Panchayat elections Himachal: हिमाचल प्रदेश में आगामी पंचायत चुनाव को लेकर राज्य सरकार और चुनाव आयोग के बीच टकराव देखने को मिल रहा हैं। दरअसल, सोमवार शाम को चुनाव आयोग ने प्रदेश में मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट–2020 की धारा 12.1 को लागू कर दिया और ऐसे में अब पंचायत के पुर्नगठन और नगर परिषदों में नए वार्ड बनाने पर रोक लग गई है। आयोग का मानना है कि चुनाव प्रक्रिया में सिर्फ 75 दिन शेष रहने के कारण ऐसे बदलाव उचित नहीं हैं।
इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने स्पष्ट और मुखर रुख अपनाया है। कागड़ा के पालमपुर में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि राज्य इस समय प्राकृतिक आपदा से उबरने के एक संवेदनशील दौर से गुजर रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा, “जब पूरा प्रदेश आपदा से सीधे तौर पर प्रभावित है, ऐसे में मतदाताओं के मौलिक अधिकारों को छीनना किसी भी सूरत में समझदारी नहीं कही जा सकती।”
उनकी दलील है कि बाढ़ और भूस्खलन से ध्वस्त हुई सैकड़ों सड़कों और ग्रामीण रास्तों को दुरुस्त करना, इस वक्त उनकी सरकार की पहली और सबसे बड़ी प्राथमिकता है। सीएम सुक्खू ने साफ किया कि उनका इरादा चुनावों को टालने का नहीं, बल्कि उचित समय पर कराने का है। उन्होंने आश्वासन दिया, “जैसे ही हर पंचायत तक की सड़क सहूलियत बहाल हो जाएगी, निश्चित तौर पर चुनाव होकर रहेंगे और वह भी समय पर।”
चुनाव आयोग द्वारा मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट–2020 की धारा 12.1 को लागू करने को लेकर सरकार के अगले कदम को लेकर मुख्यमंत्री ने संकेत दिया कि वे इस पर कानूनी राय ले रहे हैं। उन्होंने कहा, “इस मामले पर कानून का सहारा लिया जा रहा है। अध्ययन और कानूनी सलाह के बाद जो भी रास्ता निकलेगा, सरकार उस पर प्राथमिकता के साथ काम करेगी।”
दूसरी ओर, मुख्यमंत्री ने धर्मशाला में होने वाले विधानसभा के शीतकालीन सत्र को एक सकारात्मक और ऐतिहासिक फैसले के तौर पर पेश किया। उन्होंने बताया कि नवंबर के अंत में सत्र आयोजित करने का निर्णय स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन को ध्यान में रखकर लिया गया है। पहले जब सत्र दिसंबर-जनवरी में होता था, तो होटल व्यवसायियों को पर्यटन सीजन के पीक टाइम में बुकिंग रद्द करनी पड़ती थी, जिससे कांगड़ा जिले में जीएसटी कलेक्शन समेत आर्थिक नुकसान होता था। 13 दिनों के इस सत्र से होटल ऑक्यूपेंसी बढ़ने और स्थानीय कारोबार को लाभ मिलने की उम्मीद है।
फिलहाल, हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनावों को लेकर एक अनसुलझा गतिरोध बना हुआ है। एक तरफ जहां चुनाव आयोग नियमों और समयसीमा की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार जमीनी हकीकत और विकास कार्यों की अनिवार्यता को तरजीह दे रही है। अब पूरा ध्यान इस बात पर टिका है कि आने वाले दिनों में यह गतिरोध किस रास्ते पर चलता है और क्या सरकार और आयोग के बीच कोई समझौता हो पाता है, या फिर यह मामला अदालत की शरण में जाता है।











