CJI BR Gavai: भारत का संविधान एक सामाजिक दस्तावेज जो सत्ता का बैलेंस बनाने और लोगों का सम्मान बहाल करने के लिए जरूरी हस्तक्षेप करने का साहस भी रखता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने मंगलवार को ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड यूनियन के अपने संबोधन में यह बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान यह दिखावा नहीं करता कि सभी समान हैं बल्कि वह इसके लिए कदम उठाने का साहस भी दिखाता है। उन्होंने कहा है कि संविधान ने लोगों को समाज और सत्ता के हर क्षेत्र में बराबरी की स्थान दिलाया है। उन्होंने सीजेआई पद तक पहुंचने का श्रेय भी संविधान को दिया है।
उन्होंने कहा, “कई दशक पहले भारत के लाखों लोगों को अछूत कहा जाता था। उनसे कहा जाता था कि वे अशुद्ध हैं…वे खुद के लिए बोल नहीं सकते। लेकिन आज हम यहां हैं, जहां उन्हीं लोगों में से एक व्यक्ति, देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर आसीन होकर खुलकर बोल रहा है। भारतीय संविधान ने यही काम किया है। इसने भारतीय लोगों को बताया कि वे अपने लिए बोल सकते हैं और उनका समाज और सत्ता के हर क्षेत्र में बराबरी का स्थान है। ”
उन्होंने आगे कहा, “भारत के सबसे कमजोर नागरिकों के लिए संविधान महज एक कानूनी चार्टर या राजनीतिक ढांचा नहीं है। यह एक भावना है, एक जीवनरेखा है, एक शांत क्रांति है जो स्याही से लिखी गई है। एक सरकारी स्कूल से लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय तक मेरी यात्रा में यह (संविधान) एक मार्गदर्शक शक्ति रहा है। ”
उन्होंने कहा कि प्रतिनिधित्व के विचार को डॉ आंबेडकर के दृष्टिकोण में सबसे शक्तिशाली और स्थायी अभिव्यक्ति मिली। डॉ. बी.आर. आंबेडकर की विरासत का जिक्र करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने जातिगत भेदभाव के अपने अनुभव को न्याय की वैश्विक समझ में बदल दिया।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में मुख्य भाषण की शुरुआत उच्चतम न्यायालय में ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ तन्वी दुबे की परिचयात्मक टिप्पणियों से हुई और इसमें न्यायिक प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी की भूमिका एवं समान प्रतिनिधित्व जैसे विषयों पर छात्रों के साथ बातचीत भी शामिल थी।
बता दें कि प्रधान न्यायाधीश इस सप्ताह ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान संविधान और इसके स्थायी प्रभाव पर व्याख्यान दे रहे हैं और मुख्य अतिथि के तौर पर विभिन्न कार्यक्रमों मेंभाग ले रहे हैं।
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