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नालागढ़ विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबला, इस वजह से मजबूत नज़र आ रही भाजपा

नालागढ़ विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबला, इस वजह से मजबूत नज़र आ रही भाजपा

प्रजासत्ता ब्यूरो।
हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला की नालागढ़ विधानसभा सीट महत्वपूर्ण सीट है, जहां 2017 में भारतीय राष्ट्रीय का‍ँग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इस बार नालागढ़ विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है। कांग्रेस और बीजेपी के वर्चस्‍व वाली इस सीट पर इस बार चुनाव बेहद दिलचस्प रहने वाला है। जिसके चलते सभी राजनीत‍िक दलों की न‍िगाहें ट‍िकी हैं।

साल 2017 के चुनावों में कांग्रेस के लखव‍िंद्र स‍िंह राणा ने बीजेपी के के.एल. ठाकुर को शिकस्त दी थी, उस समय बाबा हरदीप कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लडे और तीसरे स्थान पर रहे।

लेक‍िन इस बार परिस्थितियां बिल्कुल अलग है। कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए लखव‍िंदर स‍िंह राणा बीजेपी के ट‍िकट पर चुनावी मैदान में हैं, और भाजपा से बागी होकर पूर्व विधायक के.एल ठाकुर आज़ाद चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा बाबा हरदीप सिंह इस बार कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में डटे हुए हैं।

वहीं पंजाब में मिली जीत के बाद आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ मैदान में है, ज‍िसने धर्मपाल चौहान को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है। उन्हे उम्मीद है कि पंजाब में मिली जीत का असर सीमा क्षेत्र होने के चलते उन्हें मिल सकता है। धर्मपाल चौहान कांग्रेस छोड़ आप में शामिल हुए हैं। वो नालागढ़ से जिला परिषद का चुनाव भी जीते हैं। यहां से बसपा और अन्य आजाद प्रत्याशी भी मैदान में हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला नालागढ़ से भाजपा के उम्मीदवार लखविंद्र राणा व कांग्रेस से हरदीप बावा, और आज़ाद उम्मीदवार के. एल.ठाकुर के बीच है हैं। तीनों ही नालागढ़ के कद्दावर नेता हैं।

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नालागढ़ में कांग्रेस का अधिकतर दबदबा रहा है। यहां से सात बार कांग्रेस के विधायक चुने गए हैं, जबकि चार बार भाजपा तथा एक बार जनता दल का विधायक चुना गया है। पिछले विधानसभा चुनाव पर नज़र डाले तो भाजपा की टिकट पर केएल ठाकुर को 24630 व कांग्रेस उम्मीदवार लखविंद्र राणा को 25872 वोट मिले थे। नालागढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी हरदीप बावा को भी कम नहीं आंका जा सकता है। हरदीप बावा ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर करीब 12 हजार से ज्यादा वोट लिए थे। बावा इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि पिछली बार कांग्रेस टिकट पर विधायक बने लखविंद्र राणा इस बार भाजपा प्रत्याशी हैं। वहीं भाजपा के के. एल. ठाकुर आजाद मैदान में है।

अब अगर मौजूदा चुनावी समीकरण को बात करे तो लखविंदर राणा की इस विधानसभा में अपनी पकड़ मजबूत है उनका अपना वोट बैंक लगभग 15 हजार से शुरू होता है। जबकि पिछले चुनाव में उन्हें
25 हजार से अधिक मत मिले थे जिसमे से अगर कांग्रेस का केडर वोट निकाल लिया जाए तो आंकड़ा घट जाता है। चूंकि वह इस बार भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ जरूर रहें है लेकिन भाजपा से बागी के. एल.ठाकुर भी भाजपा की वोट मे आधे से ज्यादा सेंधमारी कर रहे हैं ऐसे में मुकाबला दिलचस्प हो गया है। क्योंकि कहीं अन्य जाने की बदले कांग्रेस का केडर वोट कांग्रेस प्रत्याशी को पड़ेगा। ऐसे में पिछला चुनाव आज़ाद लड़ने वाले बाबा हरदीप का वोट प्रतिशत बढ़ता नज़र आता है। आप में शामिल धर्मपाल चौहान भी पहले कांग्रेस में थे तो ऐसे में कांग्रेस के वोट में वो घात लगाने की कोशिश कर सकते हैं, हालांकि इससे उन्हें ज्यादा फायदा होता नज़र नही आ रहा है।

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नालागढ़ विधानसभा से अगर वोटरों का जोड़ घटाव किया जाए तो तो यह मुकाबला पूरी तरह से त्रिकोणीय बन जाता है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि इस बार चुनाव में किसका पलड़ा ज्यादा भारी होगा इसका जवाब भी हम आपको बताने की कोशिश करते है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से बागी और पूर्व विधायक हरिनरायण सैनी के भतीजे हरप्रीत सैनी भी चुनावी मैदान में थे और उन्होंने 5 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे जो इस बार के चुनाव में बड़े अहम साबित होंगे। जिस तरफ उन वोटरों का झुकाव होगा वही नालागढ़ सीट से बाजी मरेगा। मौजूदा समय में हरप्रीत सैनी भाजपा में ही लेकिन खुलकर लखविंद्र राणा का समर्थन नहीं कर रहे है। हलांकि स्वर्गीय मंत्री हरि नारायण सैणी की पत्नी गुरनाम कौर भी अब भाजपा के समर्थन में उतर आई हैं। ऐसे में जिस तरफ भी वह वोटर जायेंगे उस उम्मीदवार का पलड़ा निश्चित तौर भारी नज़र आता है।

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विधानसभा के समीकरण को देखते हुए उम्मीद यह है की वह वोट भाजपा की झोली में गिरेगा, लेकिन भाजपा का वोट बैंक अगर नए प्रत्याशी की जगह अपने पुराने उम्मीदवार की तरफ शिफ्ट होता है तो भाजपा की जीत मुश्किल होगी, विधानसभा के मौजूदा स्थिति पर पर नज़र डाले तो पलड़ा भाजपा उम्मीदवार का ज्यादा भारी नजर आता है। चूंकि यह विधानसभा आरक्षित नही है, ऐसे में सवर्ण आंदोलन और उनके वोट बैंक का फर्क पड़ता नही दिखा रहा रहा है।

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