Chandigarh Bill 2025: पंजाब की राजनीति में इन दिनों तेज़ हलचल है। इसकी वजह एक संविधान संशोधन बिल है, जिसे मोदी सरकार द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाना था। लेकिन आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा की पूर्व सहयोगी अकाली दल ने इसका विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी सरकार इस बिल के ज़रिए चंडीगढ़ पर अपना नियंत्रण जमाना चाहती है। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि उसका अभी यह बिल लाने का कोई इरादा नहीं है।
सवाल यह उठ रहा है कि क्या सरकार किसी बिल को लाने से पहले उसकी ‘टेस्टिंग’ करती है? विपक्ष यही दावा कर रहा है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, “यह मोदी सरकार की कार्यशैली का एक और उदाहरण है। पहले घोषणा, फिर सोच।” इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 22 नवंबर को ही एक अनौपचारिक नोट पंजाब बीजेपी को भेज दिया था।
इस नोट में बिल के फायदे और उसे लाने की वजह बताई गई थी। लेकिन पंजाब बीजेपी के नेताओं का फीडबैक मिलने के बाद साफ हो गया कि अभी यह बिल लाने का सही वक्त नहीं है। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि पार्टी यह फैसला पंजाब के लोगों को नहीं समझा पाएगी, क्योंकि चंडीगढ़ से पंजाबियों का ‘भावनात्मक लगाव’ है। राज्य में ज़्यादातर लोगों की राय हमेशा से यही रही है कि चंडीगढ़ पंजाब को मिलना चाहिए।
बीजेपी नेताओं ने 2020-21 के तीन कृषि कानूनों का भी ज़िक्र किया, जिन्हें लाने के बाद सिख समुदाय के एक बड़े हिस्से में केंद्र सरकार के खिलाफ ‘संदेह और अविश्वास’ पैदा हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र को बताया गया कि इस बिल के पीछे का तर्क चाहे जो भी हो, पंजाबी भाषी आबादी इसे चंडीगढ़ के साथ ‘छेड़छाड़’ ही मानेगी।
नोट में बताए गए बिल के फायदे:
सूत्रों ने बताया कि नोट में साफ किया गया था कि अभी चंडीगढ़ के लिए नए कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास है। लेकिन 1966 के बाद से (पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 और चंडीगढ़ अधिनियम 1987 को छोड़कर) चंडीगढ़ की ज़रूरतों के लिए कोई नया कानून नहीं बना है।
वहीं दूसरी ओर, दूसरे केंद्र शासित प्रदेश राष्ट्रपति की मंज़ूरी से अपने लिए कानून बना लेते हैं। उन्हें हर छोटे बदलाव के लिए संसद का चक्कर नहीं लगाना पड़ता। लेकिन चंडीगढ़ को हमेशा किसी राज्य के कानून को ही अपनाना पड़ता है, और कई बार उसकी ज़रूरत के हिसाब का कानून मिल ही नहीं पाता।
इसी वजह से चंडीगढ़ की कानून बनाने की प्रक्रिया उतनी तेज़ और आसान नहीं है। प्रस्ताव में कहा गया था कि अगर चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के दायरे में लाया जाए, तो सरकार छोटे-मोटे बदलाव बिना संसद में लिए, सिर्फ राष्ट्रपति के आदेश से कर सकेगी। इससे काम जल्दी और आसानी से हो जाएगा।
‘बुनियादी स्थिति में कोई बदलाव नहीं’
रिपोर्ट के अनुसार, नोट में यह भी साफ कहा गया था कि इससे चंडीगढ़ की बुनियादी स्थिति नहीं बदलेगी। वह पंजाब और हरियाणा की साझा राजधानी बना रहेगा। प्रशासन में कोई बदलाव नहीं होगा, न ही अधिकारियों की नियुक्तियों या मौजूदा विभागों पर कोई असर पड़ेगा। स्वास्थ्य, पुलिस या स्थानीय सेवाओं में भी कोई फर्क नहीं आएगा।
नोट में दावा किया गया था कि इससे चंडीगढ़ की खास ज़रूरतों को जल्दी पूरा किया जा सकेगा और उसे भी दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों जैसी आधुनिक और लचीली कानून व्यवस्था मिल सकेगी।
पंजाब बीजेपी के सूत्रों ने कहा कि वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इस बिल को अभी ही क्यों लाया जा रहा था, क्योंकि राज्य में अगले विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ एक साल से कुछ ही ज़्यादा समय बचा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिख समुदाय तक अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
Chandigarh Bill 2025 बिल क्या है?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बिल का मकसद चंडीगढ़ को अनुच्छेद 240 के दायरे में लाना था। इसका मतलब यह होता कि चंडीगढ़ उन केंद्र शासित प्रदेशों की श्रेणी में आ जाता, जिनकी अपनी विधानसभा नहीं होती और जिनके लिए राष्ट्रपति सीधे नियम बना सकते हैं। फिलहाल अनुच्छेद 240 में अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव तथा पुडुचेरी आते हैं।










