Indian Families Savings: जितना जरूरी है मेहनत से पैसा कमाना, उतना ही महत्वपूर्ण है उसे संभालकर रखना। लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि भारतीयों में पैसे बचाने की प्रवृत्ति सबसे मजबूत होती है। लेकिन हाल के दिनों में यह रुझान उलटता नजर आ रहा है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, अब लोग अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा बचाने की बजाय खर्च करने में जुट गए हैं, जिससे केंद्रीय बैंक की चिंता गहरा गई है। दरअसल ,किसी भी देश में लोगों की आमदनी बढ़ रही है या घट रही है, इसे मापने के लिए पर कैपिटा इनकम का सहारा लिया जाता है। इससे पता चल जाएगा कि उस देश के लोगों की प्रति व्यक्ति आय कितनी है।
अगर आय में वृद्धि हो रही है, तो उसका एक हिस्सा भविष्य के लिए जमा करना समझदारी होती है। मगर अब भारतीयों का ध्यान बचत की ओर से हटता जा रहा है। पहले की तुलना में लोग अपनी कमाई का कम हिस्सा बचाने लगे हैं, और यह बदलाव RBI के लिए चिंता का विषय बन गया है। यह बात उनकी हालिया रिपोर्ट में साफ तौर पर उभरकर आई है।
Indian Families Savings: घरेलू बचत में भारी गिरावट
बचत करना भारतीयों की सदियों पुरानी आदत है, लेकिन अब यह खत्म होती जा रही है। हाल ही में RBI की ओर से जो आंकड़े आए हैं, उन्हें देखकर हर कोई हैरान है। वित्त वर्ष 2022-23 में GDP में परिवारों की नेट सेविंग्स की हिस्सेदारी सिर्फ 5.3 फीसदी थी। GDP में सेविंग्स की यह हिस्सेदारी बीते 50 सालों में सबसे कम है। बता दें कि 10 साल पहले तक ग्रॉस डोमेस्टिक सेविंग्स रेट 34.6 फीसदी था, जो अब 29.7 फीसदी तक घट गया है। यह सिर्फ आंकड़े नहीं है, बल्कि इससे पता चलता है कि लोगों के व्यवहार और मानसिकता में बड़ा बदलाव आया है।
RBI गवर्नर की चिंता
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों के बचत से दूर हटने पर RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने हाल ही में गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि बैंकिंग और वित्तीय नियमों में बदलाव पर विचार किया जाए। इसका कारण यह है कि लोग अब पारंपरिक बैंक जमा में रुचि नहीं दिखा रहे।
पिछले नौ सालों में बैंक डिपॉजिट में लोगों की बचत की हिस्सेदारी 43 फीसदी से कम होकर 35 फीसदी रह गई है। इस तरह की गिरावट आर्थिक स्थिरता के लिए ठीक नहीं मानी जा सकती।
गवर्नर ने कहा ही कि बदलते रुझानों को देखते हुए RBI को वित्तीय प्रणाली में नए कदम उठाने पड़ सकते हैं, ताकि लोगों को बचत की ओर फिर से प्रेरित किया जा सके। यह स्थिति न केवल बैंकों के लिए चुनौती है, बल्कि पूरे देश की आर्थिक नीति पर भी असर डाल रही है।
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