Himachal News: हिमाचल प्रदेश के लाखों सेब बागान मालिकों के लिए एक बड़ी राहत आई है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हिमाचल हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें अतिक्रमित वन भूमि से फलदार सेब के बाग हटाने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को गलत ठहराते हुए कहा कि इसका समाज के कमजोर वर्गों और भूमिहीन लोगों पर गहरा नकारात्मक असर पड़ेगा।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट का आदेश बेहद कठोर था और इसका सीधा प्रभाव उन समुदायों की आजीविका पर पड़ता है, जो इन बागों पर निर्भर हैं। अदालत ने कहा कि यह मामला नीतिगत निर्णय से जुड़ा है और अदालत को ऐसा आदेश नहीं देना चाहिए था, जिससे फलदार पेड़ों की कटाई अनिवार्य हो जाए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार वन भूमि पर अतिक्रमण के मामलों में उचित कार्रवाई कर सकती है, लेकिन इसके साथ ही अदालत ने यह भी सुझाया कि हिमाचल सरकार को एक प्रस्ताव तैयार करके केंद्र सरकार के पास भेजना चाहिए, ताकि इस मुद्दे पर समग्र कदम उठाए जा सकें।
यह मामला उस याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसमें राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। इसके अलावा, पूर्व उपमहापौर टिकेंदर सिंह पंवार और सामाजिक कार्यकर्ता राजीव राय की याचिकाओं पर भी सुप्रीम कोर्ट ने विचार किया। इससे पहले, 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी, जब यह बताया गया कि खासकर मानसून के दौरान इस फैसले से लाखों लोग प्रभावित होंगे।
याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि यदि मानसून के दौरान सेब के बागों की कटाई की जाती है, तो इससे भूस्खलन और मृदा अपरदन का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सेब के बाग केवल अतिक्रमण नहीं हैं, बल्कि ये मिट्टी को स्थिर रखने, जैव-विविधता को सहारा देने और राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाते हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि बिना किसी व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के सेब के बागों को हटाना न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से गलत है, बल्कि इससे छोटे किसानों की आजीविका पर भी गंभीर खतरा पैदा हो सकता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन और जीविका के अधिकार का उल्लंघन है।
इस फैसले के साथ अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि वन संरक्षण और लोगों की आजीविका के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह सुझाव दिया कि इसके लिए अदालत के बजाय सरकारें नीति स्तर पर समाधान निकालें।
उल्लेखनीय है कि 18 जुलाई तक की रिपोर्टों के अनुसार, चैथला, कोटगढ़ और रोहड़ू जैसे क्षेत्रों में 3,800 से अधिक सेब के पेड़ काटे गए थे। राज्यभर में कुल 50,000 पेड़ों को हटाने की योजना बनाई गई थी। याचिका में यह कहा गया है कि सार्वजनिक रिपोर्टों से मिले प्रमाणों के आधार पर, इस आदेश के लागू होने से फलदार सेब के पेड़ों का बड़े पैमाने पर नाश हुआ, जिससे व्यापक जनसमस्या और आलोचना पैदा हुई।












