Supreme Court Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST एक्ट) के तहत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत देने के नियमों को और सख्त करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने स्पष्ट किया कि इस कानून के तहत किसी आरोपी को अग्रिम जमानत तभी दी जा सकती है, जब प्रथम दृष्टया यह साबित हो जाए कि उसने दलित या आदिवासी समुदाय के खिलाफ कोई अत्याचार नहीं किया। इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई थी।
क्या है SC/ST एक्ट और धारा 18?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में SC/ST एक्ट की धारा 18 का हवाला देते हुए कहा कि यह प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत देने पर रोक लगाता है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह कानून अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए बनाया गया था, ताकि इन समुदायों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोका जा सके। धारा 18 स्पष्ट रूप से कहती है कि इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू नहीं होगा, सिवाय इसके कि जब कोर्ट को लगे कि प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं हुआ है।
क्या है मामला
यह मामला महाराष्ट्र के धाराशिव जिले से जुड़ा है, जहां 2024 के विधानसभा चुनाव के बाद हुई एक हिंसक घटना में एक दलित परिवार पर हमले का आरोप लगा था। शिकायतकर्ता किरण ने अपनी याचिका में दावा किया कि आरोपी राजकुमार जीवराज जैन और अन्य लोगों ने 25 नवंबर 2024 को उनके घर के बाहर उनसे बहस की और लोहे की रॉड से हमला किया। इस दौरान जातिसूचक गालियों का भी इस्तेमाल किया गया। किरण का आरोप था कि यह हमला इसलिए हुआ क्योंकि उनके परिवार ने जैन के पसंदीदा उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था।
स्थानीय अदालत ने जैन की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया। हाई कोर्ट ने 29 अप्रैल 2025 को मामले को “राजनीति से प्रेरित” बताते हुए जैन को अग्रिम जमानत दे दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने किरण की अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जातिसूचक गालियां देना और दलित समुदाय के व्यक्ति को अपमानित करना SC/ST एक्ट के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है। कोर्ट ने माना कि इस मामले में प्रथम दृष्टया अपराध साबित होता है, इसलिए अग्रिम जमानत देना उचित नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि SC/ST एक्ट का मकसद कमजोर वर्गों को संरक्षण देना है, और इसे कमजोर करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए।
कब मिल सकती है अग्रिम जमानत?
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि SC/ST एक्ट की धारा 3 के तहत अगर प्रारंभिक जांच में यह साफ हो जाता है कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया, तो कोर्ट CrPC की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत पर विचार कर सकता है। लेकिन अगर प्रथम दृष्टया अपराध के सबूत मौजूद हैं, तो ऐसी याचिकाएं खारिज की जानी चाहिए।
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