अनिल शर्मा | फतेहपुर
Kangra News: राज्य सरकार भले ही स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के दावे कर रही हो, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। डॉक्टर्स की भारी कमी और अन्य सुविधाओं की कमी के चलते सरकारी अस्पतालों में इलाज की स्थिति खस्ता हो चुकी है। स्थिति यह है कि फतेहपुर और रैहन सिविल अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या इतनी कम है कि मरीजों का समय पर इलाज कराना मुश्किल हो गया है।
प्रदेश सरकार की “आदर्श अस्पताल” योजनाओं के तहत फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र के सिविल अस्पताल को भी मॉडल अस्पताल के रूप में चिन्हित किया गया था, लेकिन अस्पतालों में कुल 20 पदों के मुकाबले केवल 10 डॉक्टर ही कार्यरत हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि इन अस्पतालों में मरीजों का इलाज करना और अधिक मुश्किल हो गया है, खासकर जब मौसम की बेरुखी के कारण मरीजों की संख्या में अचानक वृद्धि हो रही है।
रोजाना 500 से 700 से अधिक मरीज पहुंच रहे हैं अस्पताल
फतेहपुर सिविल अस्पताल के आउटडोर क्लिनिक में हर दिन करीब 500 से 700 मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। डॉक्टरों की संख्या कम होने के कारण इन मरीजों का इलाज करना मुश्किल हो जाता है। डॉक्टरों को मरीजों की नब्ज़ टटोलने तक की फुर्सत नहीं मिल पाती। स्थानीय विधायक भवानी सिंह पठानियां के प्रयासों से कुछ विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती हुई है, लेकिन फिर भी अस्पताल में डॉक्टरों की कमी बनी हुई है।
ज्यादातर गरीब मरीज ही सरकारी अस्पतालों का रुख करते हैं, क्योंकि निजी अस्पतालों में इलाज करवाना उनके लिए महंगा होता है। इसके बावजूद, अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के कारण इन मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है। इन अस्पतालों पर क्षेत्र के करीब 40,000 लोग निर्भर हैं, जो इलाज के लिए इन सरकारी अस्पतालों का रुख करते हैं।
डॉक्टरों के पद खाली, इलाज में देरी
फतेहपुर सिविल अस्पताल में कुल 10 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 3 पद खाली हैं। इस कारण अस्पताल में एक साथ केवल 6 डॉक्टर ही रहते हैं, जिनमें से एक को रात की ड्यूटी के लिए भेजा जाता है और एक को दूसरे अस्पतालों में अस्थायी तौर पर तैनात किया जाता है। इस प्रकार, अस्पताल में केवल 5 डॉक्टर ही रह जाते हैं। इसी तरह, रैहन सिविल अस्पताल में कुल 9 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन फिलहाल केवल 4 डॉक्टर तैनात हैं, जबकि 5 पद खाली हैं। छुट्टी पर जाने वाले डॉक्टरों के कारण कभी-कभी यह संख्या और भी घट जाती है।
ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर (BMO) रीचा मल्होत्रा के अनुसार, दोनों अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या में कमी को लेकर अधिकारियों को जानकारी दी जा चुकी है और यह माना गया है कि बेहतर सेवाओं के लिए अस्पतालों में डॉक्टरों का होना बेहद जरूरी है।
मूलभूत सुविधाओं की भी कमी
दोनों अस्पतालों में डायलिसिस और अल्ट्रासाउंड जैसी अहम सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इन सुविधाओं के अभाव में मरीजों को महंगे निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है, जिससे गरीब मरीजों की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। फतेहपुर सिविल अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन तो है, लेकिन रेडियोलॉजिस्ट की कमी के कारण यह मशीन पिछले 12 वर्षों से धूल फांक रही है। नए तकनीकी उपकरण भी बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन अस्पतालों में उनकी कमी बनी हुई है।
एक्स-रे की सेवाओं का भी बुरा हाल
फतेहपुर सिविल अस्पताल में एक्स-रे मशीन तो मौजूद है, लेकिन स्थायी तकनीशियन की कमी के कारण यह सेवा केवल सप्ताह में दो दिन ही उपलब्ध है। नूरपुर अस्पताल से अस्थायी तकनीशियन को बुलाकर एक्स-रे सेवा चलानी पड़ती है। वहीं रैहन अस्पताल में एक्स-रे मशीन भी पुरानी है और अधिकतर समय खराब रहती है, जिससे मरीजों को सही रिपोर्ट नहीं मिल पाती। आधुनिक एक्स-रे मशीन की अनुपस्थिति में, अस्पतालों की सेवाएं बाधित हो रही हैं।
क्या कहती है स्थानीय जनता
अस्पताल में इलाज करवाने आईं इंदू बाला, निवासी कंदौर ने बताया, “अस्पताल में दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं। मैंने ₹500 की दवाइयां बाहर से खरीदी हैं। सरकार को हर प्रकार की दवाइयां मुफ्त में अस्पतालों में उपलब्ध करानी चाहिए, न कि कागजों पर दिखाने के लिए।”
नेहा शर्मा, एक अन्य मरीज ने कहा, “अस्पतालों में सारी सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार का कर्तव्य है, लेकिन डॉक्टरों की कमी के कारण हमें वह सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं जो हमें मिलनी चाहिए थीं।”
ब्लॉक समिति सदस्य तमन्ना धीमान ने कहा, “रैहन अस्पताल को सिविल अस्पताल का दर्जा तो दे दिया गया है, लेकिन सिविल अस्पताल जैसी सुविधाएं भी इस अस्पताल में दी जानी चाहिए।”
समाधान की ओर: फतेहपुर और रैहन सिविल अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी, आवश्यक सुविधाओं का अभाव और पुराने उपकरणों की वजह से मरीजों को उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। इन अस्पतालों की हालत सुधारने के लिए राज्य सरकार को तत्काल कदम उठाने होंगे ताकि जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। डॉक्टरों की भर्ती, बेहतर उपकरणों की उपलब्धता और अस्पतालों में सुविधाओं का विस्तार करना नितांत आवश्यक है। वरना, यह सरकारी अस्पताल सिर्फ नाम के लिए “सिविल अस्पताल” बनकर रह जाएंगे।
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