Himachal High Court News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि ऑनलाइन भर्ती फॉर्म में छोटी-मोटी गलतियों, जैसे गलत श्रेणी चुन लेना, के आधार पर किसी उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द नहीं की जानी चाहिए।
कोर्ट ने माना कि ऐसी गलतियों को सुधारने का मौका उम्मीदवारों को देना चाहिए। जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ ने अपने फैसले में कहा, “यह एक अनजानी गलती थी, जो शायद साइबर कैफे की ओर से हुई, जहां याचिकाकर्ता ने फॉर्म भरा था।”
क्या है मामला?
दरअसल, याचिकाकर्ता मंजना ने 4 अक्टूबर 2024 को हिमाचल प्रदेश पुलिस में महिला कांस्टेबल के पद के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। साइबर कैफे में फॉर्म भरते समय उसने गलती से अपनी श्रेणी “अनुसूचित जाति” चुन ली, जबकि उसने “अनुसूचित जनजाति” का प्रमाणपत्र अपलोड किया था।
शारीरिक दक्षता परीक्षा के दौरान जब वह पहुंची, तो अधिकारियों ने इस गलती को पकड़ा। ऑनलाइन फॉर्म और एडमिट कार्ड में “अनुसूचित जाति” लिखा था, लेकिन पंजीकरण काउंटर पर जमा किए गए फॉर्म में उसने “अनुसूचित जनजाति” लिखा था।
पुलिस अधिकारियों ने मंजना को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र लाने को कहा, लेकिन उसने स्पष्ट किया कि वह अनुसूचित जनजाति से है और सही प्रमाणपत्र पहले ही अपलोड कर चुकी है। उसने बताया कि उसे गलत श्रेणी चुनने की जानकारी नहीं थी। इसके बाद, मंजना ने हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग को पत्र लिखकर अपनी श्रेणी सुधारने की गुहार लगाई, लेकिन 29 मार्च 2025 को आयोग ने उसके अनुरोध को ठुकरा दिया।
हाईकोर्ट में याचिका ( Petition in Himachal High Court )
इस अस्वीकृति से परेशान मंजना ने हिमाचल हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उसने मांग की कि आयोग के फैसले को रद्द किया जाए और उसे लिखित परीक्षा में शामिल होने की इजाजत दी जाए, क्योंकि वह शारीरिक परीक्षा पास कर चुकी थी।
Himachal High Court का फैसला
इस मामले में सुनवाई के बाद हिमाचल हाईकोर्ट ने मंजना के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने पाया कि उसने साइबर कैफे की मदद से फॉर्म भरा था और गलती अनजाने में हुई थी। मंजना ने अनुसूचित जनजाति का वैध प्रमाणपत्र अपलोड किया था, और उसका दावा सच्चा था।
शारीरिक परीक्षा के दौरान उसने सही श्रेणी भी लिखी थी, लेकिन गलती का पता बाद में चला। कोर्ट ने माना कि भर्ती विज्ञापन में श्रेणी सुधार की अनुमति थी, बशर्ते कोई छूट का दावा न किया गया हो। मंजना ने अनुसूचित जाति के तहत कोई लाभ नहीं लिया था, इसलिए उसका अनुरोध जायज था।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि छोटी-मोटी गलतियों के लिए उम्मीदवारी रद्द नहीं की जा सकती। जस्टिस दुआ ने कहा कि मंजना की गलती में कोई धोखाधड़ी नहीं थी और यह साइबर कैफे की गलती हो सकती है। कोर्ट ने यह भी माना कि श्रेणी सुधारने से भर्ती प्रक्रिया या अन्य उम्मीदवारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
हाईकोर्ट ने मंजना की याचिका मंजूर कर ली और लोक सेवा आयोग को आदेश दिया कि वह मंजना को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में फॉर्म सुधारने की अनुमति दे। कोर्ट ने कहा कि छोटी गलतियों को सुधारने का मौका देना निष्पक्षता का तकाजा है।
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