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Supreme Court: जानिए! हिमाचल के नक्शे से गायब होने की टिप्पणी करने वाले जस्टिस पार्डीवाला के तीन आदेशों पर CJI को क्यों करना पड़ा हस्तक्षेप..?

Supreme Court on Street Dog Case: सुप्रीमकोर्ट बोला- आवारा कुत्तों को रिहायशी इलाकों से हटाना ही होगा, मारने का नहीं दिया आदेश ..!

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जमशेद बुर्जोर पार्डीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ के एक महीने से भी कम समय में दिए गए तीन विवादास्पद आदेशों ने शीर्ष अदालत को असमंजस में डाल दिया है। इन आदेशों के कारण प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई को हस्तक्षेप करना पड़ा। जस्टिस पार्डीवाला, जो मई 2028 में CJI का पद संभालने वाले हैं, अपने इन फैसलों के कारण चर्चा में हैं। आइए, जानते हैं इन तीन मामलों के बारे में:

1. इलाहाबाद हाई कोर्ट जज पर टिप्पणी
जस्टिस पार्डीवाला ने एक दीवानी विवाद में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज प्रशांत कुमार की आलोचना की थी और उनकी सेवानिवृत्ति तक आपराधिक मामले छीनने का आदेश दिया था। इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जजों ने नाराजगी जताई, जिसके बाद CJI गवई ने जस्टिस पार्डीवाला को अपनी टिप्पणियों पर पुनर्विचार करने को कहा। 8 अगस्त को जस्टिस पार्डीवाला ने अपनी टिप्पणियां वापस लेते हुए स्पष्ट किया कि उनका इरादा जस्टिस प्रशांत को शर्मिंदा करना नहीं था।

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2. आवारा कुत्तों पर सख्त आदेश
आवारा कुत्तों के काटने से रेबीज की गंभीर समस्या को देखते हुए जस्टिस पार्डीवाला की पीठ ने दिल्ली-एनसीआर में सभी आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था। इस आदेश की पशु प्रेमियों और कल्याण संगठनों ने तीखी आलोचना की। विवाद बढ़ने पर CJI गवई ने यह मामला जस्टिस विक्रम नाथ की तीन जजों की पीठ को सौंपा, जिसने 22 अगस्त को इस आदेश को ‘बेहद कठोर’ बताते हुए कुत्तों को नसबंदी के बाद छोड़ने का निर्देश दिया।

3. हिमाचल के पारिस्थितिक असंतुलन पर टिप्पणी
28 जुलाई को जस्टिस पार्डीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिक असंतुलन पर चिंता जताते हुए कहा कि पर्यावरण की कीमत पर राजस्व नहीं कमाया जा सकता। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर स्थिति नहीं सुधरी, तो “हिमाचल प्रदेश नक्शे से गायब हो सकता है।” इस टिप्पणी के बाद यह मामला भी जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ को सौंपा गया।

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इन तीनों मामलों में जस्टिस पार्डीवाला के आदेशों ने न केवल विवाद खड़ा किया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर भी असमंजस की स्थिति पैदा की, जिसके चलते CJI को हस्तक्षेप करना पड़ा।

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