WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

पोरि मेला जनजातीय ग्रामीण संस्कृति की सम्पूर्णता का दिग्दर्शन

किसी भी अंचल विशेष में निवास करने वाले लोगों का जीवन दर्शन उनकी मान्यताओं, जीवन मूल्यों, और संस्कारी के ताने-बाने में गुंफित होती है। कालान्तर में यही आदर्श उनकी सांस्कृतिक थाती का आधार बन कर लोगों के जीवन को नया आयाम देते हैं। लाहुल घाटी में ऐसे अनेक मेले एवम् त्योहार हैं जो यहाँ के लोगों को भातृत्व का सन्देश देते हुए एकता और अखंडता के सूत्र में बांधे रखते हैं। मेले और त्योहार लोकजीवन की धुरी हैं। ये समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनकर आगामी पीढी को परम्परागत जीवन मूल्यों का बोध कराते हैं।

लाहुल घाटी के मेले और त्योहार यहाँ की जलवायु पर आधारित हैं। यहाँ अधिकतर मेलों का आयोजन गर्मियों में होता है, और मुख्य त्योहारों का सम्बन्ध शीत ऋतु से है। भले ही यहाँ की ऊँची चोटियों ठंडी बर्फ से कठोर हो जाती हैं, लेकिन चिर-प्रतीक्षित त्योहारों की रंगत, शुर की खुशबू, रोट और टोडू के अर्पण तथा दीपक का प्रकाश लोगों के हृदय में संवेदनशीलता के भाव जगाते हैं। यहाँ मेले और त्योहार लोगों के आँखों की चमक को कभी धूमिल नहीं होने देते ।

बचपन की स्मृतियों में कैद पोरि मेले का एक दृष्टांत द्रष्टव्य है ‘कल से पोरि मेला आरम्भ हो रहा है। घर में बच्चे सबसे ज्यादा उत्साहित हैं, क्योंकि उनकी दो जोड़ी आँखें में नए कपडे तैर रहे हैं। रात उठ कर कई बार नए कपड़े पहनते हैं, और फिर उतार कर सिरहाने के नीचे छुपा कर सो जाते हैं। मेमनों को चराने की ज़िम्मेदारी बच्चों की है, इसलिए सुबह जल्दी-जल्दी उठ कर उन्हें चराना है, ताकि दिन को पोरि मेले का आनंद लिया जा सके । घर में सगे-सम्बन्धियों की धूम है। मेला देखने जाना है। पारम्परिक वस्त्रों और आभूषणों से सुसज्जित लोगों के चेहरे फूलों की भांति खिले हुए हैं। गेंदे के फूलों से सजी टोपियों तथा और बाहों में चूड़ियों की खनक अंतर्मन की पीड़ा को कम कर देती हैं। बुजुर्ग ऊनी कतर (चोला) तथा घास के रेशों से बने हुए पूलों (जूतों) में ही प्रसन्न हैं। स्त्रियों का रंग-रूप तो मानो प्रकृति के साथ घुल मिल सा गया है।’

 

pori

त्रिलोकनाथ अर्थात् तुन्दे नगरी में मनाया जाने वाला पोरि मेला जनजातीय ग्रामीण संस्कृति की सम्पूर्णता का दिग्दर्शन कराता है। राणावंश के हामिर बर्धाइम द्वारा शिव व पार्वती के विवाह की स्मृति में त्रिलोकनाथ को समर्पित यह पावन मेला श्रावण मास के अंत में शुरू हो कर भाद्रपद मास के प्रथम या द्वितीय रविवार को संध्या के समय नुआला अनुष्ठान के साथ संपन्न हो जाता है। तीन दिनों तक चलने वाले इस पोरि मेले के पूर्व ही अस्थाई दुकाने सज जाती हैं। मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ साथ खेल कूद प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें खेल प्रेमी बढ़-चढ़ कर उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। इस बीच एक शोभा यात्रा निकाली जाती है जो देव वा‌यों की घन गर्जना के साथ मंदिर की परिक्रमा करते हैं।

