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शीतल शर्मा की कलम से “मेरी बात सुनो”

शीतल शर्मा की कलम से "मेरी बात सुनो"

सुनो तो, रोती तुम हो भीग हम जाते हैं!
टपक- टपक जब वह गिरते हैं ,तो मेरे सीने में आग लगा जाते हैं!!

बच्चों जैसे काम करती हो, बच्चों जैसे रोती हो!
बच्चों जैसा दिल है पर, दिमाग क्यों बड़ों वाला लगाती हो!!

हंसा करो, खिलखिलाया करो, दिल को अपने न यु तड़पाया करो!

और- और, दिल करे तो मोती पिरो के अपने आंसुओं के ,मेरे गले पहना जाया करो !!

यह जो आंखों से बड़े-बड़े मोती टपकते हैं !
इन्हें देखकर मेरे सीने में होल पड़ते हैं !!

इतना न इन्हें वहाया करो !
बात – बात पर इन्हें न गिराया करो!!

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यह बहुत महंगे हैं ,तुम्हें एक बात कहूं !
भिगो देते हैं दहकती आग तक को ,मेरी एक बात सुनो !!

तोड़ा करो, मरोड़ा करो,पर बार-बार जोड़ा करो!
रोका करो, फिर छोड़ा करो,लेकिन कसम कभी न तोड़ा करो !!

कोई भी तो नहीं ,जो तेरे भूखे रहने पर नाराज हो !
एक मैं हूं , जा न हूं , लेकिन नाराज तो सच में हूं !!

दिल करता है तुम्हें गोद में उठाऊं ,चिल्ला – चिल्ला कर सबको बताऊं !
हाथ पकडू तेरा,और सबको दिखाओ ,चूमू माथा तेरा, और तेरी गोदी में मर जाऊं !!

शीतल शर्मा द्वारा ।
राजा का तालाब ।
हिस्ट्री की लैक्चरर ।

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