New Labor Laws: भारत सरकार ने पुराने श्रम कानूनों को बदलकर चार नए श्रम संहिताएं लागू की हैं। सरकार का दावा है कि यह कदम कर्मचारियों और मजदूरों के हित में है, जबकि कई मजदूर संगठन इसे श्रमिक-विरोधी और उद्योग जगत को लाभ पहुँचाने वाला बता रहे हैं। 26 नवंबर को दस प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, संयुक्त किसान मोर्चा और ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के सदस्यों ने एक संयुक्त मंच बनाकर पूरे देश में इन नए श्रम कानूनों के विरोध में प्रदर्शन आयोजित किए।
केंद्र सरकार ने 21 नवंबर को कई ट्रेड यूनियनों की आपत्तियों को सुने बिना ही चारों श्रम संहिताओं को अधिसूचित कर दिया। ‘मजदूरी संहिता’ को तो साल 2019 में ही संसद से मंजूरी मिल गई थी, जबकि ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशा संहिता’, ‘सामाजिक सुरक्षा संहिता’ और ‘औद्योगिक सम्बन्ध संहिता’ को साल 2020 में पारित किया गया था। सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दावा किया कि इन संहिताओं से श्रम क्षेत्र में बड़े सुधार आएंगे और कर्मचारियों को बेहतर मजदूरी, दुर्घटना सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और समय पर वेतन भुगतान जैसी सुविधाएँ मिलेंगी।
मजदूर संगठनों में भड़का आक्रोश
सरकार के दावों के विपरीत, कई मजदूर संगठनों का मानना है कि नए कानूनों से श्रमिकों के शोषण में वृद्धि होगी और इन्हें पूंजीपतियों के दबाव में तैयार किया गया है। इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी जैसे प्रमुख श्रमिक संगठनों ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किए। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपे गए ज्ञापन में इस संयुक्त मंच ने आरोप लगाया कि ये संहिताएँ हड़ताल के अधिकार को सीमित करती हैं, यूनियन पंजीकरण को कठिन बनाती हैं और रजिस्टारों को यूनियनों का पंजीयन रद्द करने की व्यापक शक्ति देती हैं।
मुख्य आपत्तियाँ इस प्रकार हैं:
- छोटे उद्योगों को छूट: अब 300 तक के कर्मचारियों वाली कंपनियों को बंद करने या छंटनी के लिए सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं होगी, जबकि पहले यह सीमा 100 थी। श्रमिक संगठनों का मानना है कि इससे नौकरियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
- हड़ताल पर रोक: अब सभी प्रकार के कर्मचारियों को हड़ताल से 60 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य होगा, जो पहले केवल कुछ विशेष सेवाओं के लिए 15 दिन का था। इसके अलावा, किसी भी फैक्ट्री में केवल उसी यूनियन को मान्यता मिलेगी जिसके पास 51% श्रमिकों का समर्थन होगा।
- मौलिक अधिकारों का हनन: हिंद मजदूर सभा के हरभजन सिंह सिद्धू ने आरोप लगाया कि पुराने 44 श्रम कानूनों को समाप्त करके नई संहिताएँ लाई गई हैं, जिससे काम के घंटे, यूनियन बनाने और सामूहिक सौदेबाजी जैसे अधिकार प्रभावित होंगे।
- स्थायी नौकरी का खतरा: मजदूर संगठनों का कहना है कि ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट’ का प्रावधान स्थायी नौकरियों को समाप्त करने की साजिश है, क्योंकि नौकरी की अवधि अब कंपनियाँ तय करेंगी।
- महिला श्रमिकों के लिए अधूरे प्रावधान: महिलाओं को उनकी सहमति से रात में काम करने की अनुमति तो दी गई है, लेकिन सुरक्षा के ठोस उपायों को कंपनियों के भरोसे छोड़ दिया गया है। सीआईटीयू जैसे संगठनों का मानना है कि इससे महिला कर्मचारियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दिया ज्ञापन
इन नए कानूनों को लेकर सरकार और मजदूर संगठनों के बीच यह टकराव आने वाले दिनों में और तेज होने की आशंका है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दिए अपने ज्ञापन में मजदूर संगठनों के संयुक्त मंच ने आगाह किया कि ये नए संहिताएं श्रमिकों के हड़ताल के अधिकार को प्रभावी ढंग से समाप्त कर देती हैं। उनका तर्क है कि इनके लागू होने के बाद ट्रेड यूनियनों का पंजीकरण एक जटिल प्रक्रिया बन जाएगी और संगठनों की मान्यता को आसानी से रद्द किया जा सकेगा, क्योंकि रजिस्ट्रारों को अब यूनियनों का पंजीयन रद्द करने का व्यापक अधिकार प्राप्त हो गया है।
इसके अलावा, संहिताओं में श्रम न्यायालयों को समाप्त करके उनके स्थान पर ट्रिब्यूनल स्थापित करने का प्रावधान शामिल है। मजदूर संगठनों के अनुसार, इस बदलाव से श्रमिकों के लिए न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया काफी दुरूह और लंबी हो जाएगी। अपने ज्ञापन में ट्रेड यूनियनों ने नए श्रम संहिताओं को तत्काल वापस लेने की मांग की। एआईटीयूसी की महासचिव अमरजीत कौर ने बताया कि देश के 500 से अधिक जिलों में हुए विरोध प्रदर्शनों में औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों ही क्षेत्रों के मजदूरों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आइए इन श्रम संहिताओं पर मजदूर संगठनों की प्रमुख आपत्तियों पर एक नजर डालते हैं।










