Himachal Pradesh: “सुख की सरकार” यह नारा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार का पहचान चिन्ह बन चुका है। राज्य की सुक्खू सरकार के 11 दिसम्बर 2024 को अपना दो साल के कार्यकाल पूरा कर रही है। इस अवसर पर बिलासपुर के लुहणू मैदान में भव्य समारोह आयोजित किया जा रहा है। जिसमे दो सरकार अपनी दो साल की उपलब्धियां और आगामी योजनाओं का खाका पेश करेगी। लेकिन क्या वाकई यह सरकार जनता को सुख देने में सफल रही है?
उल्लेखनीय है कि प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार अपने दो साल के कार्यकाल में कई चुनौतियों का सामना कर रही है। भले ही सरकार और नेताओं की तरफ से व्यवस्था परिवर्तन और कई योजनाओं को लागू करने और प्रदेश को आर्थिक रूप से मजबूत करने के दावे होतें हो, लेकिन असल में चुनावी वादों को पूरा करने में नाकाम रहना, विवादित निर्णय, आंतरिक कलह और बढ़ता आर्थिक बोझ सरकार की छवि को धूमिल कर रहे हैं।
सुख की सरकार के दो साल काफी चर्चित रहे हैं, जिसमे कांग्रेस पार्टी की अंतर कलह भी खुल कर सामने आई है। सरकार और संगठन में आपसी तालमेल न होने से कई ऐसी घटनाएँ सामने आई जिसने प्रदेश ही नहीं देश में सरकार और पार्टी की साख पर सवालिया निशान लगाया है। वहीँ केंद्र और राज्य के बीच संबंध भी खींचतान भरे रहे है। केंद्र की मोदी सरकार के पूर्ण सहयोग न करने और तालमेल की कमी हिमाचल विकास कार्यों में बड़ी बाधा बन रहा है। प्रदेश पर कर्ज का बढ़ता बोझ चिंता का विषय बनता जा रहा है। आइए सुक्खू की सरकार के दो साल के कार्यकाल पर चर्चा करते हैं।
हिमाचल में सत्तासीन भाजपा को पटखनी देकर सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस पार्टी ने सुखविंदर सिंह सुक्खू को प्रदेश की कमान सौंपी थी। लेकिन उनके लिए पूर्व सरकारों के छोड़े गए कर्ज नीतियाँ और निर्णयों से निपटना एक बड़ी चुनौती रही, और आगे भी रहेगी। सरकार के गठन के बाद लंबे समय तक मंत्री पदों के बँटवारे में देरी, क्षेत्रीय, जातीय संतुलन बनाने में विरोध भी झेलना पड़ा। प्रदेश की कमजोर आर्थिकी से निपटने की चुनौती और पहले वर्ष हिमाचल में आई आपदा ने सरकार का बोझ और बढ़ा दिया।
केंद्र से सहयोग में कमी के बाबजूद अभी सरकार आपदा से निपट ही रही थी, इसी बीच पार्टी की अंदरूनी कलह और मंत्री पद न मिलाने से नाराज विधायकों ने सरकार के खिलाफ राज्यसभा चुनाव में वोटिंग कर, ऐसे विवाद को जन्म दे दिया जिसने न केवल प्रदेश की साख को गिराया बल्कि लम्बे समय तक देश और प्रदेश की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया।
इसी विवाद और स्वहित ने हिमाचल प्रदेश को एक साल के अंदर ही उपचुनाव में झोंक कर विकास की रफ़्तार को और धीमा कर दिया। हालाँकि उपचुनाव में जीत के बाद सरकार फिर मजबूती से खड़ी हुई लेकिन उसका असर विकास की रफ़्तार को अभी तक पटरी पर नहीं ला सकता। प्रदेश के तंग आर्थिक हालातों ने पार्टी के चुनाव में किये वादों को पूरा करने की राह में रोड़ा बनाना शुरू कर दिया। कुछ चुनावी गारंटियां पुरे करने के दावे तो होते हैं लेकिन असल में वो अभी भी अधूरे हैं।
हिमाचल में कांग्रेस ने दी थी 10 गारंटियां, पांच लागू करने का दावा करती है सरकार…!
कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में आने के लिए जनता को 10 गारंटियां दी थी, जिन्हें पूरा करने के लिए एक साल का समय दिया गया था। लेकिन राजनिति में वादे अधूरे और बयानबाजी बदलती रहती है। इसलिए गारंटियों को पूरा करने का एक साल का अब चरणबद्ध तरीके से पांच साल हो गया है। हालांकि सरकार पांच गारंटियो को पूरा करने का दावा करती है लेकिन आज भी यह अधूरी है।
- पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली – कांग्रेस ने सत्ता में आते ही सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने का वादा किया था। जिसे एक साल के अंदर पूरा करने का दावा किया जा रहा है। सीएम सुक्खू और सरकार ने इसे लागू करने का दावा कर एक लाख से अधिक कर्मचारियों को लाभ देने की बात भी कही लेकिन अभी भी कुछ विभागों के कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसलिए यह गारंटी पूरी तरह लागू और शत प्रतिशत लागू हुई यह कहना सही नहीं होगा।
- महिलाओं के लिए 1500 रुपये मासिक वित्तीय सहायता – हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने चुनावों से पहले महिलाओं के लिए 1500 रुपये महीने की सम्मान राशि देने का वादा किया था। यह गारंटी उन योजनाओं में से एक थी जिसे कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर प्रचारित किया था। कई जगह तो महिलाओं से फॉर्म तक भरवाएं गए। सत्ता में आने पर राज्य सरकार ने पहले इसे जनजातीय क्षेत्र में लागू करने का ऐलान किया था, लेकिन उपचुनाव में के चलते इसकी अधिसूचना में बदलाव किया गया। दावा यह किया जा रहा है कि इसे लागू कर दिया गया है, लेकिन असल में प्रदेश के अधिकतर जिलों और पंचायतों में यह योजना पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई है। वायदा तो सभी महिलाओं को देने का हुआ था, एक परिवार में दो होगी तो दोनों को तीन होगी तो तीनो को यह मासिक वित्तीय सहायता मिलनी थी। पहले तो एक परिवार में एक पर देने की बात हो रह थी,लेकिन लोगों और विपक्ष के विरोध को देखते हुए इसे सबके लागू करने का ऐलान हुआ और लेकिन पात्रता की शर्त और पंचायत सभा से सहमती ने इसे उलझा कर रख दिया है।
- 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली – प्रदेश के लोगों को हर घर को 300 यूनिट निशुल्क बिजली देनेका वायदा हुआ था। लेकिन इसमें भी काम नहीं नहीं हुआ है। प्रदेश क लिए कमाई करने वाले बिजली विभाग के बढ़ते घाटे ने सुख की सरकार के इस वादे को पूरा करने की राह में कांटे बिछाने का कम किया है। हिमाचल प्रदेश बिजली विभाग की खस्ता हालत को देखते हुए सरकार ने पहले से मिल रही 125 यूनिट बिजली सबसिडी को एक मीटर पर देने का निर्णय लिया।
- युवाओं के लिए स्टार्टअप पॉलिसी – युवाओं को स्वरोजगार सृजन के लिए 680 करोड़ की राजीव गांधी स्वरोज़गार योजना की शुरुवात तो हुई लेकिन धरातल पर यह योजना दो साल में सही तरीके से उतर नहीं पाई और कुछ गिने चुने ही लोग इस योजना से जुड़ पाए। इस योजना के तहत, युवाओं और महिलाओं को नए उद्योग शुरू करने के लिए 90% तक ऋण दिया जाता है. बाकी 10% खर्च लाभार्थी को खुद उठाना होता है। इस योजना के तहत, ई-बसे, इलेक्ट्रिकल टैक्सियां, और इलेक्ट्रिकल ट्रक खरीदने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। हालांकि राष्ट्रीय बैंकों द्वारा इस योजना में दिलचस्पी न दिखने से अभी तक यह योजना सफेद हाथी ही साबित हुई
