Himachal Politics: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनना अब केवल एक पद नहीं, बल्कि एक ऐसी चुनौती बन गया है, जो बाहर से सम्मानजनक दिखता है, मगर भीतर से जहर की तरह डरावना और बोझिल है। पार्टी के भीतर गुटबाजी, खींचतान और आलाकमान की अनिश्चितता ने इस पद को एक जुए की तरह बना दिया है, जिसमें जीत से ज्यादा हार का खतरा मंडराता है।
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस संगठन इन दिनों एक अजीब से दोराहे पर खड़ा है, जहाँ प्रदेश अध्यक्ष का पद अब केवल कुर्सी नहीं, बल्कि उलझनों की गठरी बन गया है। मौजूदा हालातों को देखकर लगता है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी लेना किसी मरे हुए सांप को गले लगाने जैसा है। जिस पद को कभी राजनीतिक कद और प्रभाव का केंद्र माना जाता था, वह अब ऐसा बोझ बन चुका है, जिसे न कोई संभालना चाहता है और न ही कोई छोड़ना।
उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2025 से हिमाचल कांग्रेस की पूरी संगठनात्मक संरचना, राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर तक भंग पड़ी है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, और उन्हें केवल अस्थायी “प्रभार” सौंपा गया है। नियमानुसार, नवंबर 2024 में नई कार्यकारिणी के गठन की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए थी, लेकिन आलाकमान ने उसी समय संगठन को भंग करने का फैसला लिया। इसके बावजूद, नई कार्यकारिणी के गठन की घोषणा आज तक टलती आ रही है।
सूत्रों के अनुसार, यह देरी गुटबाजी का नतीजा है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू, उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री और प्रतिभा सिंह के खेमे एक-दूसरे को मात देने में जुटे हैं। बीते वर्ष हुए राज्यसभा चुनाव में छह विधायकों की क्रॉस-वोटिंग से मिली हार ने आग में घी डालने का काम किया था उसके बाद जो हुआ था किसी से छिपा नहीं है। इसके बाद आलाकमान ने विस्तृत रिपोर्ट मांगी, लेकिन फैसला अब तक अधर में लटका हुआ है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री सुक्खू ने अगस्त 2025 में संकेत दिए थे कि नया अध्यक्ष अनुसूचित जाति से या मंत्रिमंडल के किसी सदस्य से चुना जा सकता है, ताकि संगठन और सरकार में सामंजस्य स्थापित हो। पूर्व सीएम और स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के बेटे मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी मांग उठाई है कि नया अध्यक्ष कम से कम दो-तीन जिलों में प्रभाव रखने वाला कद्दावर नेता होना चाहिए, वरना संगठन और कमजोर हो सकता है।
दूसरी ओर, प्रतिभा सिंह का हटना लगभग तय माना जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने आलाकमान को पत्र लिखकर नई कमेटी के गठन की सिफारिश की थी, जिसमें उनके करीबी नेताओं को शामिल करने की बात कही गई। राजनितिक जानकारों के अनुसार नए अध्यक्ष के चयन का मामला मंत्रिमंडल फेरबदल से भी जुड़ा हुआ है। माना जा रहा है कि नए अध्यक्ष के चयन के बाद कैबिनेट में खाली सीटें भरी जाएंगी, जिससे सुक्खू सरकार पर दबाव कम हो सकता है।
लेकिन सवाल वही है, कौन सा नेता इस “सांप” को गले लगाने को तैयार है? रोहित ठाकुर जैसे नाम चर्चा में हैं, जो संगठन को मजबूत करने का दावा करते हैं, लेकिन गुटबाजी की आग में झुलसने का डर सभी को सता रहा है।उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने स्पष्ट रूप से अध्यक्ष पद लेने से इंकार कर दिया है। मीडिया में उनके एक बयान के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने आलाकमान को भी सूचित कर दिया है कि वह इस जिम्मेदारी के इच्छुक नहीं हैं। हालांकि, नेता प्रतिपक्ष रहते हुए उन्होंने कांग्रेस को सत्ता में लाने में अहम भूमिका निभाई थी।
विधानसभा उपाध्यक्ष विनय कुमार और सुरेश कुमार जैसे कई नेता अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं, लेकिन उनमें संगठन को मजबूत करने की क्षमता कम ही नजर आती है। क्योंकि हिमाचल में पिछले कई दशकों से हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन की परंपरा रही है। ऐसे में सभी नेताओं को अंदाजा है कि मौजूदा सरकार को दोबारा सत्ता में लाना कितना मुश्किल होगा।
इसके अलावा कांग्रेस संगठन को प्रदेश में सरकार होते हुए भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिला, और भंग पड़ी कार्यकारिणी ने कार्यकर्ताओं को लगभग निष्क्रिय ही कर दिया है। इस स्थिति में अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेने की हिम्मत कोई भी बड़ा नेता खुलकर नहीं दिखा रहा। संगठन को खड़ा करने का दावा करने वाले नेता भी गुटबाजी की आग में झुलसने के डर से पीछे हट रहे हैं।
हिमाचल कांग्रेस इस समय एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। यदि आलाकमान ने जल्द और सटीक फैसले नहीं लिए, तो यह संकट मध्य प्रदेश, राज्यस्थान और अन्य राज्यों जैसी आंतरिक कलह में बदल सकता है। नेतृत्व के चयन में अब तेजी और स्पष्टता की जरूरत है, वरना यह पद सम्मान का प्रतीक नहीं, बल्कि बोझ बनकर रह जाएगा। आने वाले दिनों में दिल्ली से आने वाला फैसला ही हिमाचल कांग्रेस के आगे दशा और दिशा तय करेगा।











