Rohru Suicide Case: हिमाचल के रोहड़ू उपमंडल के चिड़गांव इलाके के लिम्बरा गांव में 12 साल के दलित बच्चे की दर्दनाक मौत के मामले में पुलिस ने आखिरकार बड़ा कदम उठाया। जातिगत अपमान और मारपीट के आरोप में आरोपित महिला को बीती रात गिरफ्तार कर लिया गया। हिमाचल हाईकोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज करने के बाद चिड़गांव थाने की टीम ने कार्रवाई की। आज उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा।
डीएसपी रोहड़ू प्रणव चौहान ने गिरफ्तारी की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि गिरफ्तार आरोपित महिला को न्यायलय में पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मामला गंभीर है इसलिए पुलिस इस मामले पर गंभीरता और जिम्मेदारी से जांच को आगे बढ़ा रही है। अभी कुछ पहलुओं पर जांच चल रही है। इस मामले में अभी तक जो भी निष्पक्ष जाँच हुई है उसे हमने हाईकोर्ट के सामने रखा है। जिसे माननीय हाईकोर्ट ने स्वीकार किया है।
उल्लेखनीय है कि बीते 14 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत को खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि एससी-एसटी एक्ट की धारा 18 के नियमों के चलते यह जमानत वैध नहीं है। जस्टिस राकेश कैंथला की अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई थी। इसके बाद आरोपित ने 15 अक्टूबर को पुलिस के सामने आत्म समर्पण करने की याचिका भी हाईकोर्ट में लागे थी लेकिन हाईकोर्ट ने उसे भी ख़ारिज कर दिया। जिसके बाद पुलिस ने बुधवार की रात को उसे गिरफ्तार कर लिया।
क्या है मामला.?
बता दें कि 16 सितंबर को बच्चे ने कथित तौर पर भेदभाव से तंग आकर जहर निगल लिया था। परिजनों का आरोप है कि गांव की कुछ महिलाओं ने उसे जाति के नाम पर थप्पड़ मारे, गौशाला में कैद किया और शुद्धि के बहाने परिवार से बकरे की मांग की। गंभीर हालत में उसे शिमला के आईजीएमसी ले जाया गया, जहां अगले दिन रात को इलाज के दौरान मौत हो गई।
शुरूवात में पुलिस ने मामला साधारण धाराओं में दर्ज किया, लेकिन उत्पीड़न के सबूत मिलने पर 26 सितंबर को एससी-एसटी अत्याचार निवारण कानून की धाराएं जोड़ी गईं। अनुसूचित जाति आयोग ने इस घटना पर सख्ती दिखाई। बुधवार को चेयरमैन कुलदीप कुमार धीमान रोहड़ू पहुंचे और अधिकारियों से पूरी जानकारी ली। उन्होंने जांच में सुस्ती पकड़ी, जिसके चलते एएसआई मंजीत को निलंबित कर दिया। पीड़ित परिवार को खतरे की आशंका पर सुरक्षा के आदेश जारी हुए।
क्या बोले अनुसूचित जाति आयोग चेयरमैन
कुलदीप कुमार धीमान ने कहा कि 20 सितंबर की एफआईआर में एससी-एसटी एक्ट की धाराएं न जोड़ना बड़ी चूक थी। परिवार ने शिकायत में ‘अछूत’ कहकर घर से निकालने और बकरे की मांग का जिक्र किया था, लेकिन पुलिस ने अनदेखी की। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से ही कानून लागू हुआ।1 अक्टूबर को एसडीपीओ रोहड़ू से तीन दिन में रिपोर्ट मांगी गई, जो देरी से 14 अक्टूबर को डीजीपी ऑफिस से मिली। आयोग ने एसडीपीओ से जवाब मांगा है। चेयरमैन ने जोर देकर कहा कि यह राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है, इसलिए निष्पक्ष और तेज जांच पर नजर रखी जाएगी।











