Himachal News: हिमाचल प्रदेश की 5 बीघा भूमि नियमितीकरण नीति को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने हिमाचल हाईकोर्ट के उस फैसले पर अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखने को कहा है, जिसमें इस नीति को असंवैधानिक बताकर रद्द किया गया था।
हाईकोर्ट ने 5 अगस्त को पूनम गुप्ता बनाम हिमाचल मामले में भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए को खारिज कर दिया था। अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। यह याचिका सीपीआईएम सचिव और हिमाचल किसान सभा के पूर्व महासचिव डॉ. ओंकार शाद ने दायर की है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने बताया कि 16 सितंबर को विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की गई थी। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके हस्तक्षेप आवेदन को मुख्य याचिका के साथ जोड़ दिया और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। डॉ. शाद ने इसे किसानों के हित में बड़ा कदम बताया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को सभी अतिक्रमणों के खिलाफ बेदखली शुरू करने का निर्देश दिया था। यह धारा 163-ए जमीन के दाखिल-खारिज और रिकॉर्ड सुधार जैसे प्रशासनिक मामलों से जुड़ी है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा कि हाईकोर्ट का फैसला प्रशासनिक समस्याएँ पैदा करेगा और किसानों व ग्रामीण भू-धारकों पर बुरा असर डालेगा।
क्या है 5 बीघा नियमितीकरण नीति?
हिमाचल में 2002 में शुरू हुई इस नीति के तहत सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों से आवेदन मांगे गए थे। इसके लिए 1.65 लाख से ज्यादा लोगों ने आवेदन किया था।
तत्कालीन भाजपा सरकार ने भू-राजस्व अधिनियम में बदलाव कर धारा 163-ए जोड़ी थी, जिसके तहत 5 से 20 बीघा तक जमीन को नियमित करने का प्रावधान था। अगस्त 2002 में हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने इस प्रक्रिया को जारी रखने की इजाजत दी थी, लेकिन पट्टा देने से इनकार कर दिया था।
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