Censorship Issue Raised at Khushwant Singh Litfest 2025: कसौली के ऐतिहासिक क्लब में 14वें खुशवंत सिंह लिटरेचर फेस्टिवल (KSLF 2025) के दूसरे दिन सत्र Beyond Cinema, Songs and Life में मशहूर अभिनेता, निर्देशक और लेखक अमोल पालेकर, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका संध्या गोखले, और सत्र संचालक ऋषि मजूमदार ने कला, सिनेमा, थिएटर और सेंसरशिप जैसे मुद्दों पर गहरी चर्चा की। इस सत्र में अमोल पालेकर की आत्मकथा पर आधारित किताब पर भी बात हुई, जो उनके बहुआयामी जीवन और रचनात्मक यात्रा को दर्शाती है।
अमोल पालेकर ने अपनी आत्मकथा में न केवल अपने सिनेमाई और थिएटरीय सफर को उजागर किया, बल्कि अपनी चित्रकारी और सामाजिक दृष्टिकोण को भी सामने रखा। उन्होंने बताया कि उनकी कला यात्रा मुंबई के शिवाजी पार्क से शुरू हुई, जहां फिल्म होर्डिंग्स ने उन्हें दृश्य कला की ओर आकर्षित किया। “मैं रोज़ शिवाजी पार्क से दादर स्टेशन तक पैदल जाता था और रास्ते में फिल्म होर्डिंग्स बनाने वाले स्टूडियो देखकर रुक जाता था। यहीं से मेरी चित्रकारी की शुरुआत हुई।”
जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने कुछ एकल प्रदर्शनियां कीं, लेकिन थिएटर और सिनेमा में व्यस्तता के कारण चित्रकारी पीछे छूट गई। 70 साल की उम्र में उन्होंने फिर से कैनवास उठाया। “चित्रकारी एकांतिक प्रक्रिया है। थिएटर और सिनेमा में आपको दर्शकों से संवाद करना होता है, लेकिन चित्रकारी में मैं अपने आप से बात करता हूं।”
पालेकर ने अपनी किताब के एक अंश का ज़िक्र किया, जिसमें वे कहते हैं, “लोगों को मेरे सिल्वर स्क्रीन के साधारण, लड़खड़ाते किरदार और असल ज़िंदगी के गंभीर, दृढ़ अमोल पालेकर के बीच का अंतर समझना मुश्किल लगता है।” उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने किरदारों को वास्तविकता से अलग रखा और कभी भीड़ का हिस्सा बनने की कोशिश नहीं की।
वहीँ संध्या गोखले, जो अमोल पालेकर की पत्नी, एक वकील, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, ने अपनी बहुआयामी ज़िंदगी के बारे में बताया। उन्होंने न्यूयॉर्क में 10 साल बिताए, जहां उन्होंने कला, साहित्य और दर्शनशास्त्र में गहरी रुचि विकसित की। “मैंने प्रिंसटन में कई कोर्स किए और विश्व सिनेमा को करीब से देखा।” अमोल के आग्रह पर उन्होंने कानून से 15 साल का ब्रेक लिया और लेखन व फिल्म निर्माण में योगदान दिया, जिसमें ऑस्कर के लिए भारत की प्रविष्टि पहेली का स्क्रीनप्ले शामिल है। “मैं मानती हूं कि एक जीवन में तीन करियर होने चाहिए, जिनमें आप पूरी तरह समर्पित हों।”
सेंसरशिप पर दो टूक राय
पालेकर और गोखले ने सेंसरशिप के खिलाफ अपनी लड़ाई पर खुलकर बात की। पालेकर ने पुणे में हाल ही की एक घटना का ज़िक्र किया, जहां मराठी फिल्म मनाचे श्लोक का विरोध हुआ। “10 लोग फिल्म का टाइटल बदलने की मांग कर रहे थे, क्योंकि उनका दावा था कि यह संत रामदास स्वामी का अपमान है। लेकिन 300 दर्शक वहां फिल्म देखने आए थे। मैं पूछता हूं, दर्शकों को उन 10 लोगों से यह कहने का हक क्यों नहीं कि हम फिल्म देखना चाहते हैं?” उन्होंने सेंसरशिप को “गुंडागर्दी” करार दिया और दर्शकों से इसका विरोध करने की अपील की। “अगर हम चुप रहे, तो यह और बढ़ेगा।”
संध्या ने बताया कि वे और अमोल सेंसरशिप के खिलाफ कई कानूनी लड़ाइयां लड़ रहे हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट में सात-आठ जनहित याचिकाएं शामिल हैं। “महाराष्ट्र और गुजरात में थिएटर के लिए सेंसर बोर्ड है, जो समझ से परे है। मैं बॉम्बे हाई कोर्ट में इसके खिलाफ केस लड़ रही हूं।” उन्होंने लेखकों में बढ़ती आत्म-सेंसरशिप पर चिंता जताई, जो रचनात्मकता को दबा रही है।
पालेकर ने अपने थिएटरीय गुरु सत्यदेव दुबे को श्रद्धांजलि दी, जिन्हें उन्होंने अपने अभिनय करियर का निर्माता बताया। “दुबे ने मुझे सिखाया कि मंच पर कैसे खड़ा होना है, कैसे बोलना है, और कैसे बिना माइक के अपनी आवाज़ को प्रोजेक्ट करना है।” उन्होंने दुबे के साथ अपने मतभेदों का भी ज़िक्र किया, लेकिन कहा, “मैंने उन्हें हमेशा ‘दुबे’ बुलाया, न कि ‘दुबे जी’, और वे इसे स्वीकार करते थे।” पालेकर ने दुबे से न केवल अभिनय, बल्कि साहित्यिक ग्रंथों की व्याख्या और अपनी मान्यताओं पर अडिग रहने का सबक सीखा।
संध्या ने अमोल के साथ अपनी 26 साल की साझेदारी को “प्यार और झगड़े” का मिश्रण बताया। “हमारी संवेदनाएं और राजनीतिक विचार एक जैसे हैं। अगर हमारी विचारधारा अलग होती, तो शायद हम एक दिन भी साथ नहीं रह पाते।” उन्होंने अमोल की आत्मकथा को क्यूरेट करने के अनुभव को साझा किया, जो पहले मराठी में 450 पन्नों में हस्तलिखित थी। “इसे पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि हमने कितना समृद्ध और विविध जीवन जिया है।”