संभवतया राणावंश की राज्य वंश परम्परा में बर्धाइम की उपाधि इन्होंने राजा हर्षवर्धन की भांति अपने पूर्वजों से ली होगी। चंबा के राजाओं में भी अपने नाम के साथ वर्मन उपनाम जोड़ने की परम्परा रही है। पोरि मेला ‘पुरी’ शब्द का अपभ्रंश रूप जान पड़ता है। वास्तव में पुरी या पुर शब्द स्थान विशेष को बसाने वाले व्यक्ति की स्मृति को स्थाई बनाने के लिए संज्ञा के साथ जोड़ा जाता है; जैसे शिवपुरी, ब्रह्मपुरी, जगन्नाथपुर और उदयपुर आदि। भारतीय हिंदी कोश के अनुसार पुरी का अर्थ ‘नगरी, नदी, शहर” है। वर्धा हिंदी शब्दकोश में पौर का अर्थ नगर या पुर संबंधी दिया है। अतः पोरि शब्द का अर्थ नगर या पुर के आसपास ही ठहरता है। – यह शब्द क्षेत्र विशेष का भी द्योतक हो सकता है, क्योंकि क्षेत्र विशेष के लिए पत्तन, पुर, नगरी अथवा ग्राम का प्रयोग होता आया है। एम. आर. ठाकुर, ‘लाहुल की बोलियों का भाषा वैज्ञानिक अध्यन’ नामक लेख में कल्हण की राजतरंगिणी में आए हुए ‘पत्तन’ शब्द का उल्लेख करते हुए लिखते हैं –ग्रामयुतसहस्त्रां पत्तनं जायते बुधैः। तत्रापि सारं नगरं तत्पौराः पुरवासिनः

अर्थात् दस सहस्त्र ग्राम वाले स्थान को पत्तन कहते हैं उसमे भी मूल (सारं) को नगर कहते हैं। वहाँ के रहने वाले को पौर (पुरवासी) कहते हैं। ‘आर्यों की रक्षा व्यवस्था में दुर्गों का विशेष महत्व था जिन्हें ‘पुर’ कहा जाता था । ये दुर्ग पाषण-निर्मित या धातु-निर्मित होते थे जिनके चारों ओर प्रायः लकड़ी की चारदीवारी बनी रहती थी या खाईयां खुदी रहती थीं। जग मोहन बलोखरा पोरि’ शब्द को संस्कृत पर्व का तद्भव रूप मानते हैं। कुलुई में इसे पोर कहते हैं।’ लाहुल की अनुश्रुतियों में लाहुल को पार्वती का मायका कहा जाता है। एक जनश्रुति के अनुसार शिव और पार्वती की बरात तांदी संगम के पार्श्व की पहाड़ी से हो कर कैलाश की ओर गई थी। जहाँ से बरात कैलाश की ओर निकली थी वहाँ आज भी पहाड़ियों में श्वेत और लाल पट्टिका द्रष्टव्य है । शिवपुराण में हिमवान के नगर में निवास करने वाले अनेक पुरवासिनी स्त्रियों द्वारा भगवान् शिव के दर्शन कर अपने जीवन को सार्थक करने का भी विवरण मिलता है ।”

