Pending Bills Dispute: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार यानि 22 जुलाई को एक अहम मामले पर सुनवाई होने वाली है। मामला है राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा विधानसभाओं (States Pending Bills Controversy) के पास किए गए बिलों को लंबे समय तक लटकाने का। ये कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार कोर्ट इस पर गंभीर है और साफ नियम बनाने की कोशिश में जुटा है।
दरअसल, कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि कोई भी बिल, जो विधानसभा ने पास किया हो, उसे राज्यपाल या राष्ट्रपति तीन महीने से ज्यादा नहीं रोक सकते। लेकिन इस फैसले के बाद भी कई सवाल खड़े हो गए।
बीते 14 मई को राष्ट्रपति ने ही कोर्ट से उल्टा 14 सवाल पूछ डाले, वो भी कुछ तीखे अंदाज में। इससे मामला और गरमा गया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी कई मौकों पर इस मुद्दे पर अपनी राय रखी। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी इस पर खुलकर बयान दिए। कुल मिलाकर, ये मामला अब हर किसी की जुबान पर है।
Pending Bills Dispute: कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। कोर्ट का कहना है कि राष्ट्रपति के पास बिल को रोकने का कोई “पॉकेट वीटो” (यानी चुपके से रोकने का अधिकार) नहीं है। अगर राष्ट्रपति कोई बिल रोकते हैं, तो उसका फैसला कोर्ट में चुनौती दिया जा सकता है। यही नहीं, कोर्ट ने ये भी साफ किया कि बिल की सही-गलत बात का फैसला सिर्फ न्यायपालिका करेगी, न कि राष्ट्रपति या राज्यपाल।
कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर राष्ट्रपति को बिल पर कोई फैसला लेना है, तो तीन महीने के अंदर करना होगा। अगर देरी होती है, तो इसका कारण बताना पड़ेगा। साथ ही, राष्ट्रपति किसी बिल को बार-बार विधानसभा में वापस नहीं भेज सकते। ये नियम तमिलनाडु और वहां के राज्यपाल के बीच हुए विवाद को देखते हुए बनाए गए थे। उससे पहले 8 अप्रैल को कोर्ट ने राज्यपालों के अधिकारों की सीमा भी तय कर दी थी, जिसमें साफ कहा गया कि उनके पास बिल को रोकने का कोई वीटो पावर नहीं है।
Pending Bills Dispute: क्यों है इतना हंगामा?
जब कोर्ट ने ये सारे नियम बनाए, तो राष्ट्रपति ने 14 मई को कोर्ट से 14 सवाल पूछकर नया मोड़ ला दिया। इन सवालों ने फिर से बहस छेड़ दी। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर बिलों को लटकाने की प्रक्रिया को कैसे रोका जाए और संविधान की भावना को कैसे बरकरार रखा जाए। क्या होगा अब?
22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई करेगा। हर किसी की नजर इस बात पर है कि कोर्ट क्या नया नियम बनाएगा और क्या ये विवाद खत्म हो पाएगा। ये मामला सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि केंद्र और राज्यों के बीच रिश्तों का भी है। आसान शब्दों में कहें, तो ये तय करना है कि बिलों को पास करने की प्रक्रिया में कितनी देरी जायज है और कितनी नहीं। अब देखना ये है कि सुप्रीम कोर्ट का अगला फैसला इस मसले को सुलझाता है या और नया ट्विस्ट लाता है।
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