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कांस्टेबल वीरेंद्र की शहादत, हर बार पुलिस हर जगह पुलिस सबसे आगे पुलिस

प्रजासत्ता ब्यूरो शिमला।
हर बार पुलिस,हर जगह पुलिस,सबसे आगे पुलिस
फिर भी सरकार नहीं सुन रही पुलिस के कर्मचारियों की व्यथा। आखिर पुलिस को क्यूँ बलि का बकरा बना दिया जाता है न उन्हें 8 साल के बाद मिलने वाली ग्रेड पे का समय काल घटा कर 2 साल किया जा रहा अन्य विभागों की तर्ज पर न ही उन्हें कोई विशेष सुविधायें। जबकि कोरोना काल में सबसे आगे सिर्फ़ पुलिस थी जो बिना कुछ सोचें समझे अपने परिवार को पीछे छोड़ कर अपना कर्तव्य निभा रही थी न जाने उनके कितने ही साथी उस दौरान अपने घरों से दूर रहे, अपने घर के बुजुर्गों की देखरेख नहीं कर पाये यहां तक कि अपने छोटे-छोटे बच्चों से भी नहीं मिल पाये।

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वर्दी शरीर पर हो तो एक हौंसला भले ही इनकी अपनी ही पीठ थपथपाता हो पर सीने में धड़कने वाला दिल तो आम इंसान जैसा ही है। इस बात को सिर्फ़ वर्दीधारी ही भाँप सकता है कि अपना फ़र्ज़ / कर्तव्य निभाया परंतु सरकार कब इन लोगों का इंसाफ़ करेगी। कब तक 13 माह का वेतन इन्हें नये स्केल के अनुरूप मिलेगा। इन बातों की चर्चा हमेशा से होती आयी है और होती रहेगी यदि सरकार को अनुबंध काल कम नहीं करना है तो अन्य विभागों की तरह ड्यूटी का समय भी 8 घण्टे कर दें। जिससे की इनमें कोई रोष न रहे ।

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अन्य सभी विभाग सरकार की नीतियों का विरोध करते है परंतु पुलिस हमेशा आन्दोलनकारियों से मंत्रीमण्डल की सुरक्षा करती है फिर भी बहुत शर्म की बात है की इन्हें नज़रंदाज़ किया जाता है।
पुलिस दिन रात हर प्रकार ड्यूटी करती है। मुख्यमंत्री से लेकर हर छोटे बड़े नेता के साथ सुरक्षा कर्मी दिन रात होते है । फिर भी उन्हें किसी भी प्रकार की कोई भी सुख सुविधाएँ नहीं दी जाती हैं। कभी किसी अन्य विभाग के कर्मचारी को दिन रात ड्यूटी करने के लिए कहा जाये तो दूसरे ही दिन उनका एक समूह सरकारी कार्यालय में धारना दे देगा।

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भले ही पुलिस सार्वजनिक तौर पर सरकार का विरोध न जता पाये पर दिलों में मलाल तो रखती होगी। सरकार को इनकी सेवाओं के अनुरूप इन्हें वेतन व सुविधायें देनी चाहिये वरना यह बगावत सार्वजनिक तो नहीं होगी पर चुनाव में मताधिकार के माध्यम से जरूर की जा सकती है।

मुझे महिलाओं से जुड़े विषयों पर लिखना बेहद पसंद है। महिलाओं की ताकत, उनकी चुनौतियों और उनकी उपलब्धियों को उजागर करने में विश्वास करती हूँ। मेरे लेखन का उद्देश्य महिलाओं की आवाज़ को मजबूती से पेश करना और समाज में उनकी भूमिका को पहचान दिलाना है।

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