आज से तीन-चार दशक पहले मे-जागर के आठ दिन पूर्व बाए-मे-जादर का भी आयोजन किया जाता था | प्र० आश्विन या द्वितीय आश्विन (अक्तूबर) के आसपास माँ मृकुला को समर्पित माँ-जागर के अवसर पर स्थानीय ठाकुर घुड़दौड़ का आयोजन किया करता था जिसमें सभी धोड़ों को निर्धारित स्थल पर ले जा कर राहं-द्रो (घुड़दौड़) करवाया जाता था। इस प्रतियोगिता में स्थानीय ठाकुर के अतिरिक्त उनके नौकर-चाकर तथा खास लोग सम्मिलित होते थे। इन प्रतियोगिताओं का आयोजन एक बड़े मैदान में किया जाता था, जिसे सेरी कहा जाता था । ये आयोजन त्रिलोकनाथ में ‘ब्लाड़ी सेरी’ तथा ‘मे-सेरी’, हडूका में ‘कुकुमसेरी’ तथा उदयपुर में ‘कोडी मुत्ति’ नामक स्थानों में संपन्न किए जाते थे। कार्तिक मास में भ्यार-जादर के अवसर पर सभी गाँव वाले म्हरपिणी, दूध-दही तथा छङ आदि ले कर इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होते थे। वाद्य यंत्रों की धुनों पर नाच-गान होता था और आसपास के सभी लोग इस उत्सव में सम्मिलित होते थे । मात्र कुछ औपचारिकताओं के साथ आज धीरे-धीरे ये सभी अनुष्ठान या तो विलुप्त होते जा रहे हैं या लगभग दम तोड़ चुके हैं।

श्रावण मास के अंतिम शुक्रवार को मे-जागर की सुबह मंदिर में स्थापित त्रिलोकनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है वर्ष में पाँच बार त्रिलोकनाथ जी का पंचामृत से मांगलिक स्नान किया जाता है, इस अवसर पर मंदिर का पुजान लामा, स्थानीय कारदार व गाँव के अन्य लोग श्र‌द्धा-भाव से सम्मिलित होते हैं। यह मांगलिक स्नान उदन, खोहल् कुंह, भेशु तथा योर के पावन अवसर पर ग्रहों व् नक्षत्रों की शुभ योजना पर विधिवत् विचार करने के पश्चात् कराय जाता है। लोग श्रद्धा भाव से अपने-अपने घरों से दूध-दही ले आते हैं। त्रिलोकनाथ की पूजा अर्चना के साथ दर्शकों की भीड़ घनी होती जाती है और श्रद्धालुओं में दर्शन करने की होड़ सी मच जाती है। एक शोभा यात्र निकाली जाती है जो देव वा‌द्यों की घन गर्जना के साथ मंदिर की परिक्रमा करते हुए निह्-मुति अर्थात् सतधारा के दाहिने पार्श्व में स्थित भवानी कुंड़ की ओर प्रस्थान करती है। मंदिर का ध्वज भी साथ-साथ लहराता जाता है त्रिलोकनाथ का ठाकुर इसकी अगुआई करते हुए अपने घोड़े पर सवार हो कर आगे-आगे चलते हैं। वा‌द्यों यंत्रों क अब राश नामक स्थान में ही छोड़ दिया जाता है। पहले इन्हें ऊपर भवानी कुंड तथा सतधारा तक ले जाते थे पहले इस कुंड में भेड़ की बलि चढ़ाई जाती थी लेकिन न्यायालय के निर्देशों के पश्चात् निर्बाध गति से चली आ रह यह परम्परा अब बंद हो चुकी है। मे-जागर के पावन अवसर पर सभी देवी-देवताओं और चारागाहों में भेड़पालकों के रूप में आए हुए ग‌द्दियों को पोरि मेले में आमंत्रित किया जाता है। भवानी कुंड़ में भी माँ से तुन्दे नगरी आयोजित होने वाले पोरि मेले में पधारने की विनती की जाती है।

भवानी कुंड में पूजा-अर्चना करने के बाद ये शोभायात्रा जलूस की शक्ल में हिंसा स्थित नाग मंदिर पहुँचती है, जह नाग मंदिर का पुजारी जलता हुआ हाल्डा ले कर पहले से सन्नद बैठता है। हिंसा गाँव के लोग दल बाँध कर फूल् से सुसज्जित टोपी और पारम्परिक परिधानों में, हाथों में म्हरपिणी दूध-दही के पात्र और धूप-दान करते हु स्वागत-सत्कार के लिए तैयार बैठे होते हैं। अपराह्न लगभग चार बजे के बाद लोग त्रिलोकनाथ जा कर सुबह क तैयारियों में जुट जाते हैं, जबकि हिंसा के लोग रात को जागर में बैठे रहते हैं। जागर में बैठने की प्रथा अब लगभन बंद हो चुकी है।

