीएसटी तो लगता ही है, गहनों में 10-20% तक मेकिंग चार्ज भी जोड़ जाता है, जो कुल लागत बढ़ा देता है। यानी आप सोने के वास्तविक मूल्य से कहीं ज्यादा चुकाते हैं। छोटी अवधि के निवेश के लिए यह कम फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि अतिरिक्त खर्चे रिटर्न को प्रभावित करते हैं।











