Himachal CPS Case: हिमाचल प्रदेश में छ: मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) मामले (Himachal CPS Case) में सुप्रीमकोर्ट से पहली ही सुनवाई में अहम फैसला आया है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा नियुक्त हिमाचल प्रदेश के छ: मुख्य संसदीय सचिवों की अयोग्यता पर रोक लगा दी है। बता दें कि सीपीएस मामले पर सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई थी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने अगली सुनवाई तक हाई कोर्ट के उस निर्देश को स्थगित कर दिया, जिसमें संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया गया था। हिमाचल हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को “लाभ के पद” के अंतर्गत माना था।
लाइव लॉ की एक खबर के मुताबिक पीठ ने प्रतिवादियों को दो सप्ताह के भीतर अपने जवाबी हलफनामे दाखिल करने और उसके बाद राज्य सरकार को अपनी पुनरुत्तर याचिका दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।
सीजेआई की मौखिक टिप्पणी:
आदेश सुनाते हुए सीजेआई खन्ना ने कहा कि अगली सुनवाई तक किसी भी विधायक को सचिव के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए।
Himachal CPS Case में हाईकोर्ट का फैसला
उल्लेखनीय है कि हिमाचल हाईकोर्ट ने 12 नवंबर के अपने फैसले में हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को राज्य की विधायी शक्ति से बाहर मानते हुए रद्द कर दिया था। इसके साथ ही, 1971 के अधिनियम के तहत अयोग्यता से बचाव का प्रावधान भी असंवैधानिक करार दिया गया।
उच्च न्यायालय ने 12 नवंबर के अपने फैसले के माध्यम से हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 को राज्य विधानमंडल की विधायी क्षमता से परे मानते हुए खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 164(1-A) का उल्लंघन करता है, जो मंत्रिमंडल के आकार को सीमित करता है। कोर्ट ने यह भी माना कि संसदीय सचिवों को सरकारी फाइलों तक पहुंच, निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी और मंत्रियों जैसी सुविधाएं मिल रही थीं, जो असंवैधानिक है।
Himachal CPS Case में सुप्रीम कोर्ट का आदेश:
सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई तक हाई कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 50 के तहत किसी भी कार्रवाई को रोकने का आदेश दिया। आज, सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सुनवाई की अगली तारीख तक, फैसले के पैरा 50 में दिए गए अवलोकनों के अनुसार कोई और कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी।
पक्ष विपक्ष के तर्क
हिमाचल सरकार की तरफ से इस मामले में पक्ष रखने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी राज्य की ओर से पेश हुए। सिब्बल ने पीठ को बताया कि छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के कानूनों से संबंधित इसी तरह की याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने प्रतिवादियों की ओर से कैविएट पर दलील दी कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2022 में मणिपुर राज्य द्वारा पारित इसी तरह के कानून को द स्टेट ऑफ मणिपुर एंड ओर्स बनाम सुरजकुमार ओकराम एंड ओर्स में खारिज कर दिया था। इसलिए सिंह ने पीठ से कोई अंतरिम राहत न देने का आग्रह किया।
सीजेआई खन्ना ने कहा कि “अयोग्यता से सुरक्षा को खारिज करने के कारण के बारे में फैसले में कोई चर्चा नहीं की गई है। दूसरा कानून पारित किया गया था जिसमें कहा गया था कि यह लाभ के पद नहीं होगा, लेकिन इसे भी खारिज कर दिया गया, फैसले में कोई चर्चा नहीं की गई थी..”
मामले का नाम:
STATE OF HIMACHAL PRADESH AND ANR. Versus KALPANA DEVI AND ORS.
(SLP(C) No. 27211-27212/2024)
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