Himachal News: सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल हाईकोर्ट के भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163ए को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए धर्मशाला के एक निवासी को राहत प्रदान की है। दरअसल, हिमाचल उच्च न्यायालय ने 5 अगस्त को राज्य सरकार को सरकारी भूमि पर अतिक्रमणों के नियमितीकरण के लिए नियम बनाने की अनुमति देने वाले हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163ए को असंवैधानिक घोषित कर दिया था और सभी अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किए। न्यायालय ने अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, जिससे याचिकाकर्ता त्रिलोचन सिंह का घर अभी सुरक्षित रहेगा। न्यायालय ने आदेश दिया, “नोटिस जारी करें, जिसका जवाब चार सप्ताह के भीतर दिया जाए। अगले आदेश तक, संबंधित संपत्ति के संबंध में यथास्थिति, जैसी कि आज है, पक्षकारों द्वारा बनाए रखी जाएगी।”
दरअसल साल 2002 में हिमाचल सरकार ने खुद एक बड़ा आफर दिया था, 15 अगस्त 2002 तक सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों को एकमुश्त मौका दो, नियमितीकरण करवा लो। इसके तहत 24 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर 1.67 लाख आवेदन आए।
याचिकाकर्ता त्रिलोचन सिंह भी 1992 से धर्मशाला में घर बनाकर रह रहे थे, हाउस टैक्स भरते थे, बिजली-पानी कनेक्शन था, उन्होंने भी 2002 में कब्जा नियमितीकरण करवाने के लिए आवेदन दे दिया था। लेकिन हाईकोर्ट के पुराने अंतरिम ऑर्डर की वजह से उनका केस लटका रहा। अब हिमाचल हाईकोर्ट ने पूरी धारा ही खारिज कर दी और सबको बेदखल करने को कह दिया।
इस पर त्रिलोचन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई कि सरकार ने खुद स्कीम चलाई, आवेदन लिए, अब पुराने कब्जे वालों को नया अतिक्रमण करने वालों के बराबर मत ठहराओ। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बात मान ली और 14 अक्टूबर 2025 को नोटिस जारी करते हुए अंतरिम राहत दे दी। कोर्ट ने साफ कहा, चार हफ्ते में जवाब दो, तब तक जो जैसा है वैसा ही रहे। यानी न बुलडोजर चलेगा, न घर टूटेगा।
याचिका में त्रिलोचन सिंह के वकील विनोद शर्मा ने दलील दी कि हाईकोर्ट का फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, सरकार वचनबद्धता के सिद्धांत से मुकर गई। अब हजारों ग्रामीण जो 2002 की स्कीम में फंसे हैं, उनके लिए भी उम्मीद की किरण जगी है। सरकार को चार हफ्ते में जवाब देना है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह कदम साफ बता रहा है कि पुराने कब्जे वालों को एक झटके में बेघर करना इतना आसान नहीं है। इस आदेश से धर्मशाला से लेकर शिमला तक हलचल मच गई है, अब सबकी नजर अगली सुनवाई पर टिकी है।
याचिकाकर्ता के वकील विनोद शर्मा व गौरव कुमार ने पैरवी की, जबकि सरकार की तरफ से गौरव अग्रवाल और सी. जॉर्ज थॉमस मौजूद रहे। अब हजारों परिवारों की नजर इस केस पर टिकी है, क्योंकि एक फैसला पूरी 2002 स्कीम की किस्मत तय करेगा।











