Bihar Voter List Controversy: बिहार में SIR पर घमासान मचा हुआ है और विवाद दिल्ली तक पहुंच गया है। विपक्षी दल INDIA अलायंस लगातार SIR के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा है। वहीं SIR के खिलाफ याचिकाएं भी दायर हुई हैं,। जिसके बाद बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई।
इस दौरान कोर्ट ने सख्त लहजे में यह स्पष्ट किया कि अगर ‘Special Intensive Revision‘ प्रक्रिया में अवैधता साबित होती है तो सितंबर तक यानी चुनाव से दो महीने पहले भी पूरी वोटर लिस्ट रद्द की जा सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया में गंभीर खामियां पाई जाती हैं, तो चुनाव से मात्र दो महीने पहले भी मतदाता सूची को रद्द किया जा सकता है।
दरअसल, बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें से एक राजद सांसद सुधाकर सिंह ने दायर की है। सुधाकर सिंह ने दावा किया कि उनके साथ 17 ऐसे लोग कोर्ट में उपस्थित हैं, जिन्हें मृत घोषित कर उनकी मतदाता सूची से नाम हटा दिया गया। सुनवाई शुरू होते ही वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने SIR प्रक्रिया की खामियों पर जोरदार दलीलें पेश कीं।
उन्होंने कहा कि एक विधानसभा क्षेत्र में 12 जीवित लोगों को मृत बताकर उनकी वोटर लिस्ट से नाम काटे गए हैं। इसके अलावा, कुछ मृत लोगों के नाम अभी भी सूची में शामिल हैं। सिब्बल ने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार क्यों नहीं कर रहा। उन्होंने कहा, “अगर मैं कहता हूं कि मैं भारतीय नागरिक हूं, तो यह सत्यापित करना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।”
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता योगेंद्र यादव सहित अन्य याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अपनी बात व्यवस्थित रूप से रखी। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में कहा कि चुनाव आयोग पांच करोड़ लोगों की नागरिकता पर सवाल नहीं उठा सकता। उन्होंने तर्क दिया कि आयोग का काम केवल पहचान की पुष्टि करना है, न कि नागरिकता तय करना, जो गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। सिंघवी ने पूछा कि अगर कोई व्यक्ति पहले से मतदाता सूची में है, तो आयोग कैसे उसकी नागरिकता पर सवाल उठा सकता है।
वहीँ चुनाव आयोग की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट में दलील दी कि बिहार में SIR की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि अभी केवल प्रारंभिक मतदाता सूची जारी की गई है और लोगों को आपत्तियां दर्ज करने के लिए नोटिस देकर एक महीने का समय दिया गया है। द्विवेदी ने कहा कि ड्राफ्ट सूची में कुछ त्रुटियां स्वाभाविक हैं, और लोगों की आपत्तियों व सुझावों के आधार पर सुधार के बाद अंतिम मतदाता सूची तैयार की जाएगी।
Bihar Voter List Controversy: चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर क्यों उठ रहे सवाल?
दरअसल, चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू किया, जिसका मुख्य लक्ष्य विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को अद्यतन करना और मृतकों, प्रवासियों या गैर-निवासियों जैसे अयोग्य मतदाताओं के नाम हटाना था। लेकिन इस प्रक्रिया पर विपक्षी पार्टियां और संगठन जैसे एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), राजद सांसद मनोज झा तथा तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि SIR के नाम पर लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से गैरकानूनी तरीके से काटे जा रहे हैं, जिससे गरीब वर्ग और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के साथ अन्याय हो रहा है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की पीठ कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मतदाता सूची से जुड़े तथ्यों और आंकड़ों की तैयारी करने को कहा है, जिसमें संशोधन से पहले और बाद की मतदाता संख्या, मृतक मतदाताओं का ब्योरा आदि शामिल हैं।
गौरतलब है कि 29 जुलाई 2025 को भी सुप्रीम कोर्ट ने बिहार SIR पर सुनवाई की थी और पीठ ने कहा था कि यदि मतदाता सूची में बड़े स्तर पर अनियमितताएं पाई गईं, तो वह तुरंत दखल देगा। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि बिहार में लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं, जिनमें से कई जीवित हैं, लेकिन उन्हें मृत या गैर-मौजूद मान लिया गया।
इसलिए मांग की जा रही है कि हटाए गए 65 लाख नामों का विवरण सार्वजनिक किया जाए, लेकिन चुनाव आयोग (ECI) ने कहा है कि SIR प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(3) के अंतर्गत पूरी तरह वैध है। किसी भी नाम को बिना पूर्व सूचना, सुनवाई का मौका दिए या उचित कारण के हटाया नहीं जाएगा।
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