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Electoral Bonds: इलेक्टोरल बॉन्ड बंद होने के बाद भी भाजपा को मिला रिकॉर्ड चंदा..!

Electoral Bonds: इलेक्टोरल बॉन्ड बंद होने के बाद भी भाजपा को मिला रिकॉर्ड चंदा..!

Electoral Bonds: इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2024 में गैर-संवैधानिक बताया था। इस योजना के खत्म होने के बाद यह सोचा गया था कि राजनीतिक दलों के चंदे पर असर पड़ेगा, लेकिन वर्तमान में सत्ता में बैठी भाजपा पर कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा। इलेक्टोरल बॉन्ड बंद होने के बाद 2024-25 में भाजपा को 6,088 करोड़ रुपये का दान मिला, जो पिछले वर्ष 2023-24 के 3,967 करोड़ रुपये की तुलना में लगभग 53 प्रतिशत अधिक है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा द्वारा चुनाव आयोग को 8 दिसंबर को जमा की गई रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी को इस अवधि में छह हज़ार अठासी करोड़ रुपये प्राप्त हुए। इसी अवधि में कांग्रेस को 522.13 करोड़ रुपये ही मिले, जो भाजपा की राशि से लगभग बारह गुना कम है। कांग्रेस सहित एक दर्जन विपक्षी दलों को कुल मिलाकर 1,343 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त हुआ, यानी भाजपा को इन सभी पार्टियों से मिली राशि का लगभग साढ़े चार गुना अधिक धन प्राप्त हुआ।

किससे सबसे अधिक चंदा मिला?
साल 2024-25 में भाजपा को मिले कुल चंदे का 61 प्रतिशत, यानी 3,744 करोड़ रुपये, विभिन्न चुनावी ट्रस्टों से प्राप्त हुआ। शेष 2,344 करोड़ रुपये व्यक्तिगत एवं कॉर्पोरेट दानदाताओं से आए।

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ट्रस्टों के अलावा, शीर्ष 30 दानदाताओं में प्रमुख कंपनियाँ भी शामिल थीं। सबसे अधिक 100 करोड़ रुपये का दान सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने दिया। इसके बाद रूंगटा सन्स प्राइवेट लिमिटेड ने 95 करोड़, वेदांता लिमिटेड ने 67 करोड़, मैक्रोटेक डेवलपर्स लिमिटेड ने 65 करोड़, डेराइव इन्वेस्टमेंट्स ने 53 करोड़, मॉडर्न रोड मेकर्स प्राइवेट लिमिटेड ने 52 करोड़ और लोटस होमटेक्सटाइल्स लिमिटेड ने 51 करोड़ रुपये दान दिए।

पिछले छह वर्षों में सर्वाधिक राशि
2024-25 में भाजपा को मिली राशि 2019-20 के बाद के पिछले छह वर्षों में सबसे अधिक है। रिपोर्ट में 20,000 रुपये से अधिक के सभी व्यक्तिगत दान शामिल हैं। कॉर्पोरेट कंपनियाँ चेक, डिमांड ड्राफ्ट या बैंक हस्तांतरण के माध्यम से दान दे सकती हैं, और दलों को ऐसे सभी दानों की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है।

चुनावी बॉन्ड योजना वर्ष 2017-18 में शुरू की गई थी और पिछले वर्ष तक यह दलों के लिए धन जुटाने का एक प्रमुख तरीका थी। इस योजना के तहत राजनीतिक दलों को कुल 16,000 करोड़ रुपये से अधिक का दान मिला, जिसमें से अधिकांश भाजपा को प्राप्त हुआ। योजना को असंवैधानिक घोषित करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और चुनाव आयोग को सभी दानदाताओं तथा प्राप्तकर्ता दलों के नाम सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था।

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चार ट्रस्टों ने जानकारी नहीं दी
रिपोर्टों के अनुसार, 20 दिसंबर 2025 तक पंजीकृत 19 चुनावी ट्रस्टों में से केवल 13 की चंदा रिपोर्ट चुनाव आयोग के पास उपलब्ध थी। नौ ट्रस्टों ने दलों को कुल 3,811 करोड़ रुपये दान देने की जानकारी दी है। पिछले वर्ष 2023-24 की तुलना में इस बार ट्रस्टों के माध्यम से मिले चंदे में 200% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं, चार ट्रस्टों – जनहित, परिवर्तन, जयहिंद और जयभारत – ने 2024-25 में कोई चंदा न देने की सूचना दी है।

अब चंदा कैसे दिया जा रहा है?
वर्तमान में, कॉर्पोरेट कंपनियाँ चेक, डिमांड ड्राफ्ट, यूपीआई या बैंक हस्तांतरण के माध्यम से दान दे सकती हैं। दलों को यह जानकारी अपनी योगदान रिपोर्ट और वार्षिक लेखा परीक्षण रिपोर्ट में चुनाव आयोग को देनी होती है। चुनावी ट्रस्टों के माध्यम से, कंपनियाँ एवं व्यक्ति किसी ट्रस्ट को दान देते हैं, जो बाद में उस धन को दलों को आवंटित करता है।

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उदाहरण के लिए, प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तेलुगु देशम पार्टी सहित कई दलों को दान दिया, किंतु 2024-25 में उसके कुल 2,668 करोड़ रुपये के दान का लगभग 82% भाजपा को गया।

इसी प्रकार, प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2024-25 में 917 करोड़ रुपये जुटाए, जिसमें से 914.97 करोड़ रुपये दान में दिए। इस राशि का 80.82% भाजपा को प्राप्त हुआ। इस ट्रस्ट के प्रमुख योगदानकर्ताओं में टाटा समूह की कंपनियाँ जैसे टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा स्टील लिमिटेड, टाटा मोटर्स लिमिटेड और टाटा पावर कंपनी लिमिटेड शामिल थीं।

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