Supreme court: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर भारत में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से उत्पन्न संकट को गंभीरता से लेते हुए इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अवैध पेड़ कटाई को इस आपदा का एक प्रमुख कारण माना और इस पर गहरी चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि यह केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानवजनित लापरवाही का परिणाम है।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लगातार बारिश और भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई है। दर्जनों गांव जलमग्न हो गए, सड़कें और पुल बह गए, और कई लोग बेघर हो गए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हिमाचल में बाढ़ के दौरान नदियों में लकड़ी के लट्ठों का बहना अवैध कटाई की ओर इशारा करता है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हमने अभूतपूर्व बारिश और बाढ़ का सामना किया है, और प्रथम दृष्टया यह अवैध कटाई के कारण और गंभीर हुआ है।” कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल को निर्देश दिया कि केंद्र सरकार इस मामले पर तत्काल ध्यान दे।
पर्यावरण पर बढ़ता खतरा
सुप्रीम कोर्ट ने अवैध कटाई को पर्यावरणीय असंतुलन का प्रमुख कारण बताया। विशेषज्ञों के अनुसार, जंगलों की अंधाधुंध कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ा है, जिससे भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं तेज हुई हैं। जंगल मिट्टी को बांधे रखते हैं और वर्षा जल को नियंत्रित करते हैं, लेकिन पेड़ों की कमी ने नदियों को उफान पर ला दिया। इसके अलावा, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और वन्यजीवों के आवास नष्ट होने से पर्यावरणीय संकट और गहरा गया है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि जंगलों की रक्षा नहीं की गई, तो भविष्य में ऐसी आपदाएं और भयावह रूप ले सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से पूछा कि अवैध कटाई पर रोक लगाने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को भी इस मामले में जवाबदेही तय करने का निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “यह केवल कानून तोड़ने की बात नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ है। जंगलों को बचाना सिर्फ कानूनी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि मानवता की रक्षा का सवाल है।”
कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। स्थानीय समुदायों को जागरूक करने और वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की जरूरत है। लोगों को अवैध कटाई के खिलाफ आवाज उठानी होगी और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना होगा।
कोर्ट ने सरकार से सख्त कानून लागू करने और उनके प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चारों राज्यों को तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई में बाढ़ प्रबंधन, अवैध कटाई पर रोक और पर्यावरण संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा करेगा।
बता दें कि इस प्राकृतिक आपदा ने आम लोगों की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है। किसानों की फसलें नष्ट हो गईं, मजदूरों का रोजगार छिन गया, और कई परिवार राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हैं। स्कूल बंद होने से बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई है, और कई इलाकों में पीने का पानी और खाद्य सामग्री की भारी कमी हो गई है। गरीब और ग्रामीण समुदाय इस आपदा की सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं, और उनकी समस्याएं सरकार तक पहुंचने में कठिनाई का सामना कर रही हैं।
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