Supreme Court News: हिमाचल प्रदेश के एक प्राचीन मंदिर की मालिकी को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक विचारणीय टिप्पणी की। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, “देवता आराधना के लिए होते हैं, विवाद के लिए नहीं।
आप सभी देवता को लेकर आपस में झगड़ क्यों कर रहे हैं? क्या सिर्फ उसी स्थान पर जाकर प्रार्थना करना अनिवार्य है? किसी और स्थान पर जाकर भी तो श्रद्धा प्रकट की जा सकती है। जहां ईश्वर का वास है, वहीं जाकर पूजा करिए।”
एक नेशनल मीडिया वेबसाइटके खबर के मुताबिक यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने उस समय दी जब याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने अदालत को बताया कि हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर से जुड़ी मूर्तियों के मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हस्तक्षेप कर आदेश पारित किया था।
बताया गया कि पुराने मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान देवी की मूर्तियों को एक अस्थायी स्थान पर रखा गया था। इसके बाद मंदिर प्रबंधन समिति ने एक नया मंदिर बनवाया, जहां नई प्रतिमाएं स्थापित की गईं। अब 120 गांवों के निवासी यह मांग कर रहे हैं कि इस नवीन मंदिर की स्थिति और स्वरूप में बदलाव किया जाए।
मंदिर से मूर्तियों को हटाने पर उठा विवाद
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने दुर्गा मंदिर से मूर्तियों को हटाने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान यह तर्क दिया गया कि अदालत ने एक स्थान से मूर्ति हटाकर उसकी जगह दूसरी मूर्ति स्थापित करने का आदेश भी दिया था। यह विवाद भद्रकाली मंदिर से जुड़ा है, जो राज्य के एक गांव में स्थित है।
एक पक्ष का दावा है कि मंदिर की स्थापना उनके पूर्वजों द्वारा की गई थी, जबकि पूर्व राजपरिवार भी इस मंदिर के संस्थापक होने का दावा करता है। इसी बीच, एक संप्रदाय पर मूर्ति चुराकर दूसरी जगह स्थापित करने का आरोप भी सामने आया था, जिसे बाद में पुलिस द्वारा बरामद किया गया।
“जहां ईश्वर हों, वहां श्रद्धा दिखाइए”: सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court)
याचिकाकर्ता की बातों को सुनने के बाद पीठ ने स्पष्ट कहा, “आप नई जगह भी जाकर सिर झुकाकर प्रार्थना कर सकते हैं। देवताओं को लेकर क्यों कलह कर रहे हैं? जहां भी देवी-देवता हों, वहां जाकर पूजा-अर्चना करें।”
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस विशेष निर्देश (निर्देश संख्या 15) को रद्द कर दिया जिसमें पहली मंजिल पर एक अलग मंदिर स्थापित कर मुख्य मूर्तियों को वहां रखने का आदेश था। अदालत ने स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट के शेष आदेश यथावत रहेंगे क्योंकि प्रतिवादी पक्ष को उन पर कोई आपत्ति नहीं थी।
दोनों पक्षों ने पहले इस बात पर सहमति जताई थी कि नई मूर्तियां नव-निर्मित मंदिर में ही बनी रहेंगी, जबकि पुरानी प्रतिमाओं को नवरात्रि 2023 के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद उसी स्थान पर स्थापित किया जाएगा। यह समझौता 13 अक्टूबर, 2023 को अदालत के आदेश में दर्ज भी किया गया था और इसके अनुपालन की पुष्टि एक शपथपत्र के माध्यम से की गई थी।
बाद में प्रतिवादी पक्ष ने उक्त आदेश में संशोधन की मांग को लेकर आवेदन प्रस्तुत किया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायमूर्ति नाथ ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में कहा, “आप लोग भगवान के नाम पर तलवारें भांजना चाहते हैं? और कुछ नहीं तो कम से कम विवाद तो खड़ा करना ही है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।”
हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध याचिका दायर
यह याचिका ‘श्री देवता बनेश्वर प्रबंधन समिति, चौंरी (महासू)’ द्वारा उच्च न्यायालय के दिसंबर 2024 के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। 13 अक्टूबर 2023 को हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि देवी महासू दुर्गा की प्राचीन मूर्तियों को विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा के बाद नवनिर्मित मंदिर के गर्भगृह में सुरक्षित रखा जाए और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी वहां स्थापित की जाएं।
हाई कोर्ट द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि गर्भगृह के उत्तर दिशा में पहली मंजिल पर कम से कम 10×10 फीट आकार में एक अलग पूजा स्थल तैयार किया जाए, जिसमें तीन नई मूर्तियों को यथोचित सम्मान के साथ स्थापित किया जाए। मंदिर निर्माण का दायित्व याचिकाकर्ता समिति को सौंपा गया, और जरूरत पड़ने पर मंदिर का आकार भी बढ़ाने की अनुमति दी गई।
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