Himachal High Court News: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने नालागढ़ के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अभय मंडयाल के खिलाफ अवमानना के मामले में उनकी माफी को स्वीकार कर लिया है। लेकिन कोर्ट ने साफ-साफ चेतावनी दी कि न्यायपालिका के धैर्य को कभी कमजोरी नहीं समझना चाहिए। अगर भविष्य में कोर्ट के आदेशों की जरा सी भी अनदेखी हुई, तो तुरंत और सख्त कार्रवाई होगी।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस बीसी नेगी ने कहा कि जज अभय मंडयाल ने पहले माफी मांगी थी, लेकिन उसे ठुकराने के बाद ही उनकी समझ जागी। कोर्ट ने बताया कि अभय एक वरिष्ठ और अनुभवी न्यायिक अधिकारी हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि देश की संवैधानिक व्यवस्था में कोर्ट के आदेशों का पालन जरूरी है। कोर्ट के आदेशों को नजरअंदाज करना न सिर्फ न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि पूरे न्याय प्रशासन को कमजोर करता है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला राम लाल नाम के एक व्यक्ति से जुड़ा है। राम लाल ने नालागढ़ के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश अभय मंडयाल के 24 मई 2025 के एक फैसले के खिलाफ हिमाचल हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। राम लाल ने अपनी शिकायत में बदलाव करने और अमरो (मृतक) व जोगिंद्रा सहकारी बैंक लिमिटेड का नाम हटाने की अर्जी दी थी, जिसे नालागढ़ कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
इसके बाद, 30 मई 2025 को हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई। हाई कोर्ट ने नालागढ़ कोर्ट को आदेश दिया कि वह इस मामले में आगे की कार्रवाई पर रोक लगाए। लेकिन जज अभय मंडयाल ने हाई कोर्ट के इस आदेश की अनदेखी की और उसी दिन अपील का फैसला सुना दिया। इसके बाद राम लाल ने फिर से हाई कोर्ट में अर्जी दी और बताया कि नालागढ़ कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है।
हाई कोर्ट को क्या गलत लगा?
राम लाल ने कोर्ट को बताया कि 30 मई को सुबह नालागढ़ जज को हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश की जानकारी मौखिक रूप से दे दी गई थी। फिर भी, नालागढ़ कोर्ट ने उनकी अर्जी को स्वीकार नहीं किया। इतना ही नहीं, दोपहर के सत्र में बिना उनकी दलीलें सुने, जज ने 44 पेज का विस्तृत फैसला सुना दिया।
हाई कोर्ट ने इसे गंभीर माना और कहा कि यह साफ है कि जज ने पहले से ही फैसला तैयार कर लिया था और हाई कोर्ट के आदेश को जानबूझकर नजरअंदाज किया। यह नालागढ़ जज की ओर से कोर्ट की अवमानना थी।
कोर्ट का अंतिम फैसला
हाई कोर्ट ने जज अभय मंडयाल की माफी को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन उन्हें सख्त हिदायत दी कि भविष्य में ऐसा कुछ भी हुआ तो कोर्ट तुरंत और कड़ा कदम उठाएगा। यह मामला दिखाता है कि न्यायपालिका अपने आदेशों को लेकर कितनी गंभीर है और कोई भी, चाहे वह जज ही क्यों न हो, कोर्ट की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचा सकता।
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