- एक लाख रोजगार के अवसर – कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में पांच लाख रोजगार देने की गारंटी दी थी। यह रोजगार सरकारी और निजी क्षेत्र में देने की बात कही गई। सरकार का दावा है कि अब तक 30 हजार के करीब लोगों को रोजगार दिया गया है। हालांकि शुरुवाती वर्ष में पेपर लीक कांड की वजह से पुरानी भर्तियों के रिजल्ट में देरी और नई भातियाँ न होने से युवाओं में सरकार के खिलाफ रोष भी देखने को मिला।
- प्रदेश में बच्चे को उत्कृष्ट शिक्षा देने के लिए हर विधानसभा क्षेत्र में चार अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल खोले जाएंगे। मरीजों की जांच, दवा और इलाज निशुल्क होने और हर गांव में अस्पताल की गाड़ी (मोबाइल क्लीनिक) भेजी जाएगी। गाय-भैंस पालकों से रोजाना दस लीटर दूध खरीद और दूध का मूल्य 100 रूपये । जैविक खेती बढ़ाने के लिए दो रुपये किलो गोबर खरीदेंने। और फलों की कीमत बागवान स्वयं तय करने, यानि एमएसपी पर काम करने के लिए अभी तक धरातल पर कुछ नहीं दिक् रहा है।
प्रदेश में आर्थिक संकट और बढ़ता कर्ज
आर्थिक संकट से गुजर रहे हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का भार 80,000 करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है। वित्तीय स्थिरता लाने के लिए सरकार की कोई ठोस योजना अब तक सामने नहीं आई है। यह आर्थिक संकट जनता और सरकार दोनों के लिए चिंता का विषय है। और प्रदेश के विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है।
सीएम सुक्खू के लिए गए निर्णयों पर चर्चा
सत्ता संभालने के बाद सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कुछ ऐसे निर्णय लिए जो आज भी चर्चा का विषय है। पूर्व की जयराम ठाकुर नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा खोले गए सैंकड़ों संस्थानों को बंद करने का निर्णय हो या सुख आश्रय स्कीम हो या आपदा में मिलने वाली राहत राशी में बदलाव, इसके अलावा अपनी जमा पूंजी दान करने का निर्णय हो।
सीपीएस मामला अदालत के निर्णयों पर विवाद, सरकार और आर्थिक हालातों पर फैंसले और उन पर देशभर में लंबी चर्चा हो रही है। प्रशासनिक निर्णयों में अस्थिरता, जनता के हितों की अनदेखी, और कांग्रेस संगठन में तालमेल की कमी जैसे मुद्दे प्रमुख रहे। इन दो सालों में सुक्खू सरकार ने न केवल प्रदेश के विकास की बड़ी-बड़ी बातें कीं, बल्कि कई दावे भी किए। लेकिन वास्तविकता इन वादों और दावों से काफी अलग नजर आती है।
अगर एक नजर सुख की सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल डाले तो उनके इए यह चुनौतियों से भरा रहा है। क्या सरकार का कार्यकाल जनता की उम्मीदों और वादों पर खरा नहीं उतर सका है..? भले ही सरकार भव्य आयोजन कर अपनी उपलब्धियां गिनाए, लेकिन जनता और विपक्ष के सवालों के जवाब देना उसकी सबसे बड़ी चुनौती होगी।
यदि सरकार आने वाले तीन वर्षों में अपने वादे पूरे करने और प्रशासनिक और आर्थिक स्थिरता लाने में सफल नहीं हुई, तो इसका असर कांग्रेस पार्टी और उनकी सरकार की साख पर सीधा पड़ेगा। यह सवाल अब भी बना हुआ है, क्या “सुख की सरकार” वास्तव में हिमाचल को वह सुख दे पाएगी, जिसका उसने वादा किया था?
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