हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुए अभी पांच महीने हुए हैं, और केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश की कर्ज लेने की सीमा 5,500 करोड़ रुपये घटा दी। पहले यह सीमा 14,500 करोड़ थी,जो अब 9,000 करोड़ रुपये रह गई। जाहिर है कि केंद्र के इस फैसले के बाद सुक्खू सरकार की आर्थिक मोर्चे पर परेशानियां बढ़ने वाली हैं। केंद्र द्वारा कर्ज लेने की सीमा में कटौती करने के अलावा एनपीएस की मिलने वाली मैचिंग ग्रांट होने तथा जीएसटी प्रतिपूर्ति राशि के बंद होने से हिमाचल की सुक्खू सरकार को इस बार गंभीर वित्तीय संकट से जूझना पड़ेगा। ऐसे में कांग्रेस सरकार को अपनी चुनावी गारंटीयों को पुरा करना आसान नही होगा।
आपको बताते चलें कि लंबे अर्से से कर्ज लेकर घी पी रही हिमाचल सरकार को बीते साल जब प्रदेश में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी, तब केंद्र ने हिमाचल को 14,500 करोड़ रुपए सालाना कर्ज लेने की छूट थी। लेकिन सूबे में सत्ता परिवर्तन के पांच महीने में ही केंद्र की मोदी सरकार ने कर्ज लेने की सीमा को घटा कर सुक्खू सरकार को जोर का झटका दिया है।
केंद्र सरकार ने मई 2020 में हिमाचल की सालाना कर्ज लेने की सीमा 3 फीसदी से बढ़ाकर 5 फीसदी की थी। इस के बाद हिमाचल सरकार 2020 से 2022 तक राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 5 फीसदी तक कर्ज लेती रही। सत्ता परिवर्तन के बाद सुक्खू सरकार ने अधिक कर्ज लेने के लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंध संशोधन विधेयक 2023 पास किया। इसके तहत कर्ज लेने की सीमा बढ़ा कर 6 फीसदी कर दी गई। लेकिन केंद्र ने वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए लोन की सीमा को घटाकर 3% किया है। जिससे प्रदेश में आर्थिक संकट बढ़ने वाला है।
कैग भी हिमाचल की वित्तीय स्थिति गड़बड़ाने को लेकर कई बार चेतावनी दे चूका है। इसके अलावा पुराने कर्ज के ब्याज चुकाने से राज्य की आर्थिक सेहत ज्यादा तेजी से बिगड़ रही है। माना जा रहा है कि सुक्खू सरकार के ओल्ड पेंशन योजना को लागू करने और दूसरे चुनावी वादों की वजह से केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया है। इस फैसले की वजह से पहले से ही आर्थिक संकट में चल रहे प्रदेश को और वित्तीय संकट से जूझना पड़ेगा।