Trump Tariffs on Carpet Business : अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50% टैरिफ ने देश के कालीन उद्योग को गहरे संकट में डाल दिया है। इस टैरिफ के कारण भारतीय कालीन अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे निर्यातकों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के भदोही और मिर्जापुर, जो भारत के हस्तनिर्मित कालीनों का प्रमुख केंद्र हैं, इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
17,000 करोड़ के उद्योग पर खतरा
कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) के निदेशक असलम महबूब ने बताया कि भारतीय कालीन उद्योग, जो सालाना करीब 17,000 करोड़ रुपये का कारोबार करता है, उसका 60% हिस्सा अमेरिकी बाजार से आता है। लेकिन टैरिफ के लागू होने के बाद से 85% ऑर्डर रुक गए हैं। उन्होंने कहा, “26 अगस्त के बाद से कोई नया उत्पादन नहीं हो रहा है। कारखानों ने अपने कर्मचारियों की संख्या 60-70% तक कम कर दी है। ऐसे हालात में कारोबार चलाना लगभग असंभव है।”
#WATCH | Bhadohi, UP | Carpet Export Promotion Council (CEPC) Director Aslam Mahboob says, “The effect is severe. We had a deadline till August 26… There is no new production. In the industry of Rs 17,000 crore, 60% of the business goes to America… Most of the goods are on… pic.twitter.com/h8ENddTuMJ
— ANI (@ANI) September 1, 2025
उद्योग ठप, लाखों की आजीविका खतरे में
महबूब ने चिंता जताई कि कच्चे माल की खरीद, रंगाई और उत्पादन पूरी तरह बंद हो चुका है। उन्होंने कहा, “अमेरिका हमारा सबसे बड़ा खरीदार था, लेकिन अब कोई दूसरा देश इतने बड़े पैमाने पर हमारा माल नहीं खरीद सकता। नए बाजार विकसित करने में समय लगेगा।” भारतीय कालीनों का वैश्विक निर्यात करीब 17,740 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 60% अमेरिका जाता है। इस उद्योग से करीब 30 लाख लोग, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं, जो घर से कालीन बुनाई का काम करती हैं, अपनी आजीविका चलाते हैं।
सरकार से बेलआउट पैकेज की मांग
कालीन कारोबारियों ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से तत्काल राहत पैकेज की मांग की है। असलम महबूब ने सुझाव दिया कि सरकार टैरिफ का 50% हिस्सा वहन करे, ताकि निर्यातक और खरीदार बाकी लागत को संतुलित कर सकें। वहीं, अखिल भारतीय कालीन निर्माण सचिव पीयूष बरनवाल ने बताया कि कालीन उद्योग की स्थिति अन्य क्षेत्रों से अलग है, क्योंकि 98-99% कालीन निर्यात के लिए बनाए जाते हैं, जिनमें से अधिकांश अमेरिका भेजे जाते हैं। उन्होंने कहा, “टैरिफ ने उद्योग को पूरी तरह ठप कर दिया है। हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है।”
प्रतिस्पर्धी देशों को फायदा
कारोबारियों का कहना है कि अमेरिका में पाकिस्तान, तुर्की और अफगानिस्तान जैसे देशों के कालीनों पर कम टैरिफ के कारण उनकी मांग बढ़ रही है। इससे भारतीय कालीनों की प्रतिस्पर्धी क्षमता कमजोर पड़ रही है। भदोही के कारोबारी इस बात से चिंतित हैं कि अगर स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो अमेरिकी खरीदार स्थायी रूप से अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं।
सरकार से उम्मीद
कालीन निर्यात संवर्धन परिषद और अखिल भारतीय कालीन निर्माण संघ ने कपड़ा मंत्रालय के साथ बैठक कर राहत पैकेज की मांग की है। भदोही के विधायक जाहिद बैग ने उत्तर प्रदेश सरकार से 10% विशेष राहत पैकेज की मांग की है, ताकि निर्यातकों और बुनकरों को सहारा मिल सके। कारोबारी चाहते हैं कि सरकार सब्सिडी, निर्यात ऋण पर ब्याज छूट और अन्य बाजारों में पहुंच बढ़ाने जैसे कदम उठाए।












