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Supreme Court on Himachal: सुप्रीम कोर्ट की चिंता -“हिमाचल नक्शे से गायब हो सकता है”

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Supreme Court on Himachal: हिमाचल प्रदेश, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वादियों के लिए मशहूर, हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है। शिमला, मनाली, धर्मशाला, कसोल और मैक्लॉडगंज जैसे लोकप्रिय स्थल न केवल पर्यटकों की पसंद हैं, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देते हैं। लेकिन इस चमक के पीछे एक गंभीर संकट छिपा है।

दरअसल तेजी से हो रहा निर्माण, होटल, सड़क और अन्य आधारभूत ढांचे का विकास, ने इस राज्य की प्राकृतिक सुंदरता को खतरे में डाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए हिमाचल प्रदेश में पर्यावरणीय नुकसान को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है।

बता दें कि पिछले तीन सालों से हिमाचल प्रदेश में मौसम की मार काफी देखने को मिली है, इस बार भी जब से मानसून ने दस्तक दी है, पहाड़ी राज्य में 94 लोगों की मौत हो चुकी है, कई लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। करोड़ों का नुकसान हुआ है, कई प्रॉपर्टी ध्वस्त हो चुकी हैं, कई घरों में भी दरारें देखने को मिली हैं। लैंडस्लाइड की खबरें भी लगातार आ रही हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हिमाचल प्रदेश को लेकर बड़ी बात बोल दी है।

Supreme Court on Himachal: सुप्रीम कोर्ट की चिंता-“हिमाचल नक्शे से गायब हो सकता है”

उल्लेखनीय है कि बीते 28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे.बी. पारडीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने हिमाचल प्रदेश में अंधाधुंध विकास और पर्यावरणीय क्षति पर तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा, “अगर यही हाल रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हिमाचल प्रदेश देश के नक्शे से गायब हो जाएगा।

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प्रकृति इस लापरवाही से नाराज है, और इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है।” कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी की कीमत पर कमाया गया राजस्व टिकाऊ नहीं है।

बता दें कि यह टिप्पणी तारा माता हिल ग्रीन जोन से संबंधित एक याचिका की सुनवाई के दौरान आई, जहां हिमाचल सरकार ने जून 2025 में इस क्षेत्र को ग्रीन जोन घोषित कर निजी निर्माण पर रोक लगा दी थी। एक निजी होटल कंपनी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि हिमाचल में हो रही पारिस्थितिक क्षति पूरी तरह मानव-जनित है, और इसे रोकना अब समय की मांग है।

सुप्रीम कोर्ट ने किन गतिविधियों को ठहराया जिम्मेदार?

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल में पर्यावरणीय क्षति के पीछे कुछ मुख्य कारणों की सूची भी पेश की:

  • वनों की कटाई (Deforestation)
  • अनियंत्रित बहुमंजिला इमारतों का निर्माणबिना रोक-टोक के जलविद्युत परियोजनाएं (Hydropower Projects)
  • सड़क नेटवर्क का अत्यधिक विस्तार
  • इन गतिविधियों ने ना केवल पहाड़ी राज्य की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं की संभावना को भी बढ़ा दिया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने आगे कई सारी चुनौतियों का भी जिक्र किया है। सर्वोच्च अदालत के मुताबिक हिमाचल प्रदेश इस समय डीफॉरेस्टेशन, क्लाइमेट चेंज जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है। इसके अलावा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स की वजह से पानी की कमी हो रही है, लैंडस्लाइड देखने को मिल रही हैं। पर्यटकों का भी जरूरत से ज्यादा आना संसाधनों पर जोर डाल रहा है। इसके अलावा फोर लेन सड़कों का बनना, टनल का निर्माण भी चुनौती बढ़ा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश: विशेषज्ञों की सलाह अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार को सख्त निर्देश दिए कि भविष्य में कोई भी विकास परियोजना शुरू करने से पहले भूवैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और स्थानीय समुदायों की राय ली जाए। साथ ही, दीर्घकालिक पारिस्थितिक योजना को नीति निर्माण का हिस्सा बनाया जाए। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि हिमाचल को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने और नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।

पर्यटन का दोहरा प्रभाव

हिमाचल की 66% से अधिक भूमि वन क्षेत्र है, जो इसे प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना बनाती है। लेकिन पर्यटकों की बढ़ती भीड़ और अनियोजित विकास ने इस धरोहर को खतरे में डाल दिया है। पीक सीजन में ट्रैफिक जाम, कचरे का ढेर, और संसाधनों पर दबाव ने स्थानीय लोगों और पर्यावरण को प्रभावित किया है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि पर्यटक सीमा को नियंत्रित करने और पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत है।

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गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने आने वाले दिनों में हिमाचल सरकार से ही जवाब मांगा है, उन्हें बताना होगा आखिर कैसे पहाड़ी राज्य को बचाया जाए, किस तरह से प्राकृतिक आपदाओं से निपटा जाए और किस तरह से जमीन पर नियमों का पालन करवाया जाए।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल हिमाचल प्रदेश, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। जिस गति से हम विकास की दौड़ में पर्यावरण को पीछे छोड़ रहे हैं, वह भविष्य में हमें भारी कीमत चुकाने पर मजबूर कर सकता है। हिमाचल जैसे हरे-भरे राज्यों को बचाना केवल सरकार का नहीं, हर नागरिक का दायित्व है। अब वक्त आ गया है कि हम ‘विकास’ और ‘प्रकृति’ के बीच संतुलन बनाएं, वरना आने वाली पीढ़ियों को यह सुंदर राज्य केवल तस्वीरों में ही दिखेगा।

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