Google News Preferred Source
साइड स्क्रोल मेनू

Himachal Pradesh High Court: हाईकोर्ट का फैसला, 7 साल की मासूम से रेप के आरोपी 16 वर्षीय लड़के को कोर्ट में वयस्क की तरह होना होगा पेश

Himachal Pradesh High Court , Himachal High Court , Himachal High Court Decision, MV Act

Himachal Pradesh High Court: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 16 साल के एक किशोर द्वारा 7 साल की बच्ची के साथ कथित तौर पर रेप एक गंभीर मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि इस किशोर पर वयस्क की तरह मुकदमा चलेगा। किशोर न्याय बोर्ड (JJB) के फैसले को हाईकोर्ट ने सही ठहराया है।

कोर्ट ने पाया कि मेडिकल बोर्ड की जांच में आरोपी का आईक्यू 92 है और वह अपने किए की पूरी जिम्मेदारी समझता था। उसने पीड़िता को धमकी देकर चुप रहने को कहा था, जो साबित करता है कि वह अपने कृत्य के परिणामों से वाकिफ था।

न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने कहा, “मेडिकल बोर्ड ने आरोपी की मानसिक स्थिति का सही आकलन किया। सिर्फ इसलिए कि कुछ कागजात बोर्ड तक नहीं पहुंचे, रिपोर्ट को कमजोर नहीं ठहराया जा सकता।” कोर्ट ने यह भी माना कि आरोपी किसी मानसिक या शारीरिक कमजोरी से पीड़ित नहीं है, इसलिए उसे बाल न्यायालय में वयस्क की तरह पेश किया जाना उचित है।

इसे भी पढ़ें:  Online RTI HP: हिमाचल सरकार की RTI-विरोधी साजिश..? एक साल से खाली सूचना आयुक्त का पद, सुनवाई को लटकी सैकड़ों अपीलें

दरअसल ,पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 और लैंगिक अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 की धारा 4 के तहत केस दर्ज किया। पीड़िता 7 साल की है। उसने बताया कि वह खेलने के लिए आरोपी के घर गई थी। घर लौटते वक्त उसे पेट में दर्द हुआ।

पूछताछ में उसने खुलासा किया कि आरोपी उसे गौशाला में ले गया और उसके साथ गलत हरकत की। पुलिस ने पाया कि वारदात के समय आरोपी की उम्र 16 साल, एक महीना और 23 दिन थी। इसके बाद किशोर न्याय बोर्ड ने प्रारंभिक जांच के बाद मामले को बाल न्यायालय भेज दिया, ताकि वयस्क की तरह कार्रवाई हो सके।

इसे भी पढ़ें:  कोली समुदाय का समाज के कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान :- मुख्यमंत्री

आरोपी ने इस फैसले को चुनौती देते हुए शिमला सेशन कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिली। फिर उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसका दावा था कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 14(3) के तहत तीन महीने में जांच पूरी नहीं हुई और मेडिकल बोर्ड को दस्तावेज नहीं दिए गए।

हालांकि, हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के X बनाम कर्नाटक राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि तीन महीने की समय-सीमा अनिवार्य नहीं, बल्कि सुझाव मात्र है। इस आधार पर कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
(केस नाम: V (a juvenile) बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार)

YouTube video player
संस्थापक, प्रजासत्ता डिजिटल मीडिया प्रजासत्ता पाठकों और शुभचिंतको के स्वैच्छिक सहयोग से हर उस मुद्दे को बिना पक्षपात के उठाने की कोशिश करता है, जो बेहद महत्वपूर्ण हैं और जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया नज़रंदाज़ करती रही है। पिछलें 9 वर्षों से प्रजासत्ता डिजिटल मीडिया संस्थान ने लोगों के बीच में अपनी अलग छाप बनाने का काम किया है।

Join WhatsApp

Join Now