दूसरे दिन अर्थात् शनिवार को भगवान तीन त्रिलोकीनाथ के मंदिर से शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिसमे स्थानी ठाकुर, मंदिर के कारदार तथा गणमान्य लोग इस शोभायात्रा में शामिल होते हैं। एक घोड़े को भी घुमाया जाता जिसकी पीठ कपड़े से ढकी होती है। माना जाता है की इस घोड़े पर त्रिलोकनाथ जी विराजमान होते हैं। परिक्रम के पश्चात् घोड़े की पीठ पसीने से लथपथ हो जाती है। उसके पश्चात् घोड़े को राणा के घर ले जाते हैं, जिस प सवार हो कर राणा शोभा यात्रा के साथ सम्मिलित हो कर अपने निजी सेवकों के साथ मेला स्थल के पास बने घ की छत में बैठ जाता है और मेले का आनंद लेता है।

पारम्परिक परिधानों से सुज्जजित वादकों के साथ-साथ वा‌द्ययंत्रों की धुनों पर थिरकते लोगों के पाँव स्वतः शोभा यात्रा में शामिल हो जाते हैं। लोग जय-जयकार लगाते हुए सहो की तरफ बढ़ते हैं। सहो में करछोद किर जाता है। सहो शब्द सौह का अपभ्रंश रूप है। सौह देवता के प्रांगण को कहते हैं, जहां देवता का रथ सज धज बिराजता है धार्मिक कृत्य होते हैं, नृत्य होते हैं, देवता नाचता है, गुरु नाचते हैं, प्रजा नाचती है, ह देवता के गाँव में मंदिर के समीप अपनी-अपनी सौह होती है’

‘हिमालय गाथा भाग-2 पृष्ठ, 15 |रविवार के दिन मणीमहेश जाने वाले श्र‌द्धालुओं की सुंदर शोभायात्रा देखते ही बनती है। राणावंश के लोग अन्य गणमान्य लोगों के साथ पंक्तिबद्ध हो कर मणीमहेश जाने वाले सभी श्रद्धालुओं का स्वागत-सत्कार करते हैं । पारम्परिक परिधानों, आभूषणों और फूलों से सुसज्जित महिलाएं सुंदर, व्यवस्थित और अनुशासित भाव से अपने-अपने हाथों में धुणीभांडी, म्हरपिणी, दूध, दही, मक्खन तथा छङ के सुसज्जित पात्रों के साथ स्वागत सत्कार के लिए पंक्तिबद्ध हो कर सन्नद रहते हैं। श्रद्धालुगण पात्रों में रखे पदार्थों को पूर्वाभिमुख हो कर फूल, दूब और शुर की पत्तियों से अर्पित करते हुए बढ़ते हैं। सभी श्रद्धालु बारी-बारी से म्हरपिणी को दाहिने हाथ से तीन बार ईष्ट देव को अर्पित करते जाते हैं और चौथा अपने मुख में डाल देते हैं। तदन्तर एक महीन ऊँगली मक्खन का तिलक करती हुई स्वतः ही बढ़ी चली आती है। चेले और गूर सभी यात्रियों को देववाणी में आशीर्वाद देते हैं और सुखद यात्रा की कामना करते हैं। साथ ही कुछ आवश्यक हिदायतें भी देते हैं ताकि यात्रा के दौरान श्र‌द्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी न हो । इस प्रकार तीन दिनों तक चलने वाला यह मेला रविवार को संध्या के समय नुआला अनुष्ठान के साथ संपन्न हो जाता है ।

Tek Raj
संस्थापक, प्रजासत्ता डिजिटल मीडिया प्रजासत्ता पाठकों और शुभचिंतको के स्वैच्छिक सहयोग से हर उस मुद्दे को बिना पक्षपात के उठाने की कोशिश करता है, जो बेहद महत्वपूर्ण हैं और जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया नज़रंदाज़ करती रही है। पिछलें 8 वर्षों से प्रजासत्ता डिजिटल मीडिया संस्थान ने लोगों के बीच में अपनी अलग छाप बनाने का काम किया है।

Latest News

Himachal News: सीएम सुक्खू बोले- हिमाचल के अधिकारों के साथ कोई समझौता नहीं होने दिया जाएगा

Himachal News: मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आज हिमाचल...

Himachal News: हिमाचल में 468 ग्राम हेरोइन के साथ जम्मू-कश्मीर निवासी गिरफ्तार.!

Himachal News: शिमला के कोटखाई थाना के तहत खड़ापत्थर...

Benefits of Phitkari: जानिए कैसे खूबसूरती निखारती है फिटकरी..!

Benefits of Phitkari: फिटकरी प्राकृतिक रूप से पाया जाने...

ACV Teaser Release: आशीष चंचलानी ने किया बड़ा एनाउनसमेंट! ACV की होगी वापसी!

ACV Teaser Release: भारत के सबसे बड़े डिजिटल स्टार...

More Articles

त्रिलोकनाथ पोरि मेले के समापन समारोह में मनाली विधायक भुवनेश्वर गौड़ ने की बतौर मुख्यातिथि शिरकत

जनजातीय जिला लाहौल स्पीति के त्रिलोकनाथ में आयोजित होने वाला तीन दिवसीय पोरि मेंले का समापन हुआ जिसमे आज समापन समारोह में मनाली विधायक भुवनेश्वर...

Historical Pauri Fair: प्राचीन संस्कृति की पहचान है त्रिलोकीनाथ पोरी मेला

Historical Pauri Fair: हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहुल स्पीति के उदयपुर मंडल में स्थित त्रिलोकीनाथ धाम का पोरी मेला न केवल धार्मिक आस्था...

Pori Fair Triloknath: शोभायात्रा के साथ शुरू होगा त्रिलोकीनाथ पोरी मेला

Pori Fair Triloknath: हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहुल स्पीति के उदयपुर मंडल के तहत स्थित त्रिलोकीनाथ धाम में आयोजित होने वाला पोरी मेले...

Cloud Burst in Spiti: स्पीति में बादल फटने से तबाही, एक की मौत, वाहन दबा

Cloud Burst in Spiti: स्पीति उपमंडल के पिन वेली में शुक्रवार शाम करीब 5 बजे हुए भीषण बादल फटने से क्षेत्र में तबाही मच...

Flood News: करपट नाले में आई बाढ़..! ग्रामीणों ने भाग कर बचाई अपनी जान

केलांग (उदयपुर)| Flood Latest News: लाहौल में म्याड़ घाटी के करपट नाले में बाढ़ आने से ग्रामीणों की 13 बीघा के करीब कृषि भूमि में...

Pori Fair Triloknath: पोरी मेला हिंदू व बौद्ध धर्म का आस्था का प्रतीक, 16 से 18 अगस्त तक मनाया जाएगा

केलांग/ उदयपुर Pori Fair will be celebrated in Triloknath: जनजातीय जिला लाहौल स्पीति का राज्यस्तरीय पोरी मेला 16 से 18 अगस्त तक त्रिलोकनाथ में...

State Level Pori Fair: त्रिलोकनाथ में 16 से 18 अगस्त तक मनाया जाएगा राज्यस्तरीय पोरी मेला

केलांग | State Level Pori Fair:  जनजातीय जिला लाहौल स्पीति का राज्यस्तरीय पोरी मेला 16 से 18 अगस्त तक त्रिलोकनाथ में मनाया जाएगा। तीन दिवसीय...

Firing In Kinnaur District: किन्नौर में भाई ने अपनी दो बहन और भतीजी पर की फायरिंग, तीनों की हालत गंभीर

किन्नौर | Firing In Kinnaur District: किन्नौर जिला के पूर्वणी गांव में शुक्रवार को गोलीकांड का एक मामला सामने आया है। यहां एक भाई ने...