Kargil Vijay Diwas: देवभूमि हिमाचल को वीरभूमि के नाम से भी जाना जाता है। इस भूमि ने देश को कई वीर योद्धा दिए हैं, जिनके बलिदान की गाथा इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। इन्हीं योद्धाओं में से एक हैं कारगिल के पहले शरीद कैप्टन सौरभ कालिया (Captain Saurabh Kalia)। शहीद का परिवार दो दशक से अपने शहीद बेटे के साथ पाकिस्तान के द्वारा किये गये अमानवीय बर्ताव के बारे में न्याय दिलाने के लिये लड़ाई लड़ रहा है।
शहीद कैप्टन सौरभ कालिया का जन्म 29 जून 1976 को अमृतसर, भारत में हुआ था| इनकी माता का नाम विजया व पिता का नाम डॉ. एनके. कालिया है| इनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई। इन्होंने स्नातक उपाधि (बीएससी मेडिकल) कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, हिमाचल प्रदेश से सन् 1997 में प्राप्त की|
अगस्त 1997 में संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा द्वारा सौरभ कालिया का चयन भारतीय सैन्य अकादमी में हुआ, और 12 दिसंबर 1998 को वे भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फेंट्री) के साथ कारगिल सेक्टर में हुई।
तारीख 3 मई 1999, ताशी नामग्याल नाम के एक चरवाहे ने करगिल की ऊंची चोटियों पर कुछ हथियारबंद पाकिस्तानियों को देखा और इसकी जानकारी इंडियन आर्मी को आकर दी थी। 14 मई को कैप्टन कालिया पांच जवानों के साथ पेट्रोलिंग पर निकल गए। जब वे बजरंग चोटी पर पहुंचे तो उन्होंने वहां हथियारों से लैस पाकिस्तानी सैनिकों को देखा।
कैप्टन कालिया की टीम के पास न तो बहुत हथियार थे न अधिक गोला बारूद। और साथ सिर्फ पांच जवान। वे तो पेट्रोलिंग के लिए निकले थे। दूसरी तरफ पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या बहुत ज्यादा थी और गोला बारूद भी। पाकिस्तान के जवान नहीं चाहते थे कि ये लोग वापस लौटें। उन्होंने चारों तरह से कैप्टन कालिया और उनके साथियों को घेर लिया।
कालिया और उनके साथियों ने जमकर मुकाबला किया लेकिन जब उनका एम्युनेशन खत्म हो गया तो पाकिस्तानियों ने उन्हें बंदी बना लिया। फिर जो किया उसे लिखना भी मुश्किल है। उन्होंने कैप्टन कालिया और उनके पांच सिपाही अर्जुन राम, भीका राम, भंवर लाल बगरिया, मूला राम और नरेश सिंह की हत्या कर दी और भारत को उनके शव सौंप दिए|
कैप्टन सौरभ कालिया कारगिल युद्ध के थे पहले शहीद (Captain Saurabh Kalia was the first martyr of the Kargil war.)
कैप्टन सौरभ कालिया,कारगिल युद्ध के पहले शहीद, पहले हीरो। जिनके बलिदान से करगिल युद्ध की शुरुआती इबारत लिखी गई। महज 22 साल की उम्र में 22 दिनों तक दुश्मन उन्हें बेहिसाब दर्द देता रहा। सौरभ के पिता ने पिछले 21 सालों में इंसाफ की जो अपील 500 से ज्यादा चिट्ठियों के जरिए की हैं, उन कागजों में वो सभी दर्द दर्ज हैं।
पाकिस्तानियों ने सौरभ के साथ अमानवीयता की सारी हदें पार करते हुए उनकी आंखें तक निकाल ली और उन्हें गोली मार दी थीं। दिसंबर 1998 में आईएमए से ट्रेनिंग के बाद फरवरी 1999 में उनकी पहली पोस्टिंग करगिल में 4 जाट रेजीमेंट में हुई थी। जब मौत की खबर आई तो बमुश्किल चार महीने ही तो हुए थे सेना ज्वाइन किए।
कैप्टन सौरभ कालिया की शहादत को पूरा देश नहीं भूला है। वीरभूमि हिमाचल के वीर सपूत एवं कारगिल युद्ध में अग्रणी भूमिका निभाने वाले अमर शहीद कैप्टन सौरभ की शहादत पर देश को सदैव गर्व रहेगा।
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