Himachal News: क्या प्रदेश के छोटे और सिंगल बस ऑपरेटरों को व्यवसाय से बाहर करने की फ़िराक में है हिमाचल सरकार ?

प्रजासत्ता |
Himachal News: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा सरकारों की आपसी प्रतिस्पर्धा ने निजी बस परिवहन छोटे और सिंगल बस व्यवसाय से जुड़े लोगों को नजरअंदाज कर उनके हितों के बारे में सुध लेना ही छोड़ दिया है। अब तक की सरकारों (Himachal government) ने कभी भी निजी बस व्यवसाय को अपनी जिम्मेदारी या अपना एक क्षेत्र नही समझा। यही कारण है कि सरकार और परिवहन विभाग ने जब चाहा तब अपने आप नियम बना लिए और जब चाहा तब उसमे बदलाव कर दिए।

छोटे बस ऑपरेटरों की माने तो बसों के परिचालन में लगने वाली कौन सी चीज को सरकार ने अपनी नीतियों से प्रभावित नहीं कर दिया। ऑपरेटरों के अनुसार विभागों में बैठे अधिकारी कभी भी कुछ भी नियम बना कर लागू कर देते हैं,और कभी भी उनको वापिस कर लेते। इससे पुरे प्रदेश के लगभग सभी निजी बस ऑपरेटर प्रभावित होतें हैं। सरकार के आदेशों पर अधिकारीयों द्वारा लिए गए तुगलकी फरमानों से न जाने कितने छोटे एवम सिंगल निजी बस व्यवसाय से जुड़े लोग, न चाहते हुए भी इस व्यवसाय से बाहर होने को मजबूर हो गए और बेरोजगार की श्रेणी में आ गए।

परिवहन विभाग की तरफ से निजी बस ऑपरेटरों को विश्वास में न लेकर कुछ नियम लगाए गए जो एक या दो सालों में विरोध के बाद पुनसमिक्षा के बाद हटा दिए गए। उनमे से परमिट न ट्रांसफर करना, पुरानी बस को बदलने हेतु सात साल तक पुरानी बस ही खरीदने की शर्त के आलावा कई ऐसे फैंसले लिए गए जिससे छोटे और सिंगल बस ऑपरेटर बुरी तरह प्रभावित हुए। लेकिन सरकार और विभाग का ध्यान इनकी और नहीं गया।

विरोध और सरकार की किरकिरी के बाद परिवहन विभाग द्वारा बेशर्त ये नियम बाद में वापिस ले लिए गए पर इनके चपेट में आए वो छोटे और सिंगल बस ऑपरेटर को लाखों का नुकसान उठाना पड़ा। जिनकी अधिकतर बसें ग्रामीण क्षेत्रों और लिंक सड़कों पर ही चलती है और केवल नाम मात्र कमाई एवम बचत करती है। सरकार और विभाग के मनमर्जी के फैंसले के बाद नियमानुसार छोटे और सिंगल निजी बस ऑपरेटरों को नई बस लाना और अपनी पुरानी बस जो 7 साल के नियम के कारण स्क्रैप में आ गई। उससे से आर्थिक नुकसान उन्हें हुआ इसके लिए सरकार ने कभी नही सोचा।

इसके अलावा वह छोटे ऑपरेटर जो परमिट को बस के साथ अन्य के नाम ट्रांसफर न करने के नियम से चाह कर भी बस को बेच नहीं पाए उनको क्या हर्जाना या मुआवजा मिला। निजी बस ऑपरेटरों की मने तो कई ऐसे ऑपरेटरों ने बस खरीदारी और बेचने के लिए बयाना (खरीद से पहले की पूर्व राशि) का लेनदेन भी किया लेकिन नियमों में बदलाव और वापसी से तक़रीबन सभी ऑपरेटरों को लाखों का नुकसान उससे हुआ।

ऑपरेटरों के अनुसार प्रदेश में दो या तीन साल पहले तक जिन ऑपरेटर की बसें केवल अधिकतम ग्रामीण क्षेत्रों में चलती है । उन रूटों पर हिमाचल पथ परिवहन की बसों में महिलाओं को 50% किराया में छूट दे कर पूरी तरह से खत्म कर दिया गया या खत्म होने की कगार पर ला दिकर खड़ा कर दिया गया। ऑपरेटरों का कहना है कि प्रदेश के जिन छोटे और लिंक रूटों परछोटे और सिंगल बस ऑपरेटरों की निजी बस के आगे और पीछे के समय पर HRTC की बसें चलती है। उस पर से 50% किराया छुट की शर्त के कारण उनकी बसों में न मात्र ही सवारी बैठती है। जिससे कई बस ऑपरेटरों के तो तेल के पैसे भी पुरे नहीं हो पाते। पांच-दस-बीस और सौ बस वाले बड़े आपरेटर, जिनकी बसें नेशनल हाईवे या या स्टेट हाईवे पर चलती है, उनको भले ही इससे फर्क न पड़ता हो लेकिन दो या सिंगल बस ऑपरेटर इससे ज्यादा प्रभावित है।

ऑपरेटरों का कहना है कि हिमाचल के ग्रामीण क्षेत्रों में पहले ही बहुत कम सवारी अनुपात होने से अब सवारियों द्वारा स्वाबाभिक रूप से 50% कम किराए में एचआरटीसी में सफर करना बनता हैं जिस कारण प्राइवेट बसों को कभी कभार नाम मात्र पैसेंजर का परिणाम भुगतना पड़ रहा है। तेल खर्चा, टैक्स, बस सर्विस, चालक परिचालक की सैलरी, के खर्चों को अगर देखा जाये तो कई ऑपरेटर अपने खर्चे पर बस चला रहें है, लेकिन जो इस काबिल नहीं है वह अपना काम बंद कर बेरोजगार हो गए हैं।

बाबजूद इसके दूसरी तरफ परिवहन विभाग ने सब कार्यप्रणाली ऑनलाइन कर दी गई जिसमे अगर मासिक देनदारी नही दे पाते हैं तो नोटिस, टैक्स नहीं दिया तो पासिंग परमिशन नहीं मिलेगी, टाइम टेबल रिन्यू नहीं होगा,साथ ही कोई विभागीय काम नहीं होगा। बसों को इम्पाउंड करने की नौबत आएगी।

ऑपरेटरों के अनुसार एक निजी बस औसतन सरकार को 500 से 700 रुपये डीजल पर टैक्स 5000-8000 रूपये (ग्रामीण क्षेत्रों की) एसआरटी टैक्स, 4500 टोकन फ़ीस, 4000-6000 अड्डा एंट्री फीस, 50000-70000 इन्सोरेन्स और अन्य ग्रीन टैक्स इत्यादि देने के लिए बाध्य है। बेसक बस कमाए या नही इसमें सरकार से मदद या शिकायत या कुछ सहयोग का कोई प्रावधान नही है।

ऑपरेटरों का कहना है कि वे कभी भी लोगो को मिल रही 50% डिस्काउंट नीति के विरोध में नही है। सरकार सब बसों में यह स्कीम ले कर आए…..क्या कारण है कि केवल इंटर हिमाचल चलने वाली ही बसों में यह लागू की जा सकी बाहर जाने वाली बसे भी तो हिमाचल सरकार की ही है।

मान लिया जाए की डिस्काउंट नीति सरकार के अधीन क्षेत्र की है पर कम से कम जो निजी बसों के मालिक इस नीति से खत्म होने की कगार पर जा रहे है उनको उनकी इच्छा अनुसार सरकार के नियमों और प्रावधानों के तहत अपने रूट्स में ऐच्छिक परीवर्तन करने का एक मौका तो दे देना चाहिए जिस से की वो कुछ हद तक अपने व्यवसाय को बचाने और अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कामयाब हो सके। ऑपरेटरों के अनुसार जिस तरह के निर्णय अभी तक सरकार और विभाग ने लिए हैं उससे तो ऐसा ही लगता है कि हिमाचल सरकार  प्रदेश के छोटे और सिंगल बस ऑपरेटरों को व्यवसाय से बाहर करने की फ़िराक में है।

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