Himachal High Court: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर किसी चार्जशीट में यह नहीं बताया गया कि कब्जाई गई जमीन आरक्षित वन (रिजर्व फॉरेस्ट) है और इसके लिए कोई आधिकारिक अधिसूचना जारी नहीं हुई, तो उस व्यक्ति को भारतीय वन अधिनियम की धारा 33 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
क्या है मामला?
कोर्ट ने यह फैसला 1992 में दिए गए अपने एक पुराने फैसले (हिमाचल प्रदेश सरकार बनाम अमी चंद) के आधार पर सुनाया। उस फैसले में भी कोर्ट ने कहा था कि अगर यह साबित न हो कि जमीन आरक्षित वन का हिस्सा है और इसके लिए कोई अधिसूचना जारी हुई है, तो किसी व्यक्ति को कब्जे का दोषी नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने साफ किया कि भारतीय वन अधिनियम के तहत कार्रवाई करने के लिए यह जरूरी है कि जमीन को आरक्षित वन घोषित करने वाली अधिसूचना मौजूद हो। बिना इस अधिसूचना के कोई भी व्यक्ति जंगल की जमीन पर कब्जे के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
क्यों अहम है यह फैसला?
यह फैसला उन लोगों के लिए राहत की बात है, जिन पर बिना पुख्ता सबूत या अधिसूचना के वन भूमि पर कब्जे का आरोप लगाया जाता है। कोर्ट ने सरकार और वन विभाग को यह सुनिश्चित करने की हिदायत दी है कि कोई भी कार्रवाई करने से पहले सभी कानूनी दस्तावेज और अधिसूचनाएं स्पष्ट हों।
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