Kullu Woman Misbehave Case: हिमाचल प्रदेश, जो अपनी शांत वादियों और देवभूमि के नाम से जाना जाता है। लेकिन उस प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंताएं गहराती जा रही हैं। हाल ही में भुंतर कस्बे के एक फर्नीचर शोरूम में कार्यरत एक महिला के साथ हुई छेड़छाड़ की घटना ने न केवल समाज को झकझोरा, बल्कि कुछ कथित पत्रकारों और सोशल मीडिया एक्टिविस्टों की गैर-जिम्मेदाराना हरकतों ने इस मामले को और शर्मनाक बना दिया।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की उड़ी धज्जियां
घटना के बाद कुछ कथित पत्रकारों और सोशल मीडिया एक्टिविस्टों ने पीड़िता की निजता को तार-तार करते हुए उसके वीडियो, फोटो और कॉल रिकॉर्डिंग ज्यादा लिखे और शेयर पाने के चक्कर में सोशल मीडिया पर वायरल कर दी। यह घटना सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का खुला उल्लंघन है, जिसमें यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ की शिकार किसी भी महिला की पहचान उजागर करने पर सख्त मनाही है। इस तरह की हरकत न केवल पीड़िता का दोहरा शोषण है, बल्कि यह एक गंभीर अपराध भी है।
पुलिस की खामोशी पर उठे सवाल
आरोपी के खिलाफ कार्रवाई तो हुई, लेकिन हैरानी की बात यह है कि कुल्लू पुलिस उन लोगों के खिलाफ चुप्पी साधे हुए है, जिन्होंने पीड़िता की पहचान सार्वजनिक की। न तो इस मामले में कोई FIR दर्ज की गई, न ही वायरल वीडियो और फोटो बनाने वालों को चेतावनी दी गई। सवाल उठता है कि क्या पुलिस का दायित्व सिर्फ आरोपी को पकड़ने तक सीमित है, या पीड़िता की गरिमा की रक्षा भी उसकी जिम्मेदारी है?
हिमाचल महिला आयोग ने दिखाई सक्रियता
जब यह मामला हिमाचल प्रदेश राज्य महिला आयोग तक पहुंचा, तो अध्यक्ष विद्या नेगी ने इसे गंभीरता से लिया। उन्होंने वायरल वीडियो और ऑडियो की जांच की और कुल्लू के पुलिस अधीक्षक डॉ. कार्तिकेयन गोकुलचंद्रन को निष्पक्ष जांच के साथ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। हालांकि, पीडिता की पहचान उजागर करने वालों के खिलाफ अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
पत्रकारिता के नाम पर शर्मनाक खेल
वीडियो को देख कर साफ पता लगता है कि पीडिता एक साधारण और कम पढ़ा-लिखा पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखती है। पहले तो वह छेड़छाड़ की शिकार हुई, और फिर तथाकथित पत्रकारों ने उसकी निजता को सोशल मीडिया पर लाइक और शेयर के लालच में उजागर कर दिया। यह कृत्य न केवल पत्रकारिता की मर्यादा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि पीड़िता के साथ अन्याय को और गहरा करता है।
क्या अब होगी जवाबदेही?
पत्रकारिता का मकसद समाज को सच दिखाना और कमजोर की आवाज उठाना है, न कि किसी की इज्जत को तमाशा बनाना। यह घटना समाज और प्रशासन के सामने कई सवाल खड़े करती है। क्या ऐसे गैर-जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होगी? क्या पुलिस द्वारा पीड़िता की गरिमा की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाए जाएंगे? कुल्लू का यह मामला न केवल पुलिस की निष्क्रियता, बल्कि पत्रकारिता के नाम पर हो रहे इस खेल को रोकने की जरूरत को उजागर करता है।












