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जब पर्दा खून से लाल था, तब ‘जय संतोषी मां’ ने किया चमत्कार

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Flashback, Jai Santoshi Maa: इन दिनों नवरात्रि चल रहे हैं। मां दुर्गा के अलग अलग नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना, आराधना का समय है। आज शुक्रवार है। हालांकि, यह दिन मां चंद्रघंटा के नाम समर्पित है। लेकिन ऐसे खास पवन अवसर पर हम यहां एक ऐसी देवी की चर्चा कर रहे हैं, जिनकी पूजा का दिन भी शुक्रवार है। उलेखनीय है कि इस विषय फिल्म बनी और मील पत्थर साबित हुई। ये फिल्म है ‘जय संतोषी मां’ (Jai Santoshi Maa)। यह एक ऐसी फिल्म है, जिसने न सिर्फ दर्शकों का नजरिया बदला, बल्कि फिल्मकारों को भी सोचने पर बाध्य कर दिया। जय संतोषी मां भारतीय सिनेमा की एक कालजयी फिल्म है। यह फिल्म कैसे बनी, किन हालातों में बनी और इसके चलने की वजह क्या थी? जानिए-

भारतीय फिल्मों के जनक दादा साहब फालके ने जब ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखी, तो उन्हें खयाल आया कि कृष्ण पर फिल्म बनाई जा सकती है। तैयारियां करने से पहले उन्होंने पाया कि कृष्ण के जीवन में विस्तार अधिक है। उसे एक डेढ़ घंटे में समेटना कठिन है। रामायण की कहानी भी लम्बी है। पात्रों की संख्या, सेटिंग, बजट को ध्यान में रखकर उन्होंने ‘राजा हरिश्चंद्र’ की सरल कहानी पसंद की। इस फिल्म के बाद भारत की किसी भी भाषा में जो पहली फिल्म बनी, उसका आधार धार्मिक पौराणिक रहा। इनमें इस तरह का मसाला होता है। जो फिल्म को चलने में मदद करता है।

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Jai Santoshi Maa
Jai Santoshi Maa

‘जय संतोषी मां’ ने तोड़े सारे रिकॉर्ड

राम – कृष्ण के अलावा जिस देवता ने फिल्मकारों को सर्वाधिक आकर्षित किया, वह हैं शिव। नारद भी धार्मिक पौराणिक फिल्मों के प्रिय पात्र रहे हैं। लेकिन, सन 1975 में एक नई तरह की धार्मिक फिल्म आई , जिसने पिछली फिल्मों के सारे रिकॉड तोड़ दिए। हां, हम बात कर रहे हैं ‘जय संतोषी मां’ की। शुक्रवार की कथा पर आधारित इस फिल्म का निर्माण सतराम रोहरा ने किया था और निर्देशक थे विजय शर्मा। नायक – नायिका थे आशीष कुमार, कानन कौशल और भरत भूषण। फिल्म में गीत प्रदोष ने लिखे थे और संगीत दिया था सी. अर्जुन ने। अन्य प्रमुख कलाकार थे अनीता गुहा, महिपाल, लीला मिश्रा, बीएम व्यास, बेला बोस रजनी बाला।

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शोले बनाम जय संतोषी मां

जब फिल्म ‘शोले’ देश के सिनेमाघरों में आग बरसा कर हिंसा से पर्दे को लाल कर रही थी, तो दूसरी ओर कम बजट की धार्मिक फिल्म ‘जय संतोषी मां’ ने टिकट खिड़की पर चमत्कार कर दिखाया। इस फिल्म ने ‘शोले’ के बराबर और कहीं उससे ज्यादा कमाई की। सिर्फ आठ लाख में निर्मित फिल्म ने दो करोड़ का व्यवसाय किया।

अभिनेत्री सालों साल बनी रहीं देवी

‘जय संतोषी मां’ (Jai Santoshi Maa) को देखने के लिए महिलाओं के झुंड सिनेमाघरों तक जाते थे। पर्दे पर संतोषी मां के अवतरण पर आरती उतरना, नारियल तोड़ना और जय जय कार से सिनेमाघर मंदिर जैसे बन गए थे। फिल्म में संतोषी मां की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री अनीता गुहा जहां जातीं, वहां लोग उन्हें साष्टांग प्रणाम करने और पूजने लग जाते थे। इस भूमिका की बदौलत वे कई बरसों तक देवी बनी रही।

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‘जय संतोषी मां’ ने सेट किया एक नया ट्रेंड

जनश्रुति में संतोषी मां का बड़ा महत्व है। निर्माता-निर्देशक ने इस देवी पर “जय संतोषी मां” फिल्म बनाकर दुर्गा, काली, चंडी को ही देवी मानकर फिल्म बनाने वालों को एक नई राह दिखाई। पुराणों में संतोषी माता का कहीं भी जिक्र नहीं है। इस फिल्म की सफलता ने कई अनजान, अल्पज्ञात देवी-देवताओं के नाम पर फिल्में बनाने का रास्ता खोला।

गरबों में जमकर बजते हैं गीत

‘जय संतोषी मां’ (Jai Santoshi Maa) का स्थान आज भी भारतीय सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में है। इस फिल्म की सफलता में इसके सुरीले संगीत का भी काफी बड़ा योगदान था। इसके गीत आज भी नवरात्रि के गरबों में गाए जाते हैं।

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