Himachal News: हिमाचल हाईकोर्ट ने वन विभाग पर लगाया 2 लाख रुपये का जुर्माना, करुणामूलक नियुक्ति में भेदभाव का मामला

Published on: 1 August 2024
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Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने करुणामूलक आधार पर नौकरी पाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर करने के आरोप में वन विभाग पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। न्यायाधीश विरेंदर सिंह (Judge Virender Singh ) ने याचिका से संबंधित तथ्यों और रिकॉर्ड की गहराई से समीक्षा के बाद यह पाया कि वन विभाग के अधिकारियों का प्रार्थी के प्रति पूरी तरह से भेदभावपूर्ण रवैया रहा, जिसके कारण कोर्ट को यह आदेश पारित करना पड़ा।

हिमाचल हाईकोर्ट में दायर याचिका में दर्शाया गया है कि प्रार्थी के पिता, जो 20 जुलाई 2007 को वन विभाग (Forest Department Himachal) में वन कार्यकर्ता के पद पर कार्यरत थे, की मृत्यु हो गई। प्रार्थी ने कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते और प्रचलित नीति के अनुसार करुणामूलक आधार पर वन रक्षक के पद के लिए आवेदन किया।

प्रार्थी का आवेदन स्वीकार कर उसे 3 सितम्बर 2008 को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। 9 सितम्बर 2008 को हुए साक्षात्कार में प्रार्थी ने ‘शारीरिक माप’, ‘शारीरिक दक्षता परीक्षण’ और ‘व्यक्तिगत साक्षात्कार’ को सफलता पूर्वक उत्तीर्ण किया। इसके बाद उसका मामला वन संरक्षक बिलासपुर द्वारा प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भेजा गया, लेकिन उसे नियुक्ति नहीं दी गई।

प्रार्थी ने सूचना के अधिकार कानून के तहत जानकारी प्राप्त की, जिसमें यह खुलासा हुआ कि वन विभाग ने अनुकंपा के आधार पर 45 उम्मीदवारों को नियुक्ति की पेशकश की थी, जिनमें से 10 वन रक्षकों को नियुक्त किया गया था। इसके अतिरिक्त, सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त एक और जानकारी में यह सामने आया कि 2009 में करुणामूलक आधार पर पांच व्यक्तियों की नियुक्ति की गई थी।

हिमाचल हाईकोर्ट ने वन विभाग के इस भेदभावपूर्ण कृत्य को गंभीरता से लेते हुए 22 सितम्बर 2015 के आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि प्रार्थी को दो महीने के भीतर करुणामूलक आधार पर वन रक्षक के पद पर नियुक्त किया जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वन विभाग को प्रार्थी के मामले को जानबूझकर लटकाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से 2 लाख रुपये की कॉस्ट वसूलने का अधिकार है।

इस निर्णय से वन विभाग में करुणामूलक आधार (Compassionate Grounds) पर नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की उम्मीदें बढ़ी हैं। यह आदेश न केवल प्रार्थी को राहत प्रदान करता है, बल्कि अन्य प्रभावित व्यक्तियों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। कोर्ट का यह निर्णय सरकारी विभागों को सन्देश देता है कि वे अपने कर्तव्यों को निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ निभाएं और नागरिकों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करें।

Tek Raj

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