Shoolini Fair: मां शूलिनी देवी, जो देवी दुर्गा का स्वरूप हैं, उनकी कृपा और छत्रछाया में सोलन शहर आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। उनकी महिमा और शक्ति का प्रतीक यह पावन भूमि भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रही है। इसी आलोक में, प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी मां शूलिनी की महिमा को समर्पित भव्य मेले का आयोजन हो रहा है, जो सोलनवासियों और श्रद्धालुओं के लिए आस्था, संस्कृति और एकता का अनुपम संगम है।
सैकड़ों वर्षों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को अपने में समेटे यह मेला केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है, जो मां शूलिनी की असीम कृपा और भक्तों की अटूट श्रद्धा को दर्शाती है। इस मेले में जहां एक ओर भक्त मां के दर्शन और पूजन में लीन होकर अपने जीवन को धन्य करते हैं, वहीं दूसरी ओर यह मेला सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी मंच बनता है। नृत्य, संगीत, पारंपरिक शिल्प और स्थानीय व्यंजनों से सुसज्जित यह आयोजन सोलन की समृद्ध विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का सेतु भी है।
शूलिनी माता का इतिहास (Shoolini Mata History)
शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है। माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की कुलदेवी देवी मानी जाती है। माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है। शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही शहर का नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था। यहां का नाम बघाट भी इसलिए पड़ा क्योंकि रियासत में 12 स्थानों का नामकरण घाट के साथ था। माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया।
मान्यता के अनुसार बघाट के शासक अपनी कुल देवी की प्रसन्नता के लिए प्रतिवर्ष मेले का आयोजन करते थे। लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के प्रसन्न होने पर क्षेत्र में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता, बल्कि खुशहाली आती है और मेले की यह परंपरा आज भी कायम है।
मां शूलिनी की अपार कृपा के कारण ही शहर दिन-प्रतिदिन सुख व समृद्धि की ओर से अग्रसर है। पहले यह मेला केवल एक दिन ही मनाया जाता था, लेकिन सोलन जिला के अस्तित्व में आने के पश्चात इसका सांस्कृतिक महत्व बनाए रखने, आकर्षक बनाने व पर्यटन दृष्टि से बढ़ावा देने के लिए इसे राज्यस्तरीय मेले का दर्जा दिया गया। अब यह मेला जून माह के तीसरे सप्ताह में तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले छोटे स्तर पर आयोजित होने वाले शूलिनी मेले का आज स्वरूप विशाल हो गया है, आज यह राज्यस्तरीय तीन दिवसीय मेले के रूप में मनाया जाता है। जिला प्रशासन इस मेले को करवाता और अब मेले का बजट एक करोड़ पहुंच गया है।
बड़ी बहन के घर पर दो दिनों तक रुकती हैं माता ( Shoolini Fair History)
सोलन की अधिष्ठात्री देवी मां शूलिनी मेले के पहले दिन पालकी में बैठकर अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने पहुंचती है। दो बहनों के इस मिलन के साथ ही राज्य स्तरीय मां शूलिनी मेले का आगाज हो जाता है। मां शूलिनी अपने मंदिर से पालकी में बैठकर शहर की परिक्रमा करने के बाद गंज बाजार स्थित अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने पहुंचती है। मां शूलिनी तीन दिनों तक लोगों के दर्शानार्थ वहीं विराजमान रहती है।
उल्लेखनीय है कि बघाट रियासत के राजा जब सोलन में बसे थे, तो वो मां शूलिनी को अपने साथ ही सोलन लेकर आए थे। कहा जाता है कि माता शूलिनी बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी थी और उनके हर कामों को पूर्ण करने वाली थी, तब से लेकर आज तक मां शूलिनी की सोलन शहर पर आपार कृपा है